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पृथ्वी दिवस पर निबंध भाषण 2023 | Earth Day Essay in Hindi | Speech on World Earth Day in Hindi

vishv prithvi diwas bhashan, speech on world Earth day in hindi

चाँद की चाँदनी रात में सितारो के बीच
महकती इन फ़िज़ा में बादलो के बीच
लहराते हुए सागर में लहरो के बीच
मंडराते हुए भवरो में फुलो के बीच
धरती माँ के गोद में खिलते हुए फुलो के बीच
गंगा यमुना जैसी पवित्र नदियो के बीच लगता है प्रकृति कितनी खूबसूरत है……

आज विश्व पृथ्वी दिवस की सबको हार्दिक शुभकामनाएं देती हु और इस दिवस पर मुझे मंच प्रदान करने के लिए आपका तहदिल से धन्यवाद ज्ञापित करती हु।

आज पर्यावरण तेजी से प्रदूषित हो रहा है क्योंकी मानव ही वन की कटाई कर प्रकृति पर पत्थर उछाल रहा है, लाखो जीव जंतुओं के अस्तित्व को मिटा रहे है, मिट्टी का क्षरण, बाढ़, भूमिगत स्तर का नीचे गिर जाना आदि परिशानियो को न्यौता दे रहे है, ग्लोबल वार्मिंग को जन्म या ओजोन परत का क्षरण का कारण मानव ही तो बन रहा है क्योंकी मानव आज अपने स्वार्थ में इतना अंधा हो गया की वो अपना हित तो साध लेते है पर आने वाली पीढ़ी के लिए संकट के द्वार खोल देते है। वो दक्षिण अमेरिका के अमेजन बेसिन नामक जंगल जो लगातार २०-३० वर्षो से जले जा रहे है उसका कारण भी मानव की बदली हुई जीवनशैली ही है।

किसी कवि ने कहा है,
रुख लगाया, राख्या कोनी
मीठा फल भी चाख्या कोनी
स्वार्थी री ले हाथ में कुल्हाड़ी, काटण हुआ उतावला
बोलो किन्नरा काम सरावा, किन ने बोलो बावला।

जब जब मानव प्रकृति से खिलवाड़ करता है, तब तब प्रकृति ने अपना नया रूप दिखाया है। एक आदमी ने सुअर को खाया और भावी पीढ़ी को स्वाइनफ्लू नामक बीमारी से ग्रसित होना पड़ा। कहा भी है एक डूबा साथ मे हज़ारो को ले पड़ा। हम अपने घर को तो साफ़ करते है पर क्या हम उस कचरे को सडक़ पे नही फेंकते, हम हरे भरे वातावरण में रहना पसंद करते है पर क्या कभी हमने वृक्षारोपण किया, हम satamye jayate नामक कार्यक्रम को देखना पसंद करते है पर क्या कभी हमने पानी की एहमियत समझी क्योंकि हम सोचते ही नही है। सुंदर भारत का स्वप्न सजातें है पर क्या हमने कभी खुद को बदला, जिस दिन हमारी सोच में परिवर्तन होगा, उसी दिन एक सुंदर भारत का निर्माण होगा।

दिन दिन बढ़ती आबादी में पैदा कर दी विपदाएं,
बटते बटते घटी घरों में सब तरह की सुविधाएं।

बढ़ती आबादी भी प्रदूषण को निरंतर बड़ा रही है।

बात करे गंगानगर की जहा की फसले कीटनाशक से फलीभूत तो हो गई पर मनुष्य की लालसा ही थी जिसने कैंसर जैसे बीमारी को आमंत्रित कर दिया और अपने हाथ अपनी कब्र खोदी। आज गंगानगर से बीकानेर जाने वाली ट्रेन को कैंसर ट्रेन के नाम से जाना जाता है l इतना ही नही आज एक मां अपने बच्चे को दूध पिलाने से पहले सो बार सोचती है। यह मानव की संकृण मानसिकता का ही प्रमाण है।

इसलिए आज इस जगह एक संकल्प लेते है और मिलकर इसे सफ़ल बनाते है और पेड़ लगाकर पर्यावरण को हरियाली का श्रृंगार पहनाते है और इसी हरियाली के बीच रहकर हम अपने जीवन का प्रकृति के साथ सामझनस्य स्थापित करते है और विश्व पृथ्वी दिवस की सबको शुभकामनाएं देते है और कामना करते है हम सब मिलकर प्रकृति को सुंदरता की चादर ओढ़ायेंगे इन्ही भावनाओं के साथ चार पंक्ति कहकर अपनी वाणी को विराम देती हु।

आशाओं के दीप जलाकर
एक नया सवेरा लेकर आई हु
पर्यावरण को
हरियाली की चादर ओढ़ाने आई हु।

आज विश्व पृथ्वी दिवस पर इतना ही कहने आई हु
खुद से ऊपर उठे करे दुनिया का श्रृंगार
तभी पर्यावरण की बाहो में हरयाली करेगी विराम।

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