मेंहदी, कुमकुम, रोली का श्रृंगार हूँ मैं
पायल की झंकार हूँ मैं,
मोतिया का सुंदर हार हूँ,
मां के कलेजे की कोर हूँ मैं,
रिश्तों की मजबूत डोर हूँ मैं,
आंगन में सजाती प्यार हूँ मैं,
दो घरों का बढ़ाती मान हूँ मैं,
गर्व से कहती आज मैं एक नारी हूँ,
बनाई आज मैंने अपनी नई पहचान है।
घर की रसोई से लेकर दफ्तर की कुर्सी पर मैं विराजमान हूँ,
भरती आज मैं आसमानों में लंबी उड़ान हूँ,
बुलंदियों पर आज मेरा नाम है।
मैं ही निर्मला सीतारमण, मैं ही किरण बेदी, मैं ही सुनीता विलियम्स और मैं ही द्रौपदी मुर्मू हूँ।
सम्मानित मंच, पधारे गए विशिष्ट अतिथिगण, श्रोतागण और मेरे प्यारे विद्यार्थियों।
में जीनल कक्षा 11 आ की छात्रा इस खूबसूरत सुबह को और खूबसूरत बनाने का प्रयास कर रही हूँ और समस्त नारी शक्ति के चरणों में प्रणाम करती हूँ और कार्यक्रम का आगाज करते हुए सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन के लिए प्राचार्य mam, पधारे गए मुख्य अतिथि sir को मंच पर आमंत्रित करती हूँ।
दीप प्रज्वलित हुए, हुआ नया सवेरा है
विद्यालय का प्रांगण रोशनी से हुआ उजियारा है
झिलमिल सितारे सारे करते आपको वंदन है
पधारे गए अतिथि को हमारा सत-सत वंदन वंदना है।
आज नारी आधुनिक परिवेश में अपने सपनों को दे रही उड़ान है, हर क्षेत्र में चाहिए वो कुश्ती का अखाड़ा हो या खेल का मैदान, दफ्तर हो या अस्पताल, या राजनीति हो, या पारिवारिक जीवन हो, अपनी सूझबूझ और समझदारी से कायम की अपनी पहचान है और आदमी के कंधे से कंधा मिलाकर नारी शक्ति को दिए नए आयाम हैं।
एक जमी एक आसमान है
एक ही खुदा एक ही भगवान है
एक छोटा सा मेरा पैगाम है
क्यों न आपकी तालियों के साथ शुरू करें आज का प्रोग्राम है।
अब मैं पहली प्रस्तुति के लिए काव्या और ग्रुप को मंच पर आमंत्रित करती हूँ जो सावित्री बाई फूले पर एक नाटक लेकर आ रही हैं।
सावित्री बाई फूले समाज का एक ऐसा उदाहरण हैं जिन्होंने पुरुष प्रधान समाज को हिला के रख दिया, खोखली हुई नींव को निकाल समानता की एक ऐसी छवि प्रस्तुत की जहां नारी को सिर्फ मान, सम्मान नहीं मिला बल्कि उन्हें स्वाभिमान की जिंदगी जीने की नई राह मिली और अत्याचार और जुल्म से बाहर निकलने का हौसला मिला।
अब मैं मंच पर बुलाना चाहूंगी विशाल और उसके ग्रुप को जो नृत्य के माध्यम से नारी शक्ति का महत्व बताएंगे।
सही कहा
नारी नारी सूरज की लालिमा नहीं, खुद उगता सूरज है
नारी पराधीनता की बेड़ियों नहीं, आजाद हिंद की फौज है
अत्याचार के विरुद्ध बन के खड़ी वो मिसाल है
नारी खुद बनी अपनी ढाल है।
अब में स्वाति को मंच पर आमंत्रित करती हूँ जो भ्रूण हत्या के ऊपर कुछ कहने वाली हैं, शायद सबको रुलाने वाली है।
सही कहा स्वाति
ए मां, मुझे मत मार, तेरी ही परछाई हूँ मैं, छिपा ले किसी कोने में मुझे, दुनिया के लोगों से मुझे।” देश बदल रहा है लेकिन अभी भी कुछ लोग अपनी विकृत मानसिकता का ढिंढोरा पीटते रहते हैं और जिसकी भेंट चढ़ जाती है नन्ही सी परी।
अब में स्नेहा और उनके ग्रुप को मंच पर आमंत्रित करती हूँ जो दहेज के ऊपर एक छोटा सा नाटक लेकर आ रहे हैं।
आज हम स्वतंत्र तो हो गए हैं, हमें हमारे अधिकार तो मिल गए हैं, पर अभी भी देश को आजाद होना बाकी है बाल विवाह से, नारी पर हो रहे अत्याचार से, दहेज जैसे समाज में फैली कुरीति से, घूम रहे शेर के रूप में गीदड़ से और गर्भपात से। जब तक इन तत्वों को हम उखाड़ न दे तब तक यह दिवस बनाना सार्थक नहीं हो पाएगा।
अब मैं कार्यक्रम समापन के लिए प्रिंसिपल mam को मंच पे आमंत्रित करती हूँ।
Mam, हम तो डाली हैं
आपकी
आपने इसे सिंचा है
आपकी छत्रछाया में पलकर ही बनी
यह सुंदर बगिया है।
अंतिम चार पंक्तियां कहकर अपनी वाणी को विराम देती हूँ
और नारी शक्ति को प्रणाम करती हूँ।
कहने को तो हम आज आजाद हैं,
78 स्वतंत्र दिवस हमने हाल में ही मनाया है,
पर सही मायने में यह आजादी संदूकों का खजाना ही लगती है,
क्योंकि भारत माता आज भी दहशत में ही तो जीती है।
सरस्वती, लक्ष्मी आज मंदिरों में कहां मिलती हैं,
गंगा, यमुना, गोदावरी पापी के स्पर्श से भी डरती हैं
और बुलंदियों को छूकर आज भी एक नारी
आसमानों के उड़ते परिंदे से डरती है।
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