कितना अनोखा होता है न हम बेटियों का संसार जन्म कही और होता है
Hindi Article on Saas Bahu Relation |
लेकिन महकाती किसी और आंगन को है। एक दीपक की लौ की तरह अविरल जलती ही रहती है। हमारा अपना तो कोई बसेरा होता नहीं माँ के लिए पराया धन और सास के लिए वो बहु ही होती है। क्यों हमे बचपन से यही सिखाया जाता है ऐसा करो, ऐसा मत करो कल पराये घर जाना है। संस्कार कही और ग्रहण करती है समर्पित कही और होती है। हर रूप में ढल जाती हर देह में निखर जाती है। उम्र बीत जाती रिश्तो को सवारते हुए फिर भी बहु को बेटी का दर्जा क्यों नहीं मिल पाता है।
मायके की देहलीज़ लांधी नहीं जिम्मेदारियो का एहसास होने लगता है, रिश्तो के जाल में कुछ यू बंध जाते है कई बार तो खुद के लिए जीना भी भूल जाते है। हर वक़्त एक नया अध्याय पढ़ना पढता है फिर यह जरुरी नहीं हमे वो पढ़ना है या नहीं। हमारी इच्छा बस रिश्तो को सवारने में चली जाती है और कुछ हम दिल के किसी कोने में समेट लेते है। सबका ध्यान रखना, सबकी जरुरत पूरी करना यही हमारी दिनचर्या होती है, इसे हम बखूभी निभाते भी है क्यूंकि हम बेटिया होती ही ऐसी है।
नूर होती आँखों की
महक होती आंगन की बेटिया
सबसे प्यारी सबसे निराली
मनमोहक सी प्याली होती है बेटिया
डोर रिश्तो की संभाले
सबका ख्याल रखती है बेटिया
पंखो को हवा लगी नहीं
फुर से उड़ जाती है बेटिया।
पर फिर भी एक सवाल जेहन में बार बार उठता है। क्या बहु कभी बेटी नहीं बन सकती??? क्यों वो देहरी का दीपक बन रह जाती है। सवाल कही और भी है पर जवाब किसी के पास नहीं है। बस इतनी सी आरज़ू है की हर सास अपनी बहु को बेटी मान प्यार से एक बार गले लगा ले तो मकान घर बनने में देर नहीं लगेगी और खुशी दोगुनी होने में वक़्त नहीं लगेगा।
————-कुछ लफ्ज़ बहु को समर्पित ————
बेटी नूर है तो बहु कोहिनूर है
बेटी हीरा है तो बहु पारस है
मूल्य दोनों का अपनी जगह है
फिर भी
दुनिया क्यों करती आनाकानी है।