”कागज़ की कश्ती थी मुस्कुराता हुआ बचपन था
बुढ़ापे की लाठी लड़खड़ाता हुआ जीवन है।”
Best Hindi Article on Gen Gap |
आज सुबह चाय की चुस्की लेते हुए दादी माँ बतिया रही थी , एक वक़्त था जब हम नदी किनारे बैठे कागज़ की नाव चलाते थे और एक आज का दिन है खाट पे पड़े-पड़े वक़्त को कोसते है। कितनी अजीब जिंदगी की तस्वीर है। एक तरफ बचपन मुस्कुरा रहा है तो दूसरी तरफ अम्मा फुसफुसा रही है , एक तरफ जहा पूरी जिंदगी सामने खड़ी तो दूसरी तरफ दहलीज़ पर खड़ी जिंदगानी है। एक तरफ जहा मासूम सा सलोना बचपन है तो दूसरी तरफ शरीर पे सिलवटिया है। एक तरफ जहा नन्हे हाथ थाम रही जिंदगी है तो दूसरी तरफ धूजते हुए हाथ से चाय भी गिर पड़ी है। यही जिंदगी की सचाई है हक़ीक़त की हसरत है।
”पैर पसारती है जिंदगी
कुछ लम्हो के लिए
सिमट जाती वो फिर
सिगरेट के धुए की तरह। ”
क्या अजीब जिंदगी की तस्वीर है रेत की तरह पिघलती हुए बारूद के ढ़ेर में मिल जाती है। पर पता है मुस्कुराता हुआ बचपन और उम्रदकाज बाबूजी में समानताये बहुत होती है। एक आयना है तो एक दर्पण है। दोनों का स्वाभाव एक दूसरे को समर्पण है। एक तरफ जहा बचपन की जिद है तो दूसरी तरफ बुढ़ापे की लाठी है। एक तरफ जहा अमरुद के बाग़ है तो दूसरी तरफ आम का बगीचा है। एक तरफ जहा सलोना बचपन है तो दूसरी तरफ बाबूजी की सीख़ है। एक तरफ जहा मुस्कराहत देती जवाब है तो दूसरी तरफ ख़ामोशी करती सवाल है।
स्वरुप जिंदगी का बड़ा ही निराला है , चादर पसारती रिश्तो का प्याला है
खुबसुरती से बचपन घुला है , बुढ़ापे की सीख से सोना फिर निखरा है।
आज इतने आरसे बाद अम्मा की हाथ की चाय बड़ी ही अच्छी लग रही थी। मन को आनंदित कर रही थी। उनका किस्से सुन मन रोमांचित हो गया था। और आज एक चाय की चुस्की ने मुझे जीवन का वो पाठ सीखा गयी जो शायद समझने में पूरा जीवन ही चला जाता है फिर भी हम कोरे कागज़ रह जाते है।
ऐसी ही होती है दादी माँ।
ek no.
Thnku
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