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Poem on Mayra(मायरा)

Poem on Mayra(मायरा)

रस्मे, रिवाज़े, परम्पराओ के यह धागे
खुशियों से महका आंगण, बीरा जो घर पधारे
लेके कुमकुम का थाल, बहन करती भाई का इंतज़ार
करके माथे पे तिलक, करती उनका स्वागत बारंबार
रस्मो का भी अपना अलग ही वज़ूद है
भाई बहन के रिश्ते की होती यह अदभुत मिसाल है
मायरा लेकर आया भाई है
सज संवर के खड़ी द्वार पे आज बहना है
खातिरदारी में खड़ा पूरा परिवार है
मायके से आया ढेर सारा प्यार है
पहना के हाथ मे चूड़ा, लाल चुनरी से दुल्हन करती श्रृंगार है
क्योंकि दोयता, दोयती होते
नाना नानी के महकते हुए गुलज़ार है।
यह रस्म होती बड़ी ही खास है
नाना नानी के दिल के होती बेहद पास है
खुशियों से सजा घर द्वार है
बहन के यहाँ मायरा लेकर आया आज बीरा है।
ऐसे ही खुश रहे मेरी बहना है
भाई देता ढेरो शुभकामनाएं है
इस मायरे के अवसर पे
एक भाई का यही तो बस कहना है।

Poetry on Mayra in Hindi

जब बेटी या बेटे की शादी होती है
तो बहुत सारी रस्मे होती है
पर उस रस्मो में से एक खास रस्म होती है
जो माँ के पीहर वाले निभाते है
इस रस्म की सबसे खास बात यह होती है
बेटी या बेटे की शादी के लिए जैसे हम बचपन से ही Savings करते है
ठीक उसी प्रकार दोयते या दोयती के जन्म लेते ही नाना नानी उसमे लग जाते है
मामा को अलग से एक PF Account भी बनाते है
और हर महीने उसमे कुछ पूंजी जमा करते है
और उसका लेखा जोखा रखते है
और खूबसूरत लम्हो के लिए संजो के रखते है।

क्योंकि यह रस्म बड़ी खास होती है
यू कहे ननिहाल की बुनियाद होती है
लाल चुनरी और चूड़ा मामा के घर की
दुआ में ढेर सारा प्यार होता है
तभी माँ के पीहर की एक अलग बात होती है
क्योंकि दोयती दोयता नाना नानी के महकते हुए गुलज़ार होते है।

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