एक नवीं कक्षा का लड़का था सुरेश। मेघावी बुद्धि और पढ़ने में बहुत
होशियार था। हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान हासिल करता था पर सुरेश में एक बुरी आदत थी उसमे अहं कूट कूट के भरा था। इसलिए कक्षा के अधिकांश बालक उससे दूर रहते थे और इस आदत से कक्षा के शिक्षक भी परिचित थे पर सुरेश की बढ़ती हुए जीत के कारण उसे कोई टोकता भी नहीं था।
क्यूंकि अब अगला सत्र आरंभ हो गया था तो कुछ नये बालक का भी कक्षा में दाखिला हुआ। उसमे से एक बालक जिसका नाम विनोद था बहुत मेधावी और शांत स्वभाव का था। नियमित कक्षाए अब चलने लगी थी और विनोद की मेघावी बुद्धि को देख सब बालक अचंभित हो गए थे।
क्यूंकि विनोद शांत स्वभाव और सबकी मदद करता था प्रश्न को हल करने में इसलिए कक्षा के सारे बालक उसके इर्द गिर्द ही रहते थे। यह बात सुरेश को पसंद नहीं आती थी इसलिए खाली समय में वो पुस्तकालय जाकर बैठता था।
जब परिणाम आया तो विनोद को कक्षा में प्रथम स्थान मिला और सुरेश कुछ अंकों से पीछे रह गया। सुरेश पगला सा गया था। आज उसके अहम् को चोट लगी थी। उसने सारे पेपर फाड़ दिए और उसकी इस गलती की वजह से उसे १ महीने के लिए विद्यालय से बाहर होना पड़ा।
अब सुरेश अंदर ही अंदर खुद को कोस रहा था और वो विषाद से भर गया। डॉक्टर के पास ले जाने पर भी कोई फरक नहीं पड़ा। और वो और कमजोर हो गया था। घर में सब अब बहुत परेशां हो गए थे।
तभी डोर की बेल बजी तो सामने विनोद और उसके अध्यापक खड़े थे।
उसकी माँ ने उन्हें अंदर बुलाया और ठंडा जल पिलाया और विनोद ने सुरेश को घर के एक छिपे हुए कोने से बाहर निकला और आज उसके अध्यापक ने सुरेश कोजीवन का वो पाठ पढ़ाया जो उसके माता पिता को बहुत पहले पढ़ा देना चाहिए था। उसका अहम् आज चूर हो गया था और उसने अध्यापक और विनोद से माफ़ी मांगी। और अध्यापक के कहने पे उसकी सजा भी माफ़ हो गयी थी। सब कुछ पहले की तरह हो गया था बस अब सुरेश बदल गया था। कक्षा के बच्चे सुरेश के इर्द गिर्द रहने लगे थे।
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