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Moral Story in Hindi- वो रात के दो बजे

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रात के दो बजे थे। सब गहरी निद्रा में सोये हुए थे। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। तभी अचानक डोर की बेल बजी। किसी को नहीं सुनाई दी। जब लगातार डोर की बेल बजी तो सबकी आंख खुल गयी। सब लॉबी में आ गए। अम्मा तो वहां पहले से मौजूद थी वो नब्बे पार कर चुकी थी। आशीष और रिया तो बहुत डर गए थे। दोनों की उम्र ही क्या थी एक की ७ वर्ष और दूसरे की ११ वर्ष थी।  किसी तरह शर्मा अंकल  जो अब रिटायर्ड हो चुके थे उन्होंने हिम्मत दिखाई और डोर के पास लगी एक छोटी सी खिड़की से झांककर देखा पर वहां कोई नहीं था। कुछ देर बाद फिर सब अपने कमरे में रजाई में दुबक गए। 

गुनाह दस्तक दे चूका था और उसके पदचाप स्पष्ट सुनाई दे रहे थे। बंद दरवाजो की बंद खिड़कियों से भी उसकी सनसनाहट सुनाई दे रही थी। सब रजाई ओढ के सो तो गए थे पर नींद आँखों से खो गयी थी।  भय के तहखाने  से डर कोलहाल मचा रहा था। 

एक घंटे बाद घड़ी में तीन बजे थे। फिर बेल बजी। सब लॉबी में आ गए थे। इस बार सब बहुत डरे हुए थे। बच्चे तो जैसे अम्मा से लिपट गए थे। शर्मा अंकल भी डरे हुए थे। तभी फ़ोन की घंटी बजी। शर्मा अंकल ने कांपते हुए हाथों से फ़ोन  उठाया। फ़ोन पुलिस स्टेशन से कमिश्नर का था उन्होंने शर्मा अंकल को आश्वासित किया अब घबराने की जरुरत नहीं है। अगर आपके वहा से किसे ने फ़ोन कर हमे इतला नहीं किया होता तो आज भी यह सूरज गैंग हमारे हाथ से निकल जाती। आज आपकी समझदारी ने आज इतना बड़ा गुनाह होने से बचा दिया।शर्मा अंकल ने दरवाजा खोला तो सामने पुलिस के कुछ लोग और भयानक से दिखने वाले सूरज गैंग के लोग थे जो अब पुलिस की जकड में थे। 

पुलिस वहां से चली गयी। शर्मा अंकल ने दरवाजा बंद किया और माँ के चेहरे की मुस्कराहट देख वो समझ गए और माँ के पास बैठ गए और उनसे पूछा माँ आप यह कैसे कर लेती है। आपको हर बात पहले कैसे पता चल जाती है।  आज आपकी समझदारी की वजह से इतना बड़ा संकट तल गया नहीं तो आज –तभी माँ ने शर्मा अंकल को वही रोक दिया और हसकर जवाब दिया माँ हु बच्चों पे मुसीबत आने से पहले उसका आभास हो जाता हैऔर बच्चों पे गम का एक भी बादल न ठहरे इसी प्रयास में माँ की उम्र निकल जाती है। शर्मा अंकल की आंख भीग गए और उन्होंने माँ को अपने बाहों में भर लिया। फिर सब निश्चित होकर सो गए थे। पर उस रात माँ नहीं सो पायी थी। क्यूंकि माँ होती ही ऐसी है। 

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2. Story In Hindi-वो दौड़ता हुआ हिरन

कभी कभी वक़्त हमसे हमारा सब कुछ छीन रहा होता है तभी एक पशु एक उम्मीद की किरण बन हमारे रास्ते में आ जाता है !! लेकिन क्यों ??

राघव एक मध्यम परिवार से था। उसकी माँ हमेशा उसे कहा करती थी की अपने शौक के लिए कभी किसी जीव की हत्या नहीं करना फिर वो मामूली मछर क्यों नहीं हो और यदि कोई जीव को हम बचा सके तो इससे बड़ा पुण्य और कोई नहीं होता। क्योंकी उसे भी वेदना होती है और उसे भी अपनी तरह जीने का पूरा अधिकार है। 

एक दिन राघव विद्यालय से लोट रहा था उसने देखा कुछ लोग हिरन का शिकार कर रहे थे और उसके पीछे दौड़ रहे थे। कुछ देर बाद हिरन के पैर पे एक गोली लग गयी और वो दर्द से छटपटा रहा था। राघव अपनी नजरे चुराता हुआ हिरन के पास पंहुचा और उसने हिरन को अपने बाजओ में उठाकर उसे एक सुरक्षित स्थान पर रख कर वहा से चला गया  । इधर जब हिरन कही दिखाई नहीं दिया तो वो लोग भी निराश होकर लौट गए। 

आज राघव एक अमीर आदमी बन गया था। सुख रहने के सारे संशाधन उसके पास थे। आज जब वो अपने गांव लौट रहा था तो कुछ लोगो ने उसे घेर लिया। जंगल का रास्ता था तो मदद की गुहार लगाना बेकार था। अब वो क्या करे वो लोग तो उसे मारने पे उतारू थे। तभी जंगल से एक हिरन पता नहीं कहा से आया और उन चार पर भारी पड़ा। इसमें हिरन को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। और वो बेभान होकर राघव के पेरो पे गिर पड़ा तब राघव को २५ साल पुराना किस्सा याद आया जब उसने एक हिरन की रक्षा की थी। आज वो शहर तो सुरक्षित लौट आया पर वो हिरन उसके दिमाग में एक प्रशनचिन्ह छोड़ आया क्या पशु भी अपना क़र्ज़ चुकाते है ??
क्या उनमे में दिल नामक अंग होता है ?? क्या उन्हें भी वेदना होती है ?? अगर हां तो हम मानव इतना निर्मम क्यों है ?? क्यों उनपे अत्याचार करते है ?? अपने शौक के लिए उन्हें मार देते है ?? क्यों ?? क्यों उन्हें काट कर अपना पेट भरते है ?? क्यों ?? 

आज राघव का जानवरो के प्रति उसका प्रेम और भी बढ़ गया क्यूंकि मानव के तरह वो स्वार्थी नहीं होते। इतना ही नहीं उसने कसम खा ली किसी भी जीव को वो अपने हाथो से मारेगा नहीं न ही अपने शौक के लिए न ही अपने पोषण के लिए!!! आज वास्तव में एक पशु ने एक इंसान को ही बदल दिया था !!!!

3.Moral Story in Hindi|इंसानियत का मंज़र

कहते है हर रात के बाद सवेरा होता है पर जब रात किसी शख्सियत का इंतज़ार करते हुए राहो पे खड़ी होती है तब कोई बेहाल होता है तब सवेरा को भी निकलते हुए देर हो जाती है तब इंसानियत का भी इम्तहान होता है।

आज की कहानी एक तीस वर्षीय पंकज नाम के लड़के के इर्द गिर्द घूमती है। पंकज रोज की तरह आज भी ९ बजे ऑफिस के लिए निकल चूका था। ऑफिस पहुँचकर वो अपने काम में तलीन हो गया। उसका अपना लकड़ी का बहुत बड़ा कारखाना था। कुछ शाम के छह बजे थे, उसके दोस्त का फ़ोन आया और मूवी चलने को कहा। पंकज चलने को तैयार हो गया और कुछ ७. ३० बजे वो ऑफिस से निकल गया। पंकज ने फिर माँ को इत्तला करने के लिए फ़ोन किया की आज वो लेट आएगा और खाना भी खा के आएगा। 

वो हाइवे पे गाड़ी चला रहा था। तभी अचानक एक ट्रक पता नहीं कहा से आकर उसके अंदर घुस गयी। उसकी बाइक को जैसे गायब ही हो गयी और वो एक तरफ जा कर गिर पड़ा। उसके पलकों के ऊपर से खून बहा जा रहा था और उसके हाथ पैर पर भी बहुत चोटे आयी थी। वो बेझान पत्ते के भाति एकदम शांत हो गया था। 

इधर उसका दोस्त उमंग उसे फ़ोन कर रहा था पर जब उसने फ़ोन नहीं उठाया तो तो वो भी हाइवे की तरफ उसको देखते हुए निकल पड़ा। इधर एक सज्जन पुरुष उसकी तरफ आये और उसे अपनी गोद में उठा गद्दी में बैठाया और उसके पलकों पे कस के रुमाल बांधा और सीधा अस्पताल ले आया। फिर डॉक्टर उसे सीधे इमरजेंसी वार्ड में ले गए और नर्स ने उसके जेब से बजते हुए फ़ोन को उसे लालदास सेठ को थमाया और उन्होंने उमंग का फ़ोन उठा उसे हादसा के बारे में इत्तला किया। उमंग ने उसके घरवालों को भी फ़ोन किया और वो सीधा अस्पताल पहुंच गया। 

O.T की लाइट बंद हो गयी थी और डॉक्टर ने लालदास सेठ की पीठ थपथपाई और कहा अब वो लड़का खतरे से बाहर है।  इतनी देर में उसका दोस्त और उसके घरवाले भी पहुंच गए थे। यह सुनकर सबने शांति की सांस ली। 

पंकज को अब धीरे धीरे होश आ रहा था। उसके पास उसका मित्र उमंग बैठा था। उसका पहला सवाल मुझे अस्पताल कौन लेकर आया और मुझे वो याद क्यों नहीं है। गिरने के बाद क्या हुआ था और में यहाँ कैसे आया, मुझे क्यों याद नहीं है। वो १५-२० का वक़्त उसके मानसपटल से जैसे गायब ही हो गया था। 

तभी उसके चाचा ने उसे रोका और पूछा बैठा यह एक्सीडेंट हुआ कैसा तभी उसके जवाब सुनकर तो डॉक्टर भी हसने लग गए। उसने कहा चाचा वो कुछ ऐसा आया और में कुछ ऐसे भिड़ा देखा जाये तो Technically गलती उसकी थी पर Logically गलती मेरी थी। फिर किसी ने कुछ नहीं पूछा सब तो उसकी सलामती को लेकर ही खुश थे पर उसके ज़ेहन में अब भी वो १५-२० का अंतराल कही घूम रहा था। 

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पूरे देश मे लोकडौन लग चुका था,स्थिति बहुत गंभीर बनी हुयी थी क्योंकि कोरोना का प्रकोप दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा था। इस बीच मे जोधपुर का छोटा सा गाँव चौका जिसके एक परिवार की स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी थी।कहते है गरीबी में आता गिला वो कहावत आज सही साबित हो रही थी। राजू अपना सर पकड़कर बैठ चुका था क्योंकि उसकी मेहनत की कमाई तो दिन भर के काम से ही तय होती थी।

राजू के घर मे उसके पत्नी और उसके बूढे माँ,बाप भी रहते थे। माँ की तबियत भी ठीक नही रहती थी। राशन  भी घर मे सिर्फ दो दिन का ही था, खाने पीने के लिए भी पैसा कहाँ से आयेंगा और माँ को दवाई नही दी तो माँ की तबियत तो और बिगड़ जायेंगी। उसने अपने सभी दोस्तों को फ़ोन किया और अपनी स्थिति के बारे में बताया पर किसी ने उसकी मदद नही की।

दो दिन बाद राजू की पत्नी आकर बोली सुनते हो जी, राजू बोला क्या हुआ घर मे राशन खत्म हो गया है और सिर्फ आज आज का ही रह गया और और माँ की दवाई की भी आखिरी दो गोली बची है, अब हम क्या करेंगे। शाम तक माँ की तबियत भी खराब होने लगी थी, तभी द्वार पे घंटी बजी, राजू की पत्नी ने दरवाजा खोलावहाँ एक आदमी सर्दी से थर थर कांप रहा था और भूख से तड़प रहा था।

राजू गरीब तो था पर बहुत नेक दिल इंसान था। वो उठा और उन्हें अंदर ले आया और अपने हिस्से का बचा हुआ खाना भी उसे खिलाया। उस गरीब ने राजू को बहुत आशीर्वाद दिया और अपने जेब से एक Address निकालकर दिया और  कहा कल सवेरे होते ही वहाँ चले जाना। 

 राजू को लगा वो युही कहकर गया होगा वरना जिसके खुद के पास खाने को कुछ नही है, सर्दी से जो तड़प रहा है वो भला मेरी कैसे मदद करेगा। पर राजू की पत्नी बोली तुम्हे एक बार यहाँ जाना चाहिए, क्या पता वो आदमी वाक़ई तुम्हारी मदद करने के लिए आया हो। राजू को अपनी पत्नी की बात सही लगी।

अगले दिन सुबह सात बजे ही राजू वहाँ पहुँच गया। वो बर्तन की बहुत बड़ी फैक्ट्री थी। वो अंदर गया और सामने बैठे मेज पे आदमी से पूछा मैनेजर से मिलना है, नौकरी की तलाश में आया हु। मेज पे बैठे वो आदमी ने कहा यहाँ कोई नौकरी नही है, यहाँ से चले जाओ, तभी मैनेजर वहाँ से अपने केबिन की और जा रहा था, राजू ने कहा मुझे शर्मा अंकल ने भेजा है और कहा यहाँ तुम्हे काम मिल जायेगा।

मैनेजर वही खड़ा रह गया और उसने उसे अंदर बुलाया। मैनेजर ने उसे बैठाया, पानी पिलाया और चाय भी मँगवाई और पूछा तुम शर्मा अंकल को कैसे जानते हो। तब उसने कल रात की आपबीती सुनायी। मैनेजर सुनकर हैरान हो गया। शर्मा अंकल को गुज़रे हुए दो साल हो गए थे और वो उसके बाप समान थे। उसने उसको फ़ौरन नौकरी पे रख लिया और एडवांस के तौर पे कुछ पैसे भी दिए ताकि ऐसी हालत में वो अपने परिवार की देखरेख अच्छे से कर सके। 

राजू बहुत खुश हो गया था और वो समझ गया कितनी भी विपति आ जाये पर भगवान किसी न किसी रूप में आकर मदद जरूर करते है। वो अपने घर आया और आते आते राशन का सामान और माँ की दवाई भी लेते आया। आज राजू बहुत खुश था क्योंकि उसे नौकरी जो मिल गयी थी।

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