दिन वो आज आया है
तिरंगा खुलकर मुस्कुराया है
तोड़ कर पराधीनता की बेड़ियों को
देखो ध्वज कैसे फहराया है।
सादर नमस्कार, यहां उपस्थित सभी श्रोतागणो को मेरा प्रणाम।
स्वन्त्रता दिवस की सबको हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं और इस गौरवशाली दिन पे अपनी बात रखने के लिए, मुझे मंच प्रदान करने के लिए तहदिल से आपका शुक्रिया अदा करती हूं।
जैसा कि हम सब जानते है कि आज का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है और यह सिर्फ एक दिवस ही नही बल्कि स्वंत्रत भारत की स्वन्त्रता का प्रतीक है, क्योंकि आज के ही दिन भारत अंगेज़ी हुकूमत से पूरी तरह आज़ाद हुआ था और पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ सोने कि चिडिया कहने वाला भारत फिर खुली हवा में सुकून की सांस लेने लगा था।
पर यह आज़ादी इतनी आसाम नही थी, इस आज़ादी के लिए कितने वीरो ने संघर्ष किया, भगतसिंह सुखदेव, चंद्र शेखर आज़ाद, सुभाषचंद्र बोस, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि ने लोगो मे क्रांति की ज्योत न जलायी, बल्कि जंग के मैदानों में कूद पड़े, अत्याचार सहते रहे, पर तिरंगे को झुकने नही दिया, भारत माँ का मान, सम्मान स्वाभिमान कायम रखा। हम तो कल्पना भी नही कर सकते, जलियांवाला बाग देखो जहाँ खूब चली थी गोलियां, या भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को देखो जो हँसते हँसते फांसी पे चढ़ गए, पर इंकलाब के नारे से धरती को गुंजा दिया, चंद्रशेखर आज़ाद को देखो अंग्रेजों की गोली से उनको मरना मंज़ूर न था, अपने ही हाथों अपनी प्राणों को आहुति दी, ऐसे सच्चे
वीर धरती माँ के जिनकी वजह से ही अंग्रेज़ो की गुलामी से आज़ाद हो पाए थे।
कतरे कतरे में आज़ादी का लहू जहाँ बहता था,
छोटी सी उम्र में भी देशभक्ति का झरना झर झर करता था
इंकलाब जिंदाबाद के नारे जहाँ हर गलियारे में गुंजा करता था
यह आज़ादी के वो परवाने थे, जिन्होंने तिरंगे से अपना कफ़न बांधा था।
आओ सलामी उन्हें भी दे, जो इस देश के सच्चे रक्षक है, जो बर्फीली पहाड़ो में चट्टान बने खड़े रहते है, मौत को भी जो हथेली पे लेकर चलते है और हमेशा तैनात खड़े रहते है, उनके लिए कुछ पंक्तियों कहकर इस गौरवशाली भारत के सच्चे गौरव को सलाम करती हूं और अपनी वाणी को विराम देती हूं ।
खड़े है वो शरहद पर
हम घर मे दीप जलाते है
वो रात भर पहरा लगाते है
हम चैन की नींद सो जाते है।
फौजी की वर्दी पहनकर
सीना तान के खड़े रहते है
दुश्मन को भी
जो मौत की नींद सुला देते है।
बर्फीली पहाड़ियों पर
हौसले की उड़ान भरते है
सबसे ऊँची चोटी
शौर्य का इतिहास रचते है।
वो भारतीय सैनिक ही है
जिनके जज़्बे की अलग ही गाथा है
तभी तो दुश्मन का कलेजा भी
इन्हें देख थर थर थराता है।
भारत देश का गौरव यह
तिरंगा भी देख इन्हें मुस्कुराता है
तभी तो ऊंची पहाड़ो पे
वो कितने शान से लहराता है।
Independence Speech in Hindi | Best Speech on 15th August in Hindi | 15 August Speech in Hindi
एक जुनून सा चढ़ा था सिर पर
एक जंग सी छिड़ी थी भीतर
आजादी के तराने लेकर
निकल घरों से जब क्रांतिकारी
तब कही जाकर मिली
भारत को यह आजादी
और 76वा स्वतंत्र दिवस बनाते
हम सब भारतवासी।
आदरणीय प्रधानाचार्य जी, समस्त शिक्षक गण पधारे गए अथिति गण और मेरे प्यारे विद्यार्थियों।
जैसा की आप सबको विदित है की हम 76वा स्वतंत्र दिवस बनाने केयहां एकत्रित हुए है, 15 अगस्त 1947 आज के ही दिन भारत पूरी तरह अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था और जुल्म और अत्याचार की दासता खतम हुई थी।
यहां एकत्रित हुए है, 15 अगस्त 1947 आज के ही दिन भारत पूरी तरह अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था और जुल्म और अत्याचार की दासता खतम हुई थी।
मुझे सुभद्राकुमारी चौहान की लिखी कुछ पंक्तियां याद आती है
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
यह तो मात्र देशभक्ति का एक उदाहरण है, इसे कितने ही वीर, जिन्होंने देशभक्ति की एक ऐसी लो जलाई जो अविरल जलती रही और मंगल पांडे से शुरू जो हुई क्रांति की लो, उस आग में कितने क्रांतिकारी ने अपना योगदान दिया, भगतसिंह, राजगुरु, और सुखदेव हंसते हंसते चढ़ गए फांसी पर, चंद्रशेखर आजाद ने खुद को मार गोली धरती की आंचल में समा गए, अत्याचार की दासता सहते गए पर इंकलाब जिंदाबाद का तराना लेकर घूमते रहे,
घायल पड़ा शेर है, फिर भी जज़्बा कमाल का है
जेल में सड़ी गली रोटियाँ है फिर भी आज़ादी की बिंगुल बजा रहा है
पानी को तरसा है पर खून में उफ़ान है
ऐसे शहीदों को हम देशवासियो का नमन बारम्बार है।
अंत में चार पंक्तियों उन्हे समर्पित करती हु , जो देश की सीमा पे खड़े है, भारत के सच्चे रक्षक और पहरेदार है,
खड़े है वो सरहद पर
हम घर में दीप जलाते है
वो रात भर पहरा देते है
हम चैन की नींद सो जाते है।
और अंत में सबको स्वतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देती हु।
15 अगस्त पर क्या भाषण दे | 15 अगस्त पर भाषण हिन्दी में 2023 | स्वतंत्रता दिवस पर भाषण 2023
आओ झुककर सलाम कर उन्हे
जिनके हिस्से में यह मुकाम आता है
खुशनसीब होते है वो लोग
जिनका लहू देश के काम आता है।
आदरणीय प्रधानाचार्य जी, समस्त शिक्षक गण, पधारे गए अथिति गण और मेरे प्यारे सहपाठियो।
आज हम यहां 76 स्वंतत्र दिवस बनाने के लिए एकत्रित हुए है, कितने बलिदानों और संघर्ष के बाद हमे यह स्वतंत्रता हासिल हुई है, 15अगस्त 1947 को भारत पूरी तरह आजाद हुआ, इस समय आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन था और 14 अगस्त 1947 की रात को जवाहर नेहरू द्वारा तमिलनाडु की जनता द्वारा सेंगोल स्वीकार किया गया था। और आज पूरा देशमुस्लिम, हिंदू , ईसाई सब एकजुट होकर एक साथ स्वतंत्र दिवस बना रहे है,
क्योंकि
अनेकता में एकता, है हिंद की विशेषता
एक राह के है मीत, मीत एक प्यार एक प्यार के
एक डाली के है फूल, फूल एक हार के
देखती है जमीन, देखता यह आसमान।
भारत वह भूमि है, जहा पतझड़ में भी फूल खिलते है, और कोई मुसीबत हमारे आंख निहारे हम हमेशा एक साथ खड़े रहते है।
दिन वो आज आया है
तिरंगा खुलकर मुस्कुराया है
तोड़ कर पराधीनता की बेड़ियों को
देखो ध्वज कैसे मुस्कुराया है।
आज वही दिन है जब तिरंगा खुलकर पहली बार मुस्कुराया था, पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े हुए, अत्याचारों से लिपटे हुए, उस भारत की तस्वीर भी देख ले तो रोंगटे खड़े हो जाते है, जलियांवाला बाग की त्रासदी सुनकर तो एक बार सुन्न हो जाते है, तो कल्पना कीजिए, वहा उन बच्चे, बूढ़े और औरतों का क्या हाल हुआ होंगा, मौत को इतने समीप से देखकर, बेरहमी की सारी हदें पार करती अंग्रेजी सरकार की वो गोलियों और लोगो की वो चीत्कार जो सन्नाटा बनकर, खून की नदिया बहाकर, खामोशी के अंधेरी में समुंद्र में डुबकी लगाकर, आसमान के कही सितारे आसमान में जगमगा रहे थे और आसमान उस रोशनी में भी फुट फुट कर रो रहा था।
यह अत्याचार तो बस नमूना था, और कितने अत्याचार और साजिशे अभी बाकी थी, भारत को खोखला करने की और पर कहते है न
अगर विश्वास पक्का हो तोआसमान को भी झुकना पढ़ता है
जंग जीतने कि कोशीश लगातार चलती रहे तो
एक दिन हार को भी मुक्कदर तुम्हारे द्वारा पे आना ही पढ़ता है।
अंत में चार पंक्तियों से अपनी वाणी को विराम देती हु और स्वतंत्र दिवस की सबको एक बार फिर हार्दिक शुभकामनाएं देती हु।
कतरे कतरे में आज़ादी का लहू जहाँ बहता था,
छोटी सी उम्र में भी देशभक्ति का झरना झर झर करता था
इंकलाब जिंदाबाद के नारे जहाँ हर गलियारे में गुंजा करता था
यह आज़ादी के वो परवाने थे, जिन्होंने तिरंगे से अपना कफ़न बांधा था।
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