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POEM ON ABORTION-तेरी ही परछाई थी में माँ

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Poem on Abortion, Hindi poem
Poem on Abortion










काफिरो की भीड़ पे एक काफिला मेरा भी निकला होगा 
जिसे देख कर यह वक़्त भी रोया होगा 
बोझ नहीं तेरे दामन पे 
तेरी ही परछाई थी में माँ। 

योनि में औजार डालने से पहले डॉक्टर के भी तो हाथ काँपे होंगे
मेरी रूह के हर टुकड़े से आवाज तेरी आयी होगी 
बोझ नहीं तेरे दामन पे 
तेरी ही परछाई थी में माँ। 

फिर क्यों मुझे मार गिराया माँ 
एक बार तो सीने से लगा लिया होता माँ 
बोझ  नहीं तेरे दामन पे
 तेरी ही परछाई थी मी माँ। 

ममता के आंगन में एक किलकारी गुंजी ही थी की तेज धार वाले हथियार उसके सीने को छलनी कर गए।  क्या कसूर था जो इतनी निर्मम हत्या । माँ तो ममता का सागर होती फिर कैसे अपनी ही आँखों के सामने एक नन्हे से फूल को पेरो तले दबाने दिया। कितना कष्ट और कितनी वेदना हुई होगी जब उन नाजुक हथेलियों पर वार हुआ होगा , उन नाजुक पेरो को काट दिया होगा , हथोड़े से सर पर भी वार हुआ होगा और वो डर से कपकपा रही होगी,  कोंख के किसी कोने में सिमटी  माँ माँ पुकार रही होगी और कह रह होगी  ऐ मेरी माँ मुझे मत मर माँ—-तेरे ही परछाई हु में माँ—छिपा ले किसी कोने में —इस दुनिया के लोगो से माँ। फिर क्यों उसकी आवाज माँ ने अनसुनी कर दी, क्यों ममता को कलूटा कर दिया, भूल गए वो भी एक बेटी है, क्यों पंख लगने से पर काट दिए।

उस दिन खुदा भी रोया होगा ,
         जब सफेदी में लिपटा कमल का काफिला निकला होगा 
तभी तो बिन बादल बारिश हुई थी 
         बेटे की चाह में बेटी को मार गिराया था। 

मेरा एक सवाल हर माँ से है, आज का लेख हर बाप से है, एक आरज़ू उस पीढ़ी से है जो कल माँ-बाप बन भविष्य का निर्माण करेगी, एक आशा की किरण  उन कुरीतिओ से है जो बेटी को माँ के प्यार से वंचित कर देती है——–

इतना ही कहना है बेटी धरोहर है, इन्हे जीने दो, पंख फ़ैलाने दो, उड़ने दो , इन्हे न रोको, न टोको, इन्हे प्यार दो, जीने का स्वाभिमान दो, शिखर पर चढ़ने का अरमान दो, खुलकर जीने के लिए खुला आसमान दो।  

Daughters are Roses of heaven…Gift of God….Don’t make them cry….



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