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अहिल्याबाई होल्कर जीवनी | Ahilya Bai Story in Hindi | Ahilya Bai Essay in Hindi | Short Poem on Ahilya Bai

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समकित धार कर
व्रज सा प्रहार कर
दुश्मनों को तू
अपनी शक्ति का आभास कर
उदारता का भाव धर
प्रजा का तू कल्याण कर
अपनी बुद्धिमता से
राज्य का तू विकास कर
दुर्गा का है तू अवतार
काली का तू रूप धर
अनेक शक्तियां तेरे भीतर
कहते है जिन्हें अहिल्याबाई होलकर।

आज एक ऐसी शख्शियत के बारे में बात करते है जिनके बारे में अगर बोलना भी चाहू तो शब्द कम पड़ जायेंगे।
गुणों की खान, भारत का स्वाभिमान, नारी शक्ति की अदभुत पहचान और इंदौर राज्य का अभिमान है।

अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छोन्दी गाँव मे हुआ था। इनके पिता का नाम मनकोजी शिंदे और माता सुशीला शिन्दे थी। उस समय लड़की को शिक्षा का अधिकार नही था, पर इनके पिता ने न सिर्फ इनको पढ़ाया बल्कि हर कार्य मे कुशल और निपुण बनाया।

एक बार की बात है, महाराजा मलहार राव होलकर पुणे के दौरे से लौट रहे थे और सायंकाल होने के कारण उन्होंने पास में ही छोन्दी गाँव मे विश्राम करने का निश्चय किया और उन्होंने वहां एक आठ वर्ष की बालिका को देखा, वो उसके उदारता और चंचल स्वभाव को निहारते रहे और उसके दयाभाव को देख प्रसन्न हो गए। वो आठ वर्ष की बालिका में उन्होंने मालवा का भविष्य देख लिया और उनकी पैनी नज़र और अहिल्या को पुत्रवधु के रूप में अपनाने का निश्चय मालवा का भविष्य बदलने वाला था। उन्होंने मानकोजी से अपने बेटे खंडेराव के लिए अहिल्या का हाथ मांगा और आठ वर्ष की यह बालिका इंदौर की रानी बन गयी।

अहिल्या अपने चंचल स्वभाव और उदारता के कारण ससुराल में जल्द ही सबकी प्रिय हो गयी। सासु के देखरेख में वो घर के सारे कार्य जल्द ही सिख गयी और ससुर के साथ राजकार्य के कार्य मे अपना सहयोग देने लगी और इतना ही नही उसने अपनी पति को भी मार्गदर्शक की तरह राह दिखायी और उन्हें एक कुशल योद्धा बनाने में अपना योगदान दिया और उन्हें दरबार मे उनकी परछाई बनकर उन्हें सही मार्ग दिखाया।1745 को उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुयी और 1748 में उन्हें एक पुत्री भी हुयी।

अहिल्याबाई का जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा था, पर वक़्त का पहिया कब आ के थम जाए कोई नही कह सकता, उनके पति का एक युद्ध दौरे में स्वर्गवास हो गया। अहिल्या पर व्रज सा प्रहार हुआ और उन्होंने सती होने का मानस बना लिया पर ससुर के समझाने पर उन्होंने सती न होकर बल्कि राज्य के कल्याण और उज्जवल भविष्य के लिए खुद को समर्पित कर दिया।

कुछ समय बाद उनके ससुरजी का भी देहांत हो गया। अहिल्याबाई जैसे अंदर से टूट गयी थी क्योंकि पिता समान ससुर को खोना उनके लिए आसान नही था। इतना ही नही एक साल बाद उनका पुत्र भी उन्हें छोड़ के चला गया जिससे अहिल्या अकेली पड़ गयी।

अहिल्या के ऊपर पूरे राज्य की जिम्मेदारी आ गयी। अहिल्या ने तुकोजीराव को अपना सेनापति नियुक्त किया और राज्य कार्य को बहुत अच्छे से सँभाला और राज्य का विस्तार भी किया। अहिल्याबाई अपनी राजधानी इंदौर से महेश्वर ले गई।

अहिल्याबाई ने अपने शाशनकाल में बहुत से मंदिरों का निर्माण किया, बहुत सारी बावड़ियों का निर्माण कराया, प्याऊ खुलवाए और अनेक धर्मशाला का निर्माण करवाये।

अहिल्याबाई को अपनी उदारता और प्रजा के प्रति असीम प्रेम और गरीबो के प्रति दयाभाव की वजह से उन्हें देवी का दर्जा भी दिया गया है।अहिल्याबाई ने महिलाओ के विकास के लिए भी काफी कदम उठाए थे और उन्होंने तो एक महिला सैना भी तैयार की थी। अहिल्याबाई नारी जाति का एक ऐसा उदाहरण है जो प्रेरणा बनकर आज भी नारी का मार्ग प्रशस्त करती है और उन्होंने नयी प्रेरणा देती है।

26 अगस्त 1966 को अहिल्याबाई के में भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किए थे, इतना ही नही अहिल्याबाई के नाम से आज भी अवार्ड दिए जाते है। और इंदौर में भी भाद्रपद की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को अहिल्या उत्सव भी बनाया जाता है।

ऐसा पुष्प सदियों बाद ही दिखता है
अहिल्याबाई भारत को वो कल्पवृक्ष है जो हर बाग में नही खिलता है।

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