सेंगोल मान है, सम्मान है और बनने वाला संसद की शान है
स्वतंत्रता का प्रतीक, हम सबका अभिमान है
न्याय का प्रतीक, नंदी जिसके शीर्ष पर विराजमान है
आओ मिलकर करे हमारी संस्कृति और सभ्यता को प्रणाम है।
सेंगोल भारतीय इतिहास की वो ऐतिहासिक विरासत ही नही, बल्कि संस्कृति और सभ्यता को ध्यान में रखकर नीतियुक्त और न्यायपूर्ण शाषण करने की और एक शाशक से दूसरे शाशक को हस्तान्तरित करने की प्रक्रिया है।
सेंगोल स्वन्त्रता भारत का प्रतीक कैसे है?
सेंगोल जितना छोटा शब्द है, उसका अर्थ उतना ही गहरा है और मार्मिक है,
कहा जाता है जब सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत परतन्त्र की बेड़ियों को तोड़कर फिर खुली हवा में सांसे लेने वाला था, तब सबसे बड़ी समस्या ये आयी, की कैसे सत्ता को हस्तांतरित किया जाए, तब भारत का वायसराय लार्ड बैटन था,
तब लार्ड माउंट बैटन ने इस बारे में पंडित जवाहर नेहरू जी से चर्चा की तब पंडित जवाहर नेहरू जी ने इस बार मे राज़ गोपालाचारी को बताया और इसका समाधान निकालने को कहा,
राजगोपालचारी भारतीय संस्कृति से रूबरू और जानकार थे, इन्होंने कही ग्रंथ अध्ययन कर डाले, तब उन्हें सेंगोल के बारे में जानकारी मिली, और उन्होंने अपना सुझाव जवाहर नेहरू जी को बताया, और नेहरू जी को यह सटीक समाधान मिला और उन्होंने सेंगोल राजदंड को तमिलनाडु से मंगवाया और राजदंड को लार्ड माउंट बैटन के पास भेजा गया और सेंगोल राजदंड को 14 अगस्त 1947 को 10.45 बजे तमिलनाडु की जनता द्वारा स्वीकार किया गया था।
सेंगोल क्या है और इसे संसद में क्यों स्थापित किया जा रहा है?
सेंगोल तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से लिया गया है जिसका अर्थ है नीतिपरायणता, इसके शीर्ष पर नंदी विराजमान है (नंदी शिवजी के वाहन को कहा जाता है)
5फ़ीट लंबे चांदी के सेंगोल पे सोने की परत है
सेंगोल राजदंड 8 शताब्दी चोल साम्राज्य से चली आ रही भारतीय संस्कृति की न्यायप्रक्रिया का सूचक है
सेंगोल स्वन्त्रत भारत की नींव रखने वाली चोल साम्राज्य की न्यायप्रक्रिया है।
सेंगोल की स्थापना 28 मई 2023 को नए संसद भवन में, स्पीकर की सीट के बगल की जाएंगी, और हमारे प्रधानमंत्री द्वारा इससे स्वीकार किया जायेगा और नए संसद भवन में विधिवत इसकी स्थापना की जाएंगी ।
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