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Mayre pe Kavita | Poem on Mayra | Mayra Kavita

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गर रास्ते इतने खूबसूरत हैं,
तो वो दरिया कैसा होगा?
हर ओर ज़िंदगी जहाँ मुस्कुराए,
तो सोचो वो आँगन कैसा होगा?
जिनके एक फ़ोन कॉल पर
चल जाए दिल वहीं,
तो आज द्वार खोलते ही दिख जाए वो भाई,
तो सोचो बहना के दिल का हाल क्या होगा।
वो मेरा हाल है।

भाई, तुझसे आज कुछ कहना है—
वो पल जो साथ बिताए थे,
वो चौक जहाँ कठपुतलियों का संसार सजाया था,
वो बरगद का पेड़ जिसके नीचे घंटों बिताए थे,
और वो चॉकलेट जिसके लिए तुमने मुझे खूब चिढ़ाया था,
और वो परीक्षा के दिन जब बनकर मेरी माँ हर एक घंटे में मुझे जगाया था,
और वो doll जिसका स्वाद मुझे बहुत पसंद था
तुमने आज तक उसे ड्राइंग रूम में सजा कर रखा है।
ज़िंदगी के खूबसूरत पल यूँ ही बीत गए,
और देखो, बचपन के खेल खेलते हम कब बड़े हो गए।
हमारे बच्चे तो आज हमसे भी बड़े हो गए।
और आज इन शुभ घड़ियों में जब आप मायरा को लेकर आए हो,
तो रोक न पाई दिल को— कह ही दिया जो दिल ने बार-बार कहने को कहा था।
क्योंकि ‘म’ से ही मायरा, ‘म’ से ही मामा और ‘म’ से ही मायका होता है।
इस ‘म’ में छिपी हर बहन की जान होती है।
और जब भाई लेकर आए मायरा,
तो इन शुभ घड़ियों में कैसे न खिले बहन के चेहरे की मुस्कान है।

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