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सावित्रीबाई फुले भाषण | सावित्रीबाई फुले जयंती भाषण | Savitribai Phule Speech

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बेबसी की जंजीरो से छुड़ा लिया जिसने अपना दामन है 
खुले आसमान की छाव में दुनिया में आज उसका नाम है 
कल्पना चावला की बात करे या किरण बेदी को सलाम करे 
हर क्षेत्र में नारी ने बनायी आज अपनी अद्भूत पहचान है। 

आदरणीय प्रधानाचार्य जी, समस्त सिक्षकगण और मेरे प्यारे सहपाठीयो

आज इस मंच पे एक ऐसी शख्सियत से आप सबको रूबरू करवाना चाहती हू, जिनके बारे में कही लोग नही जानते होंगे, पर जिनके वजह से ही आज महिला शिक्षित हो पाई है, बाल विवाह पर लगे प्रतिबंध है, और विधवा पे हो रहे अत्याचारों पे लगी लगाम है और नारी जाति का हुआ कल्याण है।

सावित्री बाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका जिन्होंने नारी जाति के हित में अपना पूरा जीवन लगा दिया और समाज में व्याप्त हो रही कुरीतियों को जड़ से उखाड़ दिया।

3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में सावित्री बाई फुले का जन्म हुआ, और 9 वर्ष में उनकी शादी 12 वर्ष के ज्योतिराव फुले से करा दी गई।

ज्योतिराव ने सावित्री बाई फुले को न सिर्फ शिक्षित किया, बल्कि उन्हें राष्ट्र निर्माण के लिए इसे तैयार किया जैसे किसी सांचे से सोना तप कर तैयार होता है।

ज्योतिराव और सावित्री बाई फुले ने 1848 में लड़कियों के लिए पहली स्कूल की शुरआत की और धीरे धीरे उन्होंने 18 स्कूल खोल दिए।

कहा जाता है जब सावित्रीबाई फुले लड़कियों को शिक्षित करने स्कूल जाती थी, तब लोग उनपर कीचड़, गोबर, पत्थर और यहां तक विष्ठा पे फेंक देते है, सावित्रीबाई फुले एक साड़ी साथ में रखती थी और विद्यालय जाकर बदल देती थी। पर उनके दृढ़ संकल्प की बात ही निराली थी
कहते भी है

जब नारी कुछ करने की ठान ले
तो
पर्वत भी झुक जाता है
नदिया रास्ता दे देती है
साहिल देखते रह जाती है
प्रकति मुस्कुराती है
क्योंकि उसके जज़्बे को देख
आसमा के तारे भी तो खुशी बनाते है।

सावित्रीबाई फुले नारी समाज का ऐसा उदाहरण है जिन्होंने पुरुषप्रधान समाज को हिला कर रख दिया, खोकली हुई नीव को निकाल, समानता की एक ऐसी छवि प्रस्तुत की, जहा नारी को सिर्फ मान, सम्मान न मिला, बल्कि उन्हें स्वाभिमान की जिंदगी जीने की नई राह मिली और जो भी अत्याचार और जुल्म उन पर हो रहे थे, उनसे बाहर निकलने की और लड़ने का हौसला मिला।

एक खिलता हुआ गुलाब
या
पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ
गुलज़ार
ख़्वाशियो का सूरज
या
ढलती शाम की प्यारी सी मरहम
सुख दुख का दर्पण
या
सपनो को रौंद कर देती तुम्हारे सपनो को नया आसमान

उस समय एक कन्या का बाल विवाह उससे बड़ी उमर के साथ हो जाता था और अगर वो विधवा हो जाए तो उसके बाल मुंडवा दिए जाते है और उन्हें किसी भी सामाजिक कार्य में आने की अनुमति नहीं होती और तो और अत्याचार और अलग होते थे। तब सावित्री बाई फुले ने विधवाओं के लिए अपने घर मे ही केयर सेंटर खोल दिया और महिलाओं को शिक्षित कर एक इसे समाज की नीव रखी जहा महिला को समान अधिकार मिला, और जो लोग कल पत्थर फेंका करते थे और वही लोग महिला का सम्मान करने लगे ।

नारी मान है, सम्मान है, घर का स्वाभिमान है 
मत रोंदो उसे वह जगत का आधार है 
आज नहीं वो बेबस और लाचार है 
आज वो धारण कर चुकी दुर्गा का भी अवतार है। 

कहते है उस समय भयंकर प्लेग फैला, सावित्री बाई फुले ने मरीजों की देखभाल करने के लिए एक क्लिनिक खोला और लोगो की देखभाल करते हुए उन्हें भी प्लेग हो गया और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।

अंत में चार पंक्तियों से अपनी वाणी को विराम देती हु और सावित्री बाई फुले के चरणों में वंदन करती हु,

एक टहनी एक दिन पटवार बनती है
एक चिंगारी दहक अंगार बनती है
जो सदा रोंदी गई बेबस समझकर
एक दिन मिट्टी वही मीनार बनती है।

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