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Hindi Article-Tham gye………@#.JINDIGI#

थम गयी जिंदगी……………


पिघल रही रेत है , पिघल रहा वक़्त है
पिघल रही जिंदगी की तस्वीर है
फिर कोनसी कागज़ की कश्ती होगी
फिर कोनसे किनारे पे आशियना होगा।

जब भी हम जिंदगी के आयने में खुद की तस्वीर देखते है तो बड़ी ढूंढ़ली सी नज़र आती है फिर भी हमे नज़र नहीं आती या हम नज़रअंदाज़ कर देते है।  आखिर क्यों ?? आज जब हॉस्पिटल के पलंग पे जख्मी हुए उस इंसान को देखा जो अपनी आखिरी वक़्त में भगवान का नाम जप रहा था तो बड़ा अजीब लगा ?? पूरी जिंदगी बुरे कर्म किये और आज माला के मोती गिन रहा है !! बड़ा आश्चर्य हुआ !!! ऐसा क्यों ?? क्यों हम अपनी हे कागज़ की कश्ती को किनारे पे ले जाने को आतुर होते है। क्यों हम रास्ते में बिखरी दूसरे की खुशिया का गला घोंट देते है।  इंसान का मर्म भी बड़ा अजीब होता है , आयने की तरह कब वो साफ़ होता है….. रिश्तो में भी आंख मिचौली होती है , तभी तो यह मन बार बार उदास होता है।

 थम गए है जिंदगी स्वार्थ के तराज़ू में , अब अपनेपन का कोई मोल नहीं , बिक गया आज कोडियो के दाम बाज़ारो में छिप गया प्यार कही।  रिश्तो में पड़ी दरार है….. स्वार्थ का यह संसार है।

बड़ा अजीब लगता है जब जिंदगी की तस्वीर यु सामने आ खड़ी होती है।  सब कुछ एक बुरे सपने की तरह लगता है।  क्या इंसान की कीमत आंकने का वक़्त आ गया है।  क्यों इंसान  स्वार्थ से ऊपर नहीं आता। क्यों इंसान किसी न किसी चीज़ के लिए रोता रहता है।  क्यों वो दिखावा का पेड़ लगाता है। क्यों हमारी जरूरते हमे स्वार्थी बना रही है।  क्यों हम तने की तरह अकड़ते जा रहे है।

कितनी अजीब बात है पता नहीं किस चीज़ का घमंड कर रहे है।  क्यों स्वार्थ का बीज पनप रहे है।  जब हमे पता है यह शरीर भी हमारा  नहीं है फिर भी इस तराज़ू में निरंतर खुद को तोले जा रहे है।  जिंदगी अनसुलझी पहली की तरह है , हाथो  हरदम पिसली ही है।

भटक रहे थे दुनिया के चक्र में, स्वार्थ के बंधन में और इसी में सुख मान बैठे है  और  तने की तरह अकड़ते जा रहे है।  भटक रहे थे हर योनि में  जाकर पाया मानव भव को।  फिर भी स्वार्थ में गवाया। सब कुछ पाया पर मन की शांति नहीं है।  पर जब मृत्यु हमारे द्वार पे खड़ी है तो हम क्यों लड़खड़ा रहे है।  क्यों उसे हसते हसते गले नहीं लगा रहे है।  यही संसार का नियम है।  आज जब जिंदगी का मर्म समझ आया पर जब तक सुलझा पाते वक़्त हाथ से जा चुका था और आज जिन्दा लाश रह गए थे चेतना तोकब की  जा चुकी थी।  यही जिंदगी की आखिरी तस्वीर थे जहा पछतावा के अलावा कुछ भी नहीं पास था। 

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