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Article on Women Day Special

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नारी जीवन

 Article on Women Day Special, Article on Nari Diwas
 Article on Women Day Special

कमल के सामान सुवासित जिसका जीवन है
प्यार से सजा जिसके आत्मा का दर्पण है
मुश्किलो में रहा जिसका सदा संगम है
नारी के जीवन काल का करते हम चित्रण है…..
 
एक नारी की महत्वकांशा को क्यों लोग नहीं समझते, उनकी महत्वकांशा को क्यों हर वक़्त दबाया जाता है,कितने ही अत्याचार आज भी क्यों सहती है,कितनी ही कुर्बानी सहज वो देती है,क्यों आज भी एक लड़की के जन्म को लोग अभिशाप का नाम देते है,क्यों आज भी कितनी नारियो को दहेज की अग्नि में  जला दिया  जाता है। क्यों उनके स्वाभिमान पे कीचड़ आसानी से उछाल दिया जाता है,क्यों उन्हें कांच का टुकड़ा समझकर तोड़ दिया जाता है। क्यों क्यों समाज ऐसे लोगो को पनाह देता है,क्यों उनके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाते।
 
मिट्टी जैसी पावन जिसकी अंतरंग आत्मा है
उसके स्वाभिमान पे लगाया आज दाग है
किस किस को विश्वास करायेगी वो अकेली नारी
जिसके स्वाभिमान पे लगाया इतना बड़ा दाग था ।
 
हनुमान जिसका लाल था उसके चरित्र पे खड़े कितने सवाल
अपनों ने किया बेगाना औरो का क्या उसे ख्याल
दर्द सहा इतना, अहसहनीय उसकी पीर
जंगल में रहकर भी सतीत्व कायम रखा ये उसकी जीत थी ।
 
आज भी एक लड़की का जब जन्म होता है तो मातम बनाया जाता है,कही लोग लड़की को नाले में फेककर एक मासूम जीवन का अंत कर देते है। आज भी हम आधुनिक युग में जीते है जहा शोषण होना आम बात हो गए है। चलचित्र देखकर लोगो की दुर्दशा हो गए है।उनकी नियति में फ़र्क़ आ गया है। लोग नारी का इस्तमाल करने लग गए है।आज जब देश की दुर्दर्शा दिनोदिन बिगड़ रही इसके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले बहुत कम है।
 
आज ख़ुशी बिकती गम के बाजार में
रात गुजुरती देह व्यापार में
फिर क्या ख्वाब लेकर जियेगी एक नारी
जिसका शोषण होता उसी के हिन्दुस्तान में।
 
और जब एक नारी आवाज़ उठाती है तो कहा जाता है
 
देहलीज़ पे पाँव मत धरना
अभिशप्त तुम्हारा चरित्र है
तुम्हारे कारनामे का काला चिट्टा
बना आज समाज का चलचित्र है।
 
कैसे विडम्बना है ये????????
 
नारी कोई वस्तु का नाम नहीं जिसका जब चाहा उपयोग ले लिया..नारी सरस्वती तभी तक है जब तक उसके भीतर छायी ममता है..जिस दिन उसने चंडी का रूप धारण किया उसी दिन लोगो को समझ आ जाएगा की नारी किस शक्ति का नाम है।
 
एक टहनी एक दिन पतवार बनती है
एक चिनगारी दहक अंगार बनती है
जो सदा रौंधी गयी बेबस समझकर
एक दिन मिट्टी वही मीनार बनती है।

औरत क्या है? Women Empowerment in Hindi

Proud to be a women poem


 एक खिलता हुआ गुलाब
     या
 पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ       
 गुलज़ार

 ख़्वाशियो का सूरज
     या
 ढलती शाम की प्यारी सी मरहम

 सुख दुख का दर्पण
      या
 सपनो को रौंद कर देती तुम्हारे सपनो को नया आसमान

क्या है औरत? क्या है इसका स्वरूप?? कहा छिप गया इसका अस्तित्व?? क्यों आज भी वो पिछड़ी है?? क्यों आज भी खुद को साबित करने के लिए उसे देने पड़ते इतने इम्तिहान है?

यह तुम्हारे बस का नही है, यह तुम नही कर पाओगी, तुम इस लायक नही हो पता नही और क्या क्या वो सुनती है पर जब जब काबिलयत की बात आती है तो वह पुरषो से कही गुना आगे पायी जाती है। क्योंकि वो एक

औरत क्या है? Women Empowerment in Hindi/

एक खिलता हुआ गुलाब
या
पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ
गुलज़ार

ख़्वाशियो का सूरज
या
ढलती शाम की प्यारी सी मरहम

सुख दुख का दर्पण
या
सपनो को रौंद कर देती तुम्हारे सपनो को नया आसमान

क्या है औरत? क्या है इसका स्वरूप?? कहा छिप गया इसका अस्तित्व?? क्यों आज भी वो पिछड़ी है?? क्यों आज भी खुद को साबित करने के लिए उसे देने पड़ते इतने इम्तिहान है?

यह तुम्हारे बस का नही है, यह तुम नही कर पाओगी, तुम इस लायक नही हो पता नही और क्या क्या वो सुनती है पर जब जब काबिलयत की बात आती है तो वह पुरषो से कही गुना आगे पायी जाती है। क्योंकि वो एक माँ भी है, बेटी भी है, सास भी है, तो बहु भी है।

Sacrifice भी है, Compromise भी है
तहजीब भी है तो आदर भी है
सपने है तो पहले घर की सहलुहित है
अरमान है तो पहले पूरा करती घर का काम है
थकी हारी भी अपने सपनो को जीती है
कुछ वक्त ही सही पर उसी में वो पता नही क्या क्या बन लेती है
सबकी सुनती है, पर कुछ नही कहती है
तभी तो बात जब patience की आती है तो औरत को ही तवज़्ज़ा मिलती है।

आज वक़्त की ललकार है,
उठ नारी सवेरा कर रहा तेरा इंतज़ार है।
नारी मत हार जिंदगी से, कुछ ऐसा कर जो तुझसे जुड़ा है, तेरे रगों में जो अरमान सजा है। मत भूल, इतिहास जब जब बना है, तब तब कीचड़ से ही कमल निकला है।
अगर जज़्बा तुझमे है तो निकाल अपना हथियार और देखा संसार को नारी कमज़ोर नही होती, बस कही बार रिश्तो के बंधन में उलझी वो सपनो को पीछे छोड़ देती है। नारी कोमल हृदय वाली, प्यार की मूरत और घर की नींव होती है।
जब नारी कुछ करने की ठान ले
तो
पर्वत भी झुक जाता है
नदिया रास्ता दे देती है
साहिल देखते रह जाती है
प्रकति मुस्कुराती है
क्योंकि उसके जज़्बे को देख
आसमा के तारे भी तो खुशी बनाते है।

तू लक्ष्मी, तू सरस्वती, तू ही तो चंडी है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।

एक नये परिवेश में खड़ी आज नारी है
उसकी काबिलयत पे टिकी दुनिया सारी है
संसार निर्मित हुआ उसी के होने से
फिर क्यों पराधीनता की बेड़िया में जकडी नारी है।

मंदिर में नारी को ही पूजा जाता है
हर जख्म पे मरहम वो ही लगाती है
ख़ुशियों का ये संसार उसी से है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकडी नारी है।

तुम्हारे अंश को जन्म देने वाली नारी है
नो महीने गर्भ की पीड़ा सहने वाली है
असहनीय दर्द में भी उफ़ न करने वाली है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।

एक पलक झपकाने पे ही नारी कर देती समर्पण है
ये नही पूछती क्यों करू में तुम्हे अर्पण है
तुम्हारे हर सवाल का जवाब जिसके पास है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।

बंद करो अब लेना उसका इम्तिहान है
उसके तीसरे नेत्र का तुम्हे न ज्ञान है
संभल जा मानव, मत कर उसपे अत्याचार है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।

नारी सशक्तिकरण पर कविता

हर नारी को समर्पित-

रंगों से रंग भर
सपनो से आसमा सजा
अपनी काबिलियत का शोर मचा
वक़्त आज तेरा आया है।

क्यों आंसूं बहाती है
क्यों दुनिया को तू न दिखलाती है
अपने जज़्बे का डमरू बजा
वक़्त आज तेरा आया है।

क्यों चारदीवारी में धंसी है
क्यों सपनो को रौंद कर चली है
उठ बना अपनी नयी मिसाल
वक़्त आज तेरा आया है।

तुझे बनना पड़ेगा चंडी
धारण करना पड़ेगा अपना शस्त्र
तेरे आबरू की रक्षा तू खुद कर
वक़्त आज तेरा आया है।

अकेली तू है तो क्या डर है
तू क्या किसी हिम्मत से कम है
भय को त्याग कर बन जा तू तलवार

वक़्त आज तेरा आया है।

माँ भी है, बेटी भी है, सास भी है, तो बहु भी है।
Sacrifice भी है, Compromise भी है
तहजीब भी है तो आदर भी है
सपने है तो पहले घर की सहलुहित है
अरमान है तो पहले पूरा करती घर का काम है
थकी हारी भी अपने सपनो को जीती है
कुछ वक्त ही सही पर उसी में वो पता नही क्या क्या बन लेती है
सबकी सुनती है, पर कुछ नही कहती है
तभी तो बात जब patience की आती है तो औरत को ही तवज़्ज़ा मिलती है।

आज वक़्त की ललकार है,
 उठ नारी सवेरा कर रहा तेरा इंतज़ार है।
नारी मत हार जिंदगी से, कुछ ऐसा कर जो तुझसे जुड़ा है, तेरे रगों में जो अरमान सजा है। मत भूल, इतिहास जब जब बना है, तब तब कीचड़ से ही कमल निकला है।
अगर जज़्बा तुझमे है तो निकाल अपना हथियार और देखा संसार को नारी कमज़ोर नही होती, बस कही बार रिश्तो के बंधन में उलझी वो सपनो को पीछे छोड़ देती है। नारी कोमल हृदय वाली, प्यार की मूरत और घर की नींव होती है।
जब नारी कुछ करने की ठान ले
तो
पर्वत भी झुक जाता है
नदिया रास्ता दे देती है
साहिल देखते रह जाती है
प्रकति मुस्कुराती है
क्योंकि उसके जज़्बे को देख
आसमा के तारे भी तो खुशी बनाते है।


तू लक्ष्मी, तू सरस्वती, तू ही तो चंडी है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।

एक नये परिवेश में खड़ी आज नारी है
उसकी काबिलयत पे टिकी दुनिया सारी है
संसार निर्मित हुआ उसी के होने से
फिर क्यों पराधीनता की बेड़िया में जकडी नारी है।

मंदिर में नारी को ही पूजा जाता है
हर जख्म पे मरहम वो ही लगाती है
ख़ुशियों का ये संसार उसी से है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकडी नारी है।

तुम्हारे अंश को जन्म देने वाली नारी है
नो महीने गर्भ की पीड़ा सहने वाली है
असहनीय दर्द में भी उफ़ न करने वाली है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।

एक पलक झपकाने पे ही नारी कर देती समर्पण है
ये नही पूछती क्यों करू में तुम्हे अर्पण है
तुम्हारे हर सवाल का जवाब जिसके पास है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।

बंद करो अब लेना उसका इम्तिहान है
उसके तीसरे नेत्र का तुम्हे न ज्ञान है
संभल जा मानव, मत कर उसपे अत्याचार है
फिर क्यों पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी नारी है।

हर नारी को समर्पित-

रंगों से रंग भर
सपनो से आसमा सजा
अपनी काबिलियत का शोर मचा
वक़्त आज तेरा आया है।

क्यों आंसूं बहाती है
क्यों दुनिया को तू न दिखलाती है
अपने जज़्बे का डमरू बजा
वक़्त आज तेरा आया है।

क्यों चारदीवारी में धंसी है
क्यों सपनो को रौंद कर चली है
उठ बना अपनी नयी मिसाल
वक़्त आज तेरा आया है।

तुझे बनना पड़ेगा चंडी
धारण करना पड़ेगा अपना शस्त्र
तेरे आबरू की रक्षा तू खुद कर
वक़्त आज तेरा आया है।

अकेली तू है तो क्या डर है
तू क्या किसी हिम्मत से कम है
भय को त्याग कर बन जा तू तलवार

वक़्त आज तेरा आया है।
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