एक दिव्य प्रकाश का दिव्य हाथों हुआ पदार्पण है
ज्योत से ज्योत सजी, सज गया प्रांगण है
झिलमिल सितारे सारे करते आपको वंदन है
ज्ञान की अलख जगाने वालो को मेरा सत सत अभिनंदन है।
माननीय प्रधानाचार्य जी, समस्त शिक्षकगण और मेरे सहपाठियों।
आज एक शख्शियत की बात करती हूं, जिनके बारे में अगर कहना चाहू तो शब्द कम पड़ जायेंगे, इस विद्यालय की शान, गुणों की खान और हम विद्यार्थियों का अभिमान है ।
सबके प्रिय, सबके दिल में बसने वाले, जियोग्राफी जैसे बोरिंग subject को भी सरल और Interesting बनाने वाले, stories के माध्यम से हर चीज़ को समझाने वाले, कठिन प्रश्नों को भी जो simple बनाने वाले, कितने भी व्यस्त हो, problem को तुरन्त सुलझाने वाले, हर सांस्कृतिक कार्यक्रम में हमे प्रोत्साहित करने वाले, और नंबर कम भी आ जाये तो भी निराश न होने देने वाले हमारे इस शिक्षा महल के वो गुरु है।
जिंदगी तो वो नन्ही सी कली है जो खुद खुदा बुनता है, माता पिता उसे गढ़ के एक प्यारा फूल बनाते है और गुरु उस फूल में आत्मविश्वास, ओज और क्रांति का मिश्रण करता है जिससे वह नन्हा फूल एक दिव्य प्रकाश बन लोगो को सन्मार्ग दिखाता है और भविष्य को उज्ज्वल प्रकाश के हाथों समपर्ण कर देता है।
Sir आज आपकी विदाई में क्या कहूं
आंखें भर भर आयी है
हर विद्यार्थी के दिल मे
एक कृति उभर आयी है
सुना हुआ विद्यालय का आंगण
अब हमें कौन मोटीवेट करेंगा
आप जैसे गुरु के बिना
कैसे हम अब रह पायेंगे
बस इतनी सी दुआ करते है
हम बच्चों पे भी अपनी कृपा बरसाए रखना
कभी कभी हमसे मिलने और हमे प्रोत्साहित करने
इस शिक्षाभवन में आते रहना।
बस इतना ही कहकर अपनी वाणी को विराम देती हूं, और आप जहाँ भी रहे खुश रहे इन्ही दुआ के साथ दो पंक्तियां आपके नाम करती हूं।
आप हमारे विद्यालय के वो कल्पवृक्ष हो, जो हर बाग में नही खिला करते है
वो खुशनसीब होते जिन्हें आप जैसे गुरु मिलते है।
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