धरती की इस धुरी पे ऐसा जाज्वल्यमान नक्षत्र विराजमान है जहा ईष्या रूपी धधकती दावानल अग्नि का वास है। इंसानो के रूप में जहा छिपा महादानव है। क्रोध और ईष्या से अभिव्यंजित विशाल जहा साम्राज्य है। एक दूसरी की ख़ुशी को देख दिल में जलती ईष्या रुपी आग है।
” क्षणभंगुर इस जीवन में जीने की न कोई प्रनि धि है, नहीं कोई लक्ष्य है
नहीं कोई अचार विचार है, नहीं प्यार और अपनेपन का स्थान है
नहीं जहा कोई प्रयास है, नहीं जहा कोई अभ्यास है बस
दूर दूर बिखरे कोयले रुपी अग्नि के जलते हुए बीज है ”
दुनिया का ऐसा अस्तित्व है आज की हर प्राणी औरो को देख दुखी होता है। औरो का धन दौलत और वैभव देख ईष्या से जल भून जाता है। इंसान का अपना कोई अस्तित्व नहीं है, अपनी कोई मंज़िल नहीं है, रास्ता नहीं है ,शक्ति नहीं है , पुरषाथ नहीं है और वो अपने कायदे कानून और नियम औरो के अनुरूप ढाल देता है।
‘‘ नहीं कोई अस्तित्व जिसका नहीं कोई जीने की प्रणाली है
नहीं कोई नियम कायदे कानून नहीं जिसमे पुरषार्थ कही
नहीं कोई मंज़िल जिसकी जिंदगी उसकी महत्वहीन है
ईष्या और क्रोध की धधकती चिंगारी जहा मनुष्य का नहीं दानव का वहा वास है। ”
एक ही बात कहना चाहुगी ———-
” जिंदिगी को इस ढंग से जियो की आपकी
जिंदगी को देखकर लोग प्प्रस्फुटित हो जाये
जिंदगी को इस ढंग से मत जियो की आपको
देखकर लोग जिंदगी से दुखी हो जाये। ”
जब चारो और ईष्या के बीज अंकुरित होते है तो प्रसन्नता कहा रह पाती है। क्रोध से जीभ से जब कटुक्ष वचन निकलते है तो सरस्वती कहा रह पाती है। जब क्रोध और ईष्या के बीज सम्मलित हो जाते है तब दीपक की लो छटपटाने लगती है। अंधकार जहा चारो और प्रहरा लगाने लगता है। किस्मत जब साथ छोड़ने लगती है और बर्बादी हमारे सामने खिलखिलाकर हसने लगती है। ऐसी प्रचंड वायु चलती है जो सब कुछ तहस नहस कर रख देती है इसलिए स्वभाव से नरम बनो और दिल से पवित्र बनो।
” कैसे जीते लोग ऐसे मौहोल में जहा चारो और अग्नि की लपटे घेर रही है
कैसे जीते लोग ऐसे मौहोल में जहा प्यार और अपनेपन का होता अपमान है
अपमान से अपमानित होकर अपने अस्तित्व को निलाम जहा करते है
ईष्या और क्रोध में अग्नि में राख अपने शरीर को करते है। ”
सोचो अगर आस्मां में ग्रह नक्षत्र तारे नही होते , धरती पे पानी नहीं होता , नहीं भूमि में अन्न होता तो क्या होता????
” नहीं आसमान में ग्रह, नक्षत्र , तारे है
नहीं धरती पे पानी है
नहीं भूमि पे अन्न और खान है
वहा दूर दूर तक फैला सुना रेगिस्तान है। ”
उसी प्रकार अगर इंसान अपनी सीमा छोड़ दे ,
पापो का घड़ा भर जाये तो क्या होगा
” नरक में उसका वास होगा
नहीं कोई उसके पास होगा। ”
उसी प्रकार जहा प्यार और अपनापन नहीं , क्रोध की धधकती चिंगारी जहा, आत्मघात होता सद्गुणों का वहा साक्षात नरक का वास है।
” महक रही भूमि प्रेम और अपनेपन से जहा,
सत्आचार और सद्गुणों का होता जहा सम्मान है
इंसानियत के नाम पे जहा होता बलिदान है
वहा साक्षात् देवताओ का वास है। ”
रिंकल
ईष्या और क्रोध
NICE WORDING
Thnku bhaiya
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