नारी जीवन
कमल के सामान सुवासित जिसका जीवन है
औरत क्या है? Women Empowerment in Hindi
एक खिलता हुआ गुलाब
या
पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ
गुलज़ार
ख़्वाशियो का सूरज
या
ढलती शाम की प्यारी सी मरहम
सुख दुख का दर्पण
या
सपनो को रौंद कर देती तुम्हारे सपनो को नया आसमान
क्या है औरत? क्या है इसका स्वरूप?? कहा छिप गया इसका अस्तित्व?? क्यों आज भी वो पिछड़ी है?? क्यों आज भी खुद को साबित करने के लिए उसे देने पड़ते इतने इम्तिहान है?
यह तुम्हारे बस का नही है, यह तुम नही कर पाओगी, तुम इस लायक नही हो पता नही और क्या क्या वो सुनती है पर जब जब काबिलयत की बात आती है तो वह पुरषो से कही गुना आगे पायी जाती है। क्योंकि वो एक
औरत क्या है? Women Empowerment in Hindi/
एक खिलता हुआ गुलाब
या
पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ
गुलज़ार
ख़्वाशियो का सूरज
या
ढलती शाम की प्यारी सी मरहम
सुख दुख का दर्पण
या
सपनो को रौंद कर देती तुम्हारे सपनो को नया आसमान
क्या है औरत? क्या है इसका स्वरूप?? कहा छिप गया इसका अस्तित्व?? क्यों आज भी वो पिछड़ी है?? क्यों आज भी खुद को साबित करने के लिए उसे देने पड़ते इतने इम्तिहान है?
यह तुम्हारे बस का नही है, यह तुम नही कर पाओगी, तुम इस लायक नही हो पता नही और क्या क्या वो सुनती है पर जब जब काबिलयत की बात आती है तो वह पुरषो से कही गुना आगे पायी जाती है। क्योंकि वो एक माँ भी है, बेटी भी है, सास भी है, तो बहु भी है।
Sacrifice भी है, Compromise भी है
तहजीब भी है तो आदर भी है
सपने है तो पहले घर की सहलुहित है
अरमान है तो पहले पूरा करती घर का काम है
थकी हारी भी अपने सपनो को जीती है
कुछ वक्त ही सही पर उसी में वो पता नही क्या क्या बन लेती है
सबकी सुनती है, पर कुछ नही कहती है
तभी तो बात जब patience की आती है तो औरत को ही तवज़्ज़ा मिलती है।
आज वक़्त की ललकार है,
उठ नारी सवेरा कर रहा तेरा इंतज़ार है।
नारी मत हार जिंदगी से, कुछ ऐसा कर जो तुझसे जुड़ा है, तेरे रगों में जो अरमान सजा है। मत भूल, इतिहास जब जब बना है, तब तब कीचड़ से ही कमल निकला है।
अगर जज़्बा तुझमे है तो निकाल अपना हथियार और देखा संसार को नारी कमज़ोर नही होती, बस कही बार रिश्तो के बंधन में उलझी वो सपनो को पीछे छोड़ देती है। नारी कोमल हृदय वाली, प्यार की मूरत और घर की नींव होती है।
जब नारी कुछ करने की ठान ले
तो
पर्वत भी झुक जाता है
नदिया रास्ता दे देती है
साहिल देखते रह जाती है
प्रकति मुस्कुराती है
क्योंकि उसके जज़्बे को देख
आसमा के तारे भी तो खुशी बनाते है।
तू लक्ष्मी, तू सरस्वती, तू ही तो चंडी है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।
एक नये परिवेश में खड़ी आज नारी है
उसकी काबिलयत पे टिकी दुनिया सारी है
संसार निर्मित हुआ उसी के होने से
फिर क्यों पराधीनता की बेड़िया में जकडी नारी है।
मंदिर में नारी को ही पूजा जाता है
हर जख्म पे मरहम वो ही लगाती है
ख़ुशियों का ये संसार उसी से है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकडी नारी है।
तुम्हारे अंश को जन्म देने वाली नारी है
नो महीने गर्भ की पीड़ा सहने वाली है
असहनीय दर्द में भी उफ़ न करने वाली है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।
एक पलक झपकाने पे ही नारी कर देती समर्पण है
ये नही पूछती क्यों करू में तुम्हे अर्पण है
तुम्हारे हर सवाल का जवाब जिसके पास है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।
बंद करो अब लेना उसका इम्तिहान है
उसके तीसरे नेत्र का तुम्हे न ज्ञान है
संभल जा मानव, मत कर उसपे अत्याचार है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।
नारी सशक्तिकरण पर कविता
हर नारी को समर्पित-
रंगों से रंग भर
सपनो से आसमा सजा
अपनी काबिलियत का शोर मचा
वक़्त आज तेरा आया है।
क्यों आंसूं बहाती है
क्यों दुनिया को तू न दिखलाती है
अपने जज़्बे का डमरू बजा
वक़्त आज तेरा आया है।
क्यों चारदीवारी में धंसी है
क्यों सपनो को रौंद कर चली है
उठ बना अपनी नयी मिसाल
वक़्त आज तेरा आया है।
तुझे बनना पड़ेगा चंडी
धारण करना पड़ेगा अपना शस्त्र
तेरे आबरू की रक्षा तू खुद कर
वक़्त आज तेरा आया है।
अकेली तू है तो क्या डर है
तू क्या किसी हिम्मत से कम है
भय को त्याग कर बन जा तू तलवार
वक़्त आज तेरा आया है।
माँ भी है, बेटी भी है, सास भी है, तो बहु भी है।
Sacrifice भी है, Compromise भी है
तहजीब भी है तो आदर भी है
सपने है तो पहले घर की सहलुहित है
अरमान है तो पहले पूरा करती घर का काम है
थकी हारी भी अपने सपनो को जीती है
कुछ वक्त ही सही पर उसी में वो पता नही क्या क्या बन लेती है
सबकी सुनती है, पर कुछ नही कहती है
तभी तो बात जब patience की आती है तो औरत को ही तवज़्ज़ा मिलती है।
आज वक़्त की ललकार है,
उठ नारी सवेरा कर रहा तेरा इंतज़ार है।
नारी मत हार जिंदगी से, कुछ ऐसा कर जो तुझसे जुड़ा है, तेरे रगों में जो अरमान सजा है। मत भूल, इतिहास जब जब बना है, तब तब कीचड़ से ही कमल निकला है।
अगर जज़्बा तुझमे है तो निकाल अपना हथियार और देखा संसार को नारी कमज़ोर नही होती, बस कही बार रिश्तो के बंधन में उलझी वो सपनो को पीछे छोड़ देती है। नारी कोमल हृदय वाली, प्यार की मूरत और घर की नींव होती है।
जब नारी कुछ करने की ठान ले
तो
पर्वत भी झुक जाता है
नदिया रास्ता दे देती है
साहिल देखते रह जाती है
प्रकति मुस्कुराती है
क्योंकि उसके जज़्बे को देख
आसमा के तारे भी तो खुशी बनाते है।
तू लक्ष्मी, तू सरस्वती, तू ही तो चंडी है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।
एक नये परिवेश में खड़ी आज नारी है
उसकी काबिलयत पे टिकी दुनिया सारी है
संसार निर्मित हुआ उसी के होने से
फिर क्यों पराधीनता की बेड़िया में जकडी नारी है।
मंदिर में नारी को ही पूजा जाता है
हर जख्म पे मरहम वो ही लगाती है
ख़ुशियों का ये संसार उसी से है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकडी नारी है।
तुम्हारे अंश को जन्म देने वाली नारी है
नो महीने गर्भ की पीड़ा सहने वाली है
असहनीय दर्द में भी उफ़ न करने वाली है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।
एक पलक झपकाने पे ही नारी कर देती समर्पण है
ये नही पूछती क्यों करू में तुम्हे अर्पण है
तुम्हारे हर सवाल का जवाब जिसके पास है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।
बंद करो अब लेना उसका इम्तिहान है
उसके तीसरे नेत्र का तुम्हे न ज्ञान है
संभल जा मानव, मत कर उसपे अत्याचार है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।
हर नारी को समर्पित-
रंगों से रंग भर
सपनो से आसमा सजा
अपनी काबिलियत का शोर मचा
वक़्त आज तेरा आया है।
क्यों आंसूं बहाती है
क्यों दुनिया को तू न दिखलाती है
अपने जज़्बे का डमरू बजा
वक़्त आज तेरा आया है।
क्यों चारदीवारी में धंसी है
क्यों सपनो को रौंद कर चली है
उठ बना अपनी नयी मिसाल
वक़्त आज तेरा आया है।
तुझे बनना पड़ेगा चंडी
धारण करना पड़ेगा अपना शस्त्र
तेरे आबरू की रक्षा तू खुद कर
वक़्त आज तेरा आया है।
अकेली तू है तो क्या डर है
तू क्या किसी हिम्मत से कम है
भय को त्याग कर बन जा तू तलवार