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Poem on Independence Day 15 August |
घायल पड़ा शेर है, फिर भी जज़्बा कमाल का है
जेल में सड़ी गली रोटियाँ है फिर भी आज़ादी की बिंगुल बजा रहा है
पानी को तरसा है पर खून में उफ़ान है
ऐसे शहीदों को हम देशवासियो का नमन बारम्बार है।
फांसी के फंदे पे लटक रहा है, फिर भी मुस्कुरा रहा है
इंक़लाम जिंदाबाद के नारे लगा रहा है
हर नुक्कड़ पे देशभक्ति की ज्वाला जला रहा है
ऐसे शहीदों को हम देशवासियो का नमन बारम्बार है।
कलम हो चुका घर का खून, फिर भी माँ न रोयी है
उजड़ी नहीं है कोख़ मेरी वो तो धरती माँ को भायी है
आँखों में आंसूं नहीं वीरता की बज रही झंकार है
ऐसे शहीदों को हम देशवासियो का नमन बारम्बार है।
आओ शहीदों को श्रदांजलि अर्पित करते है
और ऐसी वीर माताओ को वंदन करते है
महक उठी मिटी, धरती यह बलिदान की है
ऐसे शहीदों को हम देशवासियो का नमन बारम्बार है।
2.Patriotic Poem in Hindi| Poem on Republic Day in Hindi
गमो से सरोबर दुखो से पीड़ित आज हर मानव की व्यथा है
भारत की चोहददी पे बिकती आज हमारी सांस्कृतिक एकता है
किस्मत का तकाजा है या दुनिया का दस्तूर है
खुदा की मर्ज़ी है या इन आतंकवादियो का जुनून है।
भारत की चोहददी पे बिकती आज हमारी सांस्कृतिक एकता है
किस्मत का तकाजा है या दुनिया का दस्तूर है
खुदा की मर्ज़ी है या इन आतंकवादियो का जुनून है।
खेल रहे वो खून की होली धरती के वासियो से है
तोड़ रहे मानव के जीवन की डोर इन आतिशबाज़ियो से है
तोड़ रहे मानव के जीवन की डोर इन आतिशबाज़ियो से है
गोले बारूद से भर लाये सारे जेबे है
मातृभूमि से दगा करने आये फिर सिरफिरे है।
यह भारत की पवित्र धरा, वीर योद्धा की जन्मभूमि है
स्वतंत्रता का यह लहराता तिरंगा भारत की शान है
मुल्क बना हमारा प्यार और अपनेपन से है
कोई क्या तोड़ेगा उसे जो जुड़ा इंसानियत के लहू से है।
मुल्क बना हमारा प्यार और अपनेपन से है
कोई क्या तोड़ेगा उसे जो जुड़ा इंसानियत के लहू से है।
मरना हमें मंज़ूर है पर झुकना हमें कतई मंज़ूर नहीं है
सांस जब तक शरीर में लड़ेंगे आदमियत के लिए है
कोई क्या तोड़ेगा हमें जो खुद जुड़ नहीं पाया है
महजब की शिक्षा क्या देगा हमें जिसका महजब खुद न बन पाया है ।
आंतकवाद के मंसूबे धरे के धरे रह जायेगे
पीठ के पीछे वार करने वाले गीदड़ कभी न कामयाब हो पायेगे
उनका महजब उनका धर्म सब का सब धरा रह जायेगा
भारत जैसे पवित्र देश को तोड़ने का सपना कभी न पूरा हो पायेगा।
सांस जब तक शरीर में लड़ेंगे आदमियत के लिए है
कोई क्या तोड़ेगा हमें जो खुद जुड़ नहीं पाया है
महजब की शिक्षा क्या देगा हमें जिसका महजब खुद न बन पाया है ।
आंतकवाद के मंसूबे धरे के धरे रह जायेगे
पीठ के पीछे वार करने वाले गीदड़ कभी न कामयाब हो पायेगे
उनका महजब उनका धर्म सब का सब धरा रह जायेगा
भारत जैसे पवित्र देश को तोड़ने का सपना कभी न पूरा हो पायेगा।