चीर कर आसमानों को
सूरज फिर निकल आया है
परिंदो की तरह उड़ने का हुनर सिखाने के लिए
गुरु खुद धरा पर आया है।
गुरु बुझते हुए दीपक में उम्मीदों की रोशनी जगा देता है
धरती से अम्बर की दूरी को ही मिटा देता है
लहरों को देखकर अपना रुख मोड देता है
डूबती हुई कश्ती को किनारा दिखाता है
आंधी तूफानो के साथ भीड़ जाता है
आसमानों में उड़ने का हुनूर सिखाता है
वो दो हाथ है जो करोड़ो की तकदीर लिखता है
वो कुम्हार की मिट्टी है जो अनेक रूपो में ढाल देता है
वो जोहरी है जो तराश कर हीरा बनाता है
और पत्थर में जान डाल कर शीला बनाता है
सृष्टि को रचता है
और अपनी हर रचना को बेशकीमती मोती बनाकर पेश करता है
अपने कर्तव्य को बखूबी निभाता है
तभी तो राष्ट्र निर्माण का दायत्व इनके मजबूत कंधो पे ही आता है
एक नन्हे से पौधे में बीज अंकुरित करते है
और एक दिन उसे खुले आसमान में छोड़ जाता है
पर वो पौधा कब पेड़ में तब्दील हो जाता है
और उसकी शाखाओं में उन्नति के फूल आने लगते है
और उसकी उन्नति और कामयाबी को देख जो दूर से मुस्कुराता है
वो गुरु ही है जो सफलता के गीत गुनगुनाता है।
शिक्षक दिवस पर कविता | Poem On Teachers Day In Hindi | Shikshak Diwas par kavita | Poem on Teacher
मझधार में मिल जाते उसे मोती
जिसने गुरु का मार्गदर्शन पाया है
वरना कश्ती डूब जाती गहरे समुद्र में
क्योंकि किनारा उसे न किसी ने दिखाया है।
सींच सींच कर एक ऐसा पौधा बनाया है
कठिन घड़ी में
हम न डरे, इतना मजबूत बनाया है।
अपने ज्ञान के असीम सागर से हमको
चरित्र निर्माण का पाठ पढ़ाया है
परिंदो की तरह खुले आसमानों में
उड़ने का हुनर हमे सिखलाया है।
रोते हुए आए थे हम यहां
गले लगाया है
और नन्हे से फूल में,
बीजों को रोपण कर एक बरगद का वृक्ष बनाया है।
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