Moral Story in Hindi-बंदरो का ऐड़ी सरदार |
एक बार की बात है। एक बहुत बड़ा जंगल था। वहां एक बंदरो का झुंड रहता था। उन बंदरो का एक सरदार था जिसका नाम था ऐड़ी बंदर। जैसा नाम वैसा उसका काम, क्योंकि उसकी बुद्धि उसके पैरों में ही रहती थी।वो सबपे हुकम चलाता था और बड़ा इतराता था।
क्योंकि वो सरदार था, पर पीछे सब उसकी बड़ी हँसी उड़ाते थे।वो काम तो कुछ करता नही था पर गलती से कोई काम करता था तो एक बहुत बड़ा भूचाल आ जाता था और इसका खामियाजा उसकी प्रजा को अक्सर चुकाना पड़ता था।पर उसका प्रधान बहुत बुद्धिमान था, इस कारण से मुसीबत कही बाहर आते आते तल जाती थी।
पर सरदार तो सरदार ही था, अपनी बात पे अड़े रहता था। उसे अपनी प्रजा की भी कोई फिक्र नही थी। एक बार की बात है, जंगल मे बहुत बड़ा तूफ़ान आया, तूफ़ान इतना तेज था कि एक बार तो पूरा जंगल हिल गया। कितने पेड़ नीचे गिर गए और कितने पेड़ जड़ो से कमज़ोर हो गए। सब अपनी जान बचाने के इधर उधर जगह ढूंढ रहे थे।
आंधी साथ मे बारिश भी ले के आयी। बारिश सात दिन तक चलती रही। सब बंदर पेड़ो के शाखा पे अपना डेरा जमा के बैठे थे। पर अब पेड़ भी कमज़ोर हो गए थे, और खाने का सामान भी अब कहा रह गया था। परिस्थिति बहुत विकट बन चुकी थी।और पानी नीचे नदिया बन के जंगल मे बह रह था।
बंदरो के सरदार ने सब बंदरो को बुलाया और आदेश दिया, अब तुम छोटे छोटे झुंड बनाओ और पेड़ो को खाली करो, ताकि तुम्हारा राजा सुरक्षित रह सके। सब बंदर विस्मय होके राजा को देखने लगे, पर सरदार का आदेश टालने की हिम्मत किसी मे नही थी।
तभी प्रधान बोला, सरदार जी हम कल सवेरे होते ही बंदरो की एक टोली को यहाँ से रवाना कर देंगे और धीरे धीरे सबको यहाँ से! तभी सरदार बोल उठा कल होते ही यह काम हो जाना चाहिए। और वो जाते जाते कह गया, मेरे आराम का समय हो गया है। ताकि तुम देख लेना।
प्रमुख ने सारे बंदरो को बुलाया और पेड़ो की जो शाखाये नीचे गिर गयी थी, सबकी सहायता से उसने एक नाव का निर्माण किया। यह काम करते करते उसे शाम हो गयी थी पर हाँ एक नाव बनकर तैयार हो गयी थी जिसमे सात-आठ बंदर आराम से बैठ सकते थे।
सवेरे होते ही प्रधान ने कुछ बंदरो का नाम लिया, रामु बंदर, शामू बंदर, कालू बंदर और मंजुलु बंदर जो उसका प्रधान सेवक था। उसने उसको रास्ता दिखाया और कहा उस पहाड़ तक पहुँच जाना और एक गुफा है वही सबको छोड़ देना। और अगर बारिस तेज हो तो तुम भी नाव लेके वापस न आना।
बंदर नाव लेके चलने लगे, जैसे जैसे आगे बढ़ते, पानी का बहाव और तेज हो रहा था। पर हिम्मत की किम्मत है। वो उस पहाड़ तक पहुँच गए। और रास्ते मे कुछ सब्ज़िया और फल साथ मे लेते गए। पानी का बहाव तेज हो रहा था। बंदरो की स्थिति और मुश्किल होती जा रही थी। इसलिए प्रधान ने और लकड़ी इकट्टी करने का आदेश दिया और धीरे धीरे तीन चार नाव बनकर तैयार हो गयी।
प्रधान का सेवक भी एक वापस लौट चुके था। प्रधान ने सबको नाव पे बैठाया और राजा को भी बुलाकर अपनी नाव पे बैठाया। पर सरदार ने अपनी नाव पे किसी को नही बैठने दिया क्योंकि उसे सोना था। और वो नाव के पिछले हिस्से में सो भी गया। बहाव तेज होने के कारण प्रधान की नाव अटक गयी, उसने सरदार को उठने को कहाँ, पर राजा तस का मस नही हुआ। प्रधान ने पूरा जोर लगाया, नाव तो निकल गयी पर सरदार नाव से गिर गए और एक शाखा पे जा के गिरे।
बहाव तेज होने के कारण चाहा के भी वो अपने राजा को अपने साथ नही ले आ पाया। बाकी सब सुरक्षित जगह पे पहुच गए थे।और सबने प्रधान को अपना नया सरदार घोषित कर दिया। जब सरदार की आँख खुली तो उसने खुद को अकेले पाया। आज उसकी बात सुनने वाला कोई नही था। वो सिर्फ अकेले ही रह गया था, ठीक ही कहा हैजैसी करनी वैसी भरनी ।
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