मार्ग है दुश्वार, खांडे की धार है
संभल संभल के कदम बढ़ाना, पग पग पर शूल है
ऊपर तपता सूरज, नीचे धड़कते अंगारे है
विचलित न होना तुम, क्षमाभाव तुम अपनाना
है पारख कुल की सपना, तुझे देते आशीष हज़ार
पथ के कांटे सारे फूल बने यही हमारी शुभकामनायें है
विघ्न हज़ार आयेंगे, तुम कभी न घबराना
है मोक्ष मार्ग की साधिका तुझे सत सत नमस्कार है।
दीक्षा संसार से विरक्त होकर संयम पथ पर अग्रसर होकर, सारे कर्मो को खपाकर मोक्ष की तरफ़ बढ़ने का एकमात्र साधना है। जो जीव बड़े भाग्यशाली जो दीक्षा अंगीकार करके अपना कल्याण करते है और भव्य जीवो को भी बोध देते है।
दीक्षा जितना छोटा शब्द है उतना ही गहरा है अंनत ज्ञान को अपने अंदर समा कर रखने वाला है। एक व्यक्ति जब दीक्षा लेता है तो वो न सिर्फ सांसारिक मोह माया को त्यागता है, बल्कि अपने इंद्रियों को भी विजय प्राप्त करता है और साधना की तरफ बढ़ता है।
भगवान महावीर ने 30 वर्ष की आयु में दीक्षा अंगीकार की और 12 वर्षो तक कठोर तपस्या की और केवलज्ञान प्राप्त किया और उसका स्वरूप संसार को समजाया।
84 लाख जीवयोनि, जिसमे हम कितनी बार ही जन्म ले चुके है, कभी पशु बने, कभी पक्षी बने, कभी नारकी की घोर वेदना को सहा पर फिर भी हमे यह संसार अच्छा लगता है, हम जानते है हमे एक दिन जाना पड़ेगा, हम कहाँ से आये, हम कहा जायेंगे कोई नही जानता पर फिर भी हमे संसार अच्छा लगता है। भले कितने ही रोगों ने घेरा हो फिर भी हमे संसार अच्छा लगता है। क्यों क्या हमें मोक्ष नही जाना , क्या हमें हमारा कल्याण नही करना, क्या कभी संसार के चकाचोंध में बस गोते ही खाना है, क्या हम कभी दीक्षा ले पायेंगे।
क्या दीक्षार्थी बहना को देख हमारा ह्रदय भी पिघेलगा, हमारी भावना भी दृढ़ होंगी या मोक्ष जाने का सपना सिर्फ एक प्रतिबिम्ब की तरह हमारे साथ चलेगा। जरा सोचो और विचार करो और यह भावना भायी की वो दिन धन्य होगा जिस दिन में आरंभ परिग्रह को तज दीक्षा अंगीकार करुँगी और इसी भावना के साथ
दीक्षार्थी बहन को दीक्षा की ढेर सारी शुभकामनाएं
मोक्ष की तरफ निरंतर तुम बढ़ती रहो यही हम सबकी कामना।
Jai jinendra
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