धरती मां का फरमान है पलके बिछाए आसमान है
याद करे हम वीरों का बलिदान है जिनकी वजह से सज रहा आज हमारे घर का रोशनदान है
स्वंत्रत के लिए हुए कितने कुर्बान है शहीदों को करते हम वंदन है
मिट्टी भी जहा की चंदन है ऐसा मेरा हिंदुस्तान है।
सादर नमस्कार, यहां उपस्थित सभी श्रोतागणो को मेरा नमस्कार सबसे पहले गणतंत्र दिवस की सबको हार्दिक शुभकामनाएं देती हु और इस गौरवशाली दिन पे अपनी बात रखने के लिए, मुझे मंच प्रदान करने के लिए तहदिल से धन्यवाद ज्ञापित करती हु।। आज का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा गया है, क्योंकि 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी के बाद, देश को सबसे पहले जरूरत थी एक ऐसी न्यायिक व्यवस्था की,जहा उच्च नीच का भेदभाव न हो, सब जाति और सब धर्म को समान स्थान मिले, सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक रूप बनी रही और देश तरक्की और नित नई ऊंचाइयों को छूता रहे।
Dr भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में 2 वर्ष 11माह और 18 दिन में भारत का संविधान बन कर तैयार हुआ था और 26 jan 1950 को यह पूरे भारत में लागू कर दिया था। तब से हर वर्ष २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। भारत देश का गौरव यह तिरंगा भी इन्हे देख मुस्कुराता है तभी तो ऊंची ऊंची पहाड़ियों पे वो कितने शान से लहराता है। आज इसी गौरवशाली भारत के अतीत के पन्नो को फिर से पढ़ने का प्रयास करते है और उन वीरों को वंदन करते है जो जलती चिता पे मीनार बन कर के बैठे है और दुश्मन के कलेजे की आग बन कर बैठे है। एक वो सदी थी जब भारत परतंत्र की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था और अंग्रेजी हुकूमत का हर तरफ बोलबाला था, हर तरफ जुल्म और अत्याचार हो रहा था, और भारत की मिट्टी पे भारत के लोगो को ही कुचला जा रहा था तब देश को जरूरत थी बलिदानों की, एक ऐसी देशभक्ति लो की जो सीने में आग बन कर जले और एकजुट भारत की और खुली आंखों से स्वतंत्र भारत के सपने देखने की।
आज हम स्वतंत्र है पर क्या यह स्वतंत्रता इतनी आसान थी, कितने ही वीरों ने अपना बलिदान दिया, कितनी ही माताओं की कोंख विरान हुई,माथे पे सिंदूर कभी सजाती थी, आज हाथो में अर्थी थी, और कितने ही बच्चो ने अपनी माता पिता की लाशे अपने हाथो दफनाए थी। कितने ही चढ़ गए फासी पे, धरती मां की रूह भी कांपी थी, जलियांवाला बाग का हत्याकांड देख आसमा भी फुट फुट कर उस दिन रोया था। चंद्रशेखर आजाद ने चलाई गोली अपने सीने पे, भारत के हर बच्चे के दिल में देशभक्ति की ज्वाला भड़की थी, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी पे चढ़ते देख, भारत देश की धरती भी इस दिन इंकलाब जिंदाबाद के नारों से गूंजी थी। अंत में चार पंक्ति कहकर अपनी वाणी को विराम देती हु और शहीदों को श्रद्धांजलि देती हु।
आओ सलामी दे उन्हे जो इसके असली हकदार है,
मिट्टी की हर एक परत उन्ही की कर्जदार है।
जय हिंद
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