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Father Essay- बिन पिता बचपन कैसा

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                              बिन पिता बचपन कैसा

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Father Essay

Father Essay
एहसासो के इस दौर में आज एक एहसास उतर आया
बिन पिता बचपन किसको भाया है
वो बच्चों की खुशियों का सांता क्लॉज़ है
वो उनकी दुनिया का सबसे प्यारा राजकुमार है।

वो कठपुतलियो का सलोना संसार है पर उसमे छिपा एक राजकुमार है। इर्द गिर्द उनके सपनो का छाया जाल है। कभी वो बासुरी बजा रहा है तो कभी लोरी सुना रहा है , कभी मुँह बनाता तो कभी नृत्य से बचपन को इठला रहा है। कितनी अनोखी सृस्टि है , पिता की दुनिया करती भक्ति है। पता नहीं हर जगह क्यों माँ की ही महिमा गायी जाती है, पिता में भी सिमटी प्यार की अभिव्यक्ति है।

वो बचपन अठखेलिया कर रहा है , पिता रंगो से उसे रंगीन बना रहा है। वो पिता का प्यार भरा आलिंगन, वो ऊँगली थामे पिता की बचपन का पहला कदम , वो अपनेपन का एहसास , वो खुशियों का गुलज़ार , वो मासूमियत का मंज़र, पिता के उन मजबूत कंधो पर नन्हे हथलियों का स्पर्श, वो खेलता मुस्कुराता बचपन, वो आंख मिचोली, वो नए सफर की हमजोली, उन खूबसूरत लम्हो को कैद करती पिता की कैमरे की वो आंखे।
कितना अनोखा और कितना प्यारा होता बचपन और कितना सलोना होता पिता के साथ इनका जीवन। खुशियाँ लोरी सुनाती है, प्यार और अपनेपन के नगमे सुनाती है। सौंदर्य आंगन का बढ़ाती है , नन्ही किलकारी और रिश्तो से जीवन को महकाती है।

पिता शब्द  का सारांश

सारे फूल तुझसे ही है
यह खिलता हुआ बगीचा तुझसे ही है
ऐ मेरी जिंदिगी के बादशाह
यह सफर भी तुझसे ही है। 

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