वो एक आवाज जिसने भारत की नींव को हिलाया था
वो एक चिंगारी जिसने बिजली बन कहर बरसाया था
सिख, ईसाई, हिन्दू, मुसलमान सबने अपना फर्ज निभाया था
सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत को आज आजादी का मतलब समझ आया था
इस लड़ाई में कितने वीरों ने अपना रक्त बहाया था
भगत, सुखदेव, राजगुरु ने फांसी के फंदे को हंस के गले लगाया था
उस रक्त के बलबूते ही आजादी का फसाना इन गोरों ने सुनाया था
तब कहीं जाकर 15 अगस्त
1947 को हमने पहला स्वतंत्र दिवस बनाया था।
हम तो शहादतों पर फूल चढ़ाते हैं
पर शहीदों को लेने भगवान खुद धरती पर उतर आते हैं।
हमारी सभा में उपस्थित सभी अतिथिगण का विद्यालय परिसर की ओर से हार्दिक स्वागत करती हूँ और अभिनंदन करती हूँ।
हमारे आज के अतिथि प्रांगण में पधार चुके हैं, एक बार जोरदार तालियों के साथ इनका स्वागत करें।
सदा न कोयल बोलती
सदा न खिलते फूल
ऐसे अतिथि प्रांगण में पधारते
जब भाग्य हो अनुकूल।
कार्यक्रम की कड़ी को आगे बढ़ाते हुए अब मैं दीप प्रज्वलन के लिए विद्यालय की प्राचार्य और पधारे गए आज के विशिष्ट अतिथिगण को मंच पर आमंत्रित करती हूँ।
दीप प्रज्वलित हुए,
हुआ नया सवेरा है
विद्यालय का प्रांगण रोशनी से हुआ उजियारा है
झिलमिल सितारे सारे करते आपको वंदन है
पधारे गए अतिथिगण का विद्यालय परिसर करता अभिनंदन है।
कार्यक्रम की कड़ी को आगे बढ़ाते हुए, पधारे गए मुख्य अतिथि …और और विद्यालय की प्राचार्य से अनुरोध करती हूँ कि वो ध्वजारोहण करें।
दिन वो फिर आया है
तिरंगा खुलकर मुस्कुराया है
तोड़ के पराधीनता की बेड़ियों को
देखो ध्वज कैसे मुस्कुराया है।
अब मैं सभी शिक्षक और विद्यार्थियों और पधारे गए अतिथि से अनुरोध करती हूँ कि वो अपने स्थान पर राष्ट्रगान के लिए खड़े हो जाएं।
अब मैं मंच पर आमंत्रित करती हूँ पहली प्रस्तुति को जो जलियांवाला बाग की त्रासदी है, जहाँ हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे और जनरल डायर का ऐसा कहर बरसा कि बची सिर्फ लाशें थीं और वो चीत्कार थी, वो इतिहास की सबसे काली सुबह थी, जिसे नाटक के माध्यम से दर्शाने मंच पर आ रहे हैं शिवम और ग्रुप।
वो जलियांवाला बाग ही था, जहाँ आज भी मासूम लोगों की चीत्कार सुनाई देती है जो अंग्रेज अत्याचारों के भेंट चढ़ गए थे।
अगली प्रस्तुति के लिए मैं मंच पर आमंत्रित करती हूँ युवान को जो देशभक्ति की कविता लेकर आ रहा है, एक ऐसी कविता जो स्वतंत्रता के पीछे क्रांतिकारी के संघर्ष को दिखाएगी।
वाकई युवान की कविता ने एक बार फिर खून में उबाल और देशभक्ति की ज्वाला जला दी,
कलम हो चुका घर का खून
फिर भी मां न रोई है
उजड़ी नहीं है कोंख मेरी
वो धरती मां को भाई है
आंखों में आंसू नहीं वीरता की बज रही झंकार है
शहीदों को हमारा वंदन बार-बार है।
अब मैं मंच पर बुलाना चाहूंगी अपने शब्दों से संविधान का महत्व बताने के लिए हर्ष सिंघल को।
सही कहा आपने हर्ष
भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है जिसे बनाने में २वर्ष ,११ माह और १८ दिन लगे और अंबेडकर जी की अध्यक्षता में इसे मनाया गया और२६ नवंबर को हर वर्ष इसे मनाया जाता है।
अब मैं सामूहिक गायन के लिए कक्षा११ के विद्यार्थियों को मंच पर आमंत्रित करती हूँ।
जहाँ डाल-डाल पे सोने की चिड़िया करती है बसेरा
वो भारत देश है मेरा।
देशभक्ति का यह जज्बा हमारी युवा पीढ़ी में भी देखने को मिल रहा है, जो कल राष्ट्र का निर्माण करेंगी, और राष्ट्र की कमान हमारी युवा पीढ़ी के हाथों में है।
अब मैं अंतिम प्रस्तुति के लिए सीमा और ग्रुप को आमंत्रित करती हूँ जो सियाचिन की ठंडी रातों में हमारे सैनिकों के शौर्य और पराक्रम को दर्शाएंगी।
खड़े हैं वो सरहद पर
हम घर में दीप जलाते हैं
वो रात भर पहरा लगाते हैं
हम चैन की नींद सो जाते हैं।
आज हम उन सैनिकों को सैल्यूट करते हैं जो बर्फीली पहाड़ियों में, -डिग्री सेल्सियस में जहाँ लोगों के लिए सांस लेना भी दुष्कर होता है, वहाँ तैनात रहते हैं और कड़कड़ाती ठंड में भी दुश्मनों को परास्त करते हैं।
अब मंच पर आमंत्रित करती हूँ उनको, जिनके बारे में कहने लगी तो अल्फाज़ कम पड़ जाएंगे, इतने बड़े पद पर कार्यरत हो, सच्चे समाज सेवक हो, ईमानदार निष्ठा के साथ कार्य करने वाले और जिन्होंने समाज के हित में अपना पूरा जीवन लगा दिया, आज वो हमारे बीच बैठे हैं, और हमारे विद्यालय की शोभा बढ़ा रहे हैं।
मंच पर आमंत्रित करती हूँ उनको
जिनके आने से हुआ नया सवेरा है
विद्यालय का प्रांगण रोशनी से हुआ उजियारा है
झिलमिल सितारे सारे करते आपको वंदन है
गौरव सर, आपका मंच पर करते हम हार्दिक स्वागत है।
जब उनकी स्पीच हो जाए तो कहना
सितारे महफिल में उतर आए सारे
वक्त तेरा दीदार मिल गया
सुना था जिनके बारे में
आज उन्हें सुन के ऐसा लगा
जैसे ज़मीं पर सितारा खुद चल के आया है
विद्यालय के प्रांगण में नूर उन्होंने बरसाया है
विद्यार्थियों को सिखाया इन्होंने सफलता के गुर
इसे व्यक्तित्व के धनी को एक बार फिर शुक्रिया करते हैं।
अब में कार्यक्रम समापन के लिए विद्यालय की प्राचार्य विद्या मैम को मंच पर आमंत्रित करती हूँ।
मैम
हम तो डाली हैं आपकी
आपने इसे सींचा है
आपकी छत्र छाया में पलकर ही
बनी यह सुंदर बगिया है।
थैंक्यू मैम
चार पंक्तियाँ कहती हूँ और एक बार फिर से सबको इस दिन की हार्दिक बधाइयाँ देती हूँ, पधारे हुए सभी अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ।
यह तो मात्र कुछ क्रांतिकारी हैं
पर शेष अभी बाकी है
यह आजादी जिसके लहू से होकर निकली है
मिट्टी में उसकी कफ़न की कुछ बूंदें आज भी बाकी हैं।
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