साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य और समाज परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते है। साहित्य और समाज एक दूसरे के प्रतिबम्ब होते है। साहित्य समाज की समीक्षा है, समाज का गौरव है, समाज का आधारस्तंभ है, समाज की नींव है, समाज की आभा है, समाज का देदीप्यमान सरोवर है, अपने विचारो को शब्दो में बांधने की अद्भुत कला है।
साहित्य मार्गदर्शन है, एक प्रेरणस्रोत है, शब्दो की देहली पे विचारो को जोड़ने की अद्भुत शक्ति है।
“साहित्य एक प्रकाशस्तंभ है या ज्योतिमर्य विचारो की अभिव्यक्ति है
साहित्य शब्दो का आभामंडल है या स्वतंत्र समाज की कल्पना है
साहित्य राष्ट्रीय चेतना का सन्देश है या किसी पीड़ित मानवता का लेख है
साहित्य सूर्य की उज्जवल आभा है या किसी समाज का आधार स्तम्भ है। “
साहित्य की कोई सीमा नहीं होती पर हर साहित्य की नींव उस साहित्यकार से बनती है जिसने अपने विचारो को शब्दो में कैसे पिरोया है।
एक साहित्य इंसान की सोच बदल सकता है, उसका आचार बदल सकता है, उसकी जीवन शैली बदल सकता है, इसलिए साहित्य समाज का आधारस्तंभ है, समाज की लब्धि है और समाज की आभा है।
विचारो की अद्भुत शक्ति और शब्दो के बेजोड़ संगम से जिसने भारतवासियो के दिल में विश्वास के तार पिरोये थे, स्वतंत्र भारत का स्वतंत्र सपना जिसने हर आंख में सजाया था, ईंट का जवाब पत्थर से देना जिसने सिखाया था, अनेकता में एकता की झंकार जिसने जगाई थी, सत्य का पैगाम लेकर प्रेम का झरना जिसने बहाया था। यह थे हिन्द के वो साहित्यकार जिसने एक अद्भुत इतिहास रचाया था।
” अनेकता में एकता के अद्भुत तार जिसने जोड़े थे
स्वतंत्र भारत का सपना जिसने हर आंख में दिखाया था
शब्दो के बेजोड़ संगम से जिसने देशभक्ति की ज्वाला जलायी थी
ये थे हिन्द के वो साहित्यकार जिसने एक अद्भुत इतिहास रचाया था। “