अहिंसा की पगडंडी पे चलकर
जिसने विश्वगुरु को भी झुकाया था
बिना शस्त्र बिना अस्त्र के
जिसने कुरुक्षेत्र में अपना तिरंगा फहराया था
रंग भेद की कुरीति को जिसने
जड़ से मिटाया था
बापू कहूं या गांधी कहूं या राष्ट्रपिता कहूं
भारत को आजादी का सूरज जिसने दिखाया था।
आदरणीय प्रधानाचार्य जी, शिक्षक गण, पधारे गए अतिथिगण और मेरे प्यारे मित्रों
आजादी के फसाने लिखने लगूं तो कलम छोटी पड जाती है, कभी खादी पहने गांधी के चरखा चलाते हुए दिख जाते हैं तो कभी जलियांवाला बाग की त्रासदी रुला जाती है, तो कभी पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी भारत की तस्वीर दिख जाती है, तो कभी प्रदीप कुमार जी की पंक्तियां गुनगुनाने लगती हैं।
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग के बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।
यह कमाल ही है जिसने पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े भारत को सिर्फ आज़ादी का सूरज न दिखाया बल्कि विश्व की सबसे बड़ी शक्ति को झुकने पे मजबूर कर दिया, यह कमाल ही था जिसने भारत की नीव में इंकलाब जिंदाबाद की एक ऐसी लौ जलाई जो चिंगारी बनते-बनते बारूद बन गई और पूरे भारत को एकता के सूत्र में पिरो दिया, यह कमाल ही था जिसने गोरों को भारत छोड़ने पे विवश कर दिया, और जिसने सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत को फिर खरा सोना बना दिया।
आज उस कमाल के पीछे छिपे उस विभूति को याद करते हैं, वंदन करते हैं, जो सिर्फ एक स्वतंत्र सैनानी नहीं थे, बल्कि अमन शांति का संदेश फैलाने वाले दूत थे, अहिंसा और सत्य की वो असाधारण मिसाल थे, साधारण से दिखने वाले पर किसी फरिश्ते से कम नहीं, रविंद्रनाथ टैगोर ने जिन्हें महात्मा की उपाधि दी तो उन्हें राष्ट्रपिता कहकर भी बुलाया गया और प्यार से बच्चे जिन्हें बापू भी कहते थे और उन्हीं महात्मा गांधी की जयंती हम आज मनाते हैं।
क्या चित्रण करूं उसका जिसका जीवन खुद एक विश्लेषण है
लाखों करोड़ों की भीड़ में बना जो पथ प्रदर्शक है
एक सूत्र में पूरे भारत को जिसने पिरोया था
वो और कोई नहीं मेरे प्यारे बापू थे।
एलबर्ट आइंस्टाइन ने यह तक कह दिया था उनके बारे में। भविष्य की पीढ़ी को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़ मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी इस धरती पर आया था।
क्या आप जानते हैं गांधी के आचार और विचारों को जिंदा रखने के लिए आज दिल्ली में राजघाट के समीप गांधी दर्शन में बापू को समर्पित एक रेलवे कोच बनाया गया जो उस ट्रेन यात्रा का प्रतीक है जो महात्मा गांधी ने राष्ट्र को एकजुट करने के लिए और उसके प्रचार करने के लिए की थी।
पर आज गांधी के विचार और आचार कहीं विलुप्त होते जा रहे हैं, आज हम गांधी की जयंती कितने हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं पर सही मायने में तो गांधी के आचार और विचार बड़े पैमाने पे कुचले जा रहे हैं,आज भ्रष्टाचार, कालाबाजारी पसार चुकी अपने पांव हैं, जातिवाद के नाम पर होते आ रहे कितने दंगे हैं,बालविवाह, शोषण आज समाज का चलचित्र बन गया है,
हिंसा, झूठ, चोरी, फरेब ने अपना मायाजाल बिछा रखा है, और हैरत की बात यह है कि बड़े-बड़े दिग्गज हस्तियां ही इन घोटालों में शामिल हैं, जिन्हें हम अपना गुरु मानते हैं, या हम उन पर विश्वास कर ही अपना मतदान उन्हें देते हैं, इतना ही नहीं हिंसा, शोषण की खबरें आए दिन अखबार में पढ़ने को मिलती हैं जो गांधी के आचार और विचारों को खोखला कर रही हैं, और दुख तो और बढ़ जाता है, जब 18 वर्ष के बच्चे भी हाथ में चाकू ले लेते हैं, हम कहते हैं हमारे आचार और विचार में वो जिंदा हैं, पर जब तक समाज से, देश से यह अराजक तत्व हम बाहर न निकाल दें, तब तक गांधीजी को हम सच्ची श्रद्धांजलि नहीं नही दे पाएंगे। तब तक गांधी जयंती बनाने का हमारा संकल्प हमारा पूरा नहीं हो पाएगा।
कदमों में जहान देखा है
वतन की मिट्टी से महकता हिंदुस्तान देखा है
तिरंगे को आसमानों में लहराते देखा है
और आज़ादी के रंगों में रंगा उस राष्ट्रपिता को देखा है
जो हमारे आचार और और हमारे विचारों में जिंदा है
जिन्हें हम कभी बापू, तो कभी महात्मा गांधी, तो कभी राष्ट्रपिता के नाम से बुलाते हैं।
इस विलक्षण व्यक्तित्व का जन्म पुतलीबाई के कोंख से गुजरात के पोरबंदर में हुआ। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी था और इनकी पत्नी कस्तूरबा बाई थी। और बेरास्टर की पढ़ाई करने के लिए वे इंग्लैंड रवाना हो गए।
उन्होंने अपनी जिंदगी के 21 वर्ष साउथ अफ्रीका में व्यतीत किए, जहाँ उन्होंने बहुत सी कुरीतियों का सामना किया और रंगभेद की कुरीति को समाप्त कर दिया।
गोपाल कृष्ण गोखले के आग्रह पर जब वे भारत आए, तो उन्होंने जिस भारत की जो तस्वीर देखी, उनके आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने अत्याचार की बेड़ियों से भारत को मुक्ति दिलाने की ठान ली।
उस पराधीनता की बेड़ियों में, उन चीत्कार में, उस खामोशी में, बिछती हुई हजार लाशों में, जेल की रूखी-सूखी रोटियां में पानी को तरसती कैद की वो बेड़ियों में और आसमान को चीरकर रखने वाली खामोशी में और गंगा मैया को बरसती उन आंखों में आज उम्मीद की किरण प्रस्फुटित होने लगी थी। और उन उम्मीदों का कारवां लेकर गांधीजी ने आंदोलन चलाए।
उनका पहला आंदोलन चंपारण था जो उन किसानों के लिए था, जिनसे जबरन नील की खेती करवाई गई थी। उन्होंने असहयोग आंदोलन चलाया , और खिलाफत आंदोलन में सहयोग कर मुसलमानों को भी अपने पक्ष में किया, जो आगे जाकर आज़ादी में मील का पत्थर साबित हुआ। इससे हिंदू
मुस्लिम के दंगों पर रोक लगी और पूरा भारत एकता के सूत्र में बंधा रहा।
उन्होंने नमक पर लग रहे टैक्स के विरोध में 400 किमी पैदल यात्रा की और कानून तोड़ते हुए नमक बनाया।
उनके अनवरत प्रयास और आंदोलनों ने पूरे भारत को एकता के सूत्र में पिरो दिया और भारत की इसी एकता का ही परिणाम है कि विश्वशक्ति भी उसके आगे झुकने को मजबूर हो गई और भारत अंग्रेजी हुकूमत से पूरी तरह आजाद हो गया।
पर हैरत की बात है कि भारत को स्वतंत्रता का पैगाम सुनाने वाला, राष्ट्रपिता कहकर बुलाया जाने वाला, बच्चों का प्रिय और अहिंसा की पगडंडी पर चलने वाला का अंत हिंसा से हुआ। नाथूराम गोडसे ने उनकी बंदूक से हत्या कर दी। पर क्या गांधी मर गए? नहीं, आज भी वे जिंदा हैं, सत्य और अहिंसा के मशालों में, आज़ादी के गीतों में और हम सब के हृदय में।
और चार पंक्तियाँ कहकर
श्रद्धा सुमन के फूल अर्पित करती हूँ और गांधी जयंती की एक बार हार्दिक शुभकामनाएं देती हूँ।
कितना झेला है, तब कहीं जाकर अपने ही हिंदुस्तान में परिंदे की तरह उड़ पाए।
अपनी ही ज़मीं पर सिर उठा कर चल पाए हैं।
अपनी शान-शौकत शौकत को शाख पर रखकर कर जीते थे कभी,
आज गांधी के फलस्वरूप स्वरुप ही पराधीनता की बेड़ियाँ तोड़ पाए हैं।
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