दीपक हु देहरी का,
तेरे आंगन में ही महकती हु
धरोहर हु तेरी
आज कुछ अर्ज करना चाहती हू।
सादर नमस्कार, सबको मेरा प्रणाम
आज बालिका दिवस की सबको हार्दिक शुभकामनाएं देना चाहती हु और मेरी आवाज आप सब तक पहुंचे इसी आशा के साथ अपनी बात रखना चाहती हू।
बेटी मान है, सम्मान है, घर का स्वाभिमान है
मत रोंदो इसे यह जगत का आधार है
आज नही वो बेबस और लाचार है
आज वो धारण कर चुकी दुर्गा का भी अवतार है।
आज भी जब एक बेटी का जन्म होता है तो मातम बनाया जाता है, कही लोग तो लड़की को नाले में फेंक एक मासूम जीवन का अंत कर देते है, ममता के आंगन में एक किलकारी गूंजी ही थी की तेज धार वाले हथियार सीने को छलनी कर गए, कितनी वेदना हुई होंगी, जब उस नाजुक हथेलियों पर वार हुआ था, नाजुक पेरो को कांट दिया था, और हथौड़े से सर पर भी वार हुआ था और वो डर से कपकपा रही थी और कोंख के किसी कोने में मां मां कहकर पुकार रही थी।
काफिरो की भीड़ पे एक काफिला मेरा भी निकला होगा
जिसे देख कर यह वक़्त भी रोया होगा
बोझ नहीं तेरे दामन पे
तेरी ही परछाई थी में माँ।
योनि में औजार डालने से पहले डॉक्टर के भी तो हाथ काँपे होंगे
मेरी रूह के हर टुकड़े से आवाज तेरी आयी होगी
बोझ नहीं तेरे दामन पे
तेरी ही परछाई थी में माँ।
मेरा एक सवाल हर माँ बाप से है, एक आरज़ू उस पीढ़ी से है जो कल माँ-बाप बन भविष्य का निर्माण करेगी, एक आशा की किरण उन कुरीतिओ से है जो बेटी को माँ के प्यार से वंचित कर देती है——–
इतना ही कहना है बेटी धरोहर है आंगन की
इन से महकता घर का प्रांगण है
सपनो को पंख फैलाने दो
उड़ने दो इन्हे खुले आसमानों में
मत रोको, मत टोको
बिटिया दो दो घरों का रोशनदान है
एक बार खुलकर हसने दो इन्हे
देखो कैसे पूरा करती तुम्हारा हर अरमान है |
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