धरती मां की रूह भी कांपी थी
आसमा फूट फूट कर रोया था
कहर एक ऐसा बरसा था
हवाएं भी हुई खामोश थी
इस खामोशी में पसरा हर और सन्नाटा था
खामोशी से भरा सारा जहां था।
आदरणीय प्रधानाचार्य जी, शिक्षक गण, पधारे गए अथितिगण और मेरे प्यारे सहपाठियो |
13 अप्रैल 1919 इतिहास की वो काली सुबह जिनको याद कर रोंगटे खड़े हो जाते है, यह इतने बेहरम और निर्लज अधिकारी जो हमारी धरती पर हमसे दगा कर, हम पे शासन किया, और हमारी संस्कृति का मजाक बना कर, अत्याचारों की बेड़ियों में हमे बांधते गए, मारते गए, अत्याचारों पे अत्याचार करते गए और इतना बड़ा नरसंहार किया। इससे बड़ी निर्लजता क्या हो सकती थी ।
जिसने मान दिया, सम्मान दिया, उसको कुचल कर राख करने की भरसक प्रयास किया, तभी तो इतने बड़े हत्याकांड करवा कर भी चैन की नींद न सोए। इसको अंजाम देना वाला रेजीनाल्ड डायर था।
चले थे लोग खुशी खुशी, बैसाखी के दिन, स्वर्ण मंदिर के दर्शन कर जलियांवाला बाग में, कुछ लोग घूमने निकले तो कुछ लोग शांति वार्ता के लिए, पर किसे पता था अगला पल क्या होंगा,
इस उत्साह और उल्लास का अंजाम क्या होंगा
मौत द्वार पर दस्तक देने वाली थी
सबसे मासूम उन बच्चो की गलती ही क्या थी
समझ पाते अगर लोग, उनकी अगली चाल को
तो कुछ जाने बची होती
अंग्रेजो की नजर में
भारत के लोगो की जान की कीमत बड़ी सस्ती थी।
वो जलियांवाला बाग ही था, जहा आज भी मासूम लोगो की चीत्कार सुनाई देती है जो अंग्रेजी अधिकारियों के अत्याचारों के भेंट चढ़ गए।
आओ आज उन्हे याद करे, उन्हे श्रद्धांजलि दे
जिनकी महक हर जगह है
उनके ही कफन से
तिरंगा खुलकर मुस्कुराया है।
Pingback: Poem on Jallianwala Bagh | जलियांवाला बाग पर कविता | Poem on Jallianwala Bagh Massacre - NR HINDI SECRET DIARY
Comments are closed.