में चूड़ियों की खनखनहट नहीं,
लाला लाजपत राय की लाठी हूँ।
में आटे से भरे दो सने कोमल हाथ नहीं,
कुम्हार से हाथ से गढ़ी मजबूत मिट्टी हूँ।
सम्मानित मंच, पधारे गए अतिथिगण और मेरे प्यारे सहपाठियों।
नारी दिवस की सबको हार्दिक शुभकामनाएं देती हूँ और इस अवसर पर मुझे मंच प्रदान करने के लिए तहदिल से धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ।
मेंहदी, कुमकुम, रोली का श्रृंगार हूँ में
पायल की झंकार हूँ मैं,
मोतिया का सुंदर हार हूँ,
मां के कलेजे की कोर हूँ मैं,
रिश्तों की मजबूत डोर हूँ मैं,
आंगन में सजाती प्यार हूँ मैं,
दो घरों का बढ़ाती मान हूँ मैं,
गर्व से कहती आज मैं एक नारी हूँ,
बनाई आज मैंने अपनी नई पहचान है।
घर की रसोई से लेकर दफ्तर की कुर्सी पर मैं विराजमान हूँ,
भरती आज मैं आसमानों में लंबी उड़ान हूँ,
बुलंदियों पर आज मेरा नाम है।
मैं ही निर्मला सीतारमण, में ही किरण बेदी, मैं ही सुनीता विलियम्स और में ही द्रौपदी मुर्मू हूँ।
आज नारी आधुनिक परिवेश में अपने सपनों को दे रही उड़ान है, हर क्षेत्र में चाहिए वो कुश्ती का अखाड़ा हो या खेल का मैदान, दफ्तर हो या अस्पताल, या या राजनीति हो, या पारिवारिक जीवन हो, अपनी सूझबुझ और समझदारी से कायम की अपनी पहचान है और आदमी के कंधे से कंधा मिलाकर नारी शक्ति को दिए नए आयाम हैं।
पर हैरत की बात है, आज भी जहां एक ओर नारी आसमानों में भरती लंबी उड़ान है वहीं दूसरी ओर कुचली जा रही नारी है, दहेज के नाम पर प्रताड़ित की जा रही नारी है, गांवों में शिक्षा से भी वंचित है नारी, और आज भी रावण घूम रहा खुले आम है, आज भी सीता का दिनदहाड़े हो रहा अपहरण है, द्रौपदी का हो रहा चीरहरण है, आज भी आग में धड़क रही पद्मिनी है, निर्भया की हो रही हत्या है, नारी का हो रहा शोषण है।
आखिर कब तक एक नारी डर में जीती रहेंगी,
आखिर कब तक इंसानियत पैर पसार कर सोती रहेगी,
कब तक असुर दानव के भेष में घूमते रहेंगे
और कब तक नारी की लज्जा पर हाथ उठते रहेंगे।
कहने को तो हम आज आजाद हैं,
७८ स्वतंत्र दिवस हमने हाल में ही मनाया है,
पर सही मायने में यह आजादी संदूकों का खजाना ही लगती है,
क्योंकि भारत माता आज भी दहशत में ही तो जीती है।
सरस्वती, लक्ष्मी आज मंदिरों में कहां मिलती हैं,
गंगा, यमुना, गोदावरी पापी के स्पर्श से भी डरती हैं
और बुलंदियों को छूकर आज भी एक नारी
आसमानों के उड़ते परिंदे से डरती है।
इतना ही नहीं, बेटे की चाह में बेटी को गर्भ में ही मार दिया जाता है, और नारी की संवेदना चीख बनकर कर सागर में समाहित हो जाती है, एक नन्हे से फूल को पैरों तले दबा दिया जाता है, कितनी कष्ट और वेदना हुई होगी सोचो जब उसके नाजुक पेरो को काट दिया जाता है, हथौड़े से सिर पर भी वार होता है और वो सहमी सी कोख के कोने में मां-मां पुकार रही होती है और कहती है “ए मां, मुझे मत मार, तेरी ही परछाई हूँ मैं, छिपा ले किसी कोने में मुझे, दुनिया के लोगों से मुझे।” देश बदल रहा है लेकिन अभी भी कुछ लोग अपनी विकृत मानसिकता का ढिंढोरा पीटते रहते हैं और जिसकी भेंट चढ़ जाती है नन्ही सी परी।
आज हम स्वतंत्र तो हो गए हैं, हमें हमारे अधिकार तो मिल गए हैं, पर अभी भी देश को आजाद होना बाकी है बाल विवाह से, नारी पर हो रहे अत्याचार से, दहेज जैसे समाज में फैली कुरीति से, घूम रहे शेर के रूप में गीदड़ से और गर्भपात से। जब तक इन तत्वों को हम उखाड़ न दे तब तक यह दिवस बनाना सार्थक नहीं हो पाएगा।
और अंत में इतना ही कहकर अपनी वाणी विराम देती हूँ और नारी शक्ति को प्रणाम करती हूँ।
नारी सूरज की लालिमा नहीं, खुद उगता सूरज है
नारी पराधीनता की बेड़ियों नहीं, आजाद हिंद की फौज है
अत्याचार के विरुद्ध बन के खड़ी वो मिसाल है
नारी खुद बनी अपनी ढाल है।
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