में चूड़ियां की खनखनाहट नहीं, लाला लाजपत राय की लाठी हु,
में आटा से सने दो कोमल हाथ नहीं
कुम्हार की हाथ से गढी वो मजबूत मिट्टी हु।
में वो ही द्रोपदी हु, जिसे पांडवो ने दाव पे लगाया है
में वो ही सीता हु, जिसे रावण में उठाया था
में वो ही पद्मिनी हु, जिसके शील पे प्रश्न आया था
में वो ही लक्ष्मी हु जिसने झांसी को बचाया था।
छलनी में भर के जल दुनिया को दिखाया है
जब जब प्रश्न मेरे शील पर आया है
प्रचंड अग्नि में मैंने खुद को समाया है
और तलवार की धार से दुश्मनों को भी कदमों में झुकाया है।
में सूरज की लालिमा नहीं, खुद उगता सूरज है
पराधीनता की बेड़ियां नहीं, आज़ाद हिंद की फौज है
अत्याचार के विरुद्ध खड़ी बन के में आज एक मशाल हु
और खुद बनी आज में अपनी ढाल हु।
बेबसी से जंजीरों से छुड़ा लिया मैंने अपना दामन है
दुनिया में बनाई आज एक नई पहचान है
आसमान की बुलंदियों पे मेरा ही नाम है
में ही निर्मला सीतारमण, में ही किरण बेदी, में ही सुनीता विलियम्स और में ही द्रोपदी मुर्मू हु।
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