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Script on Independence Day in Hindi | Speech/Script on Independence Day in Hindi | 15 august par shandaar script

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आओ झुककर सलाम करे उन्हें
जिनके हिस्से में यह मुकाम आता है
वो खुशनसीब होते है
जिनका लहू देश के काम आता है।

सादर नमस्कार, प्रणाम जय जिनेन्द्र

आज का दिन भारत के इतिहास मेंस्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है, क्योंकि आज भारत परतंत्र की बेड़ी से पूरी तरह आजाद हो गया था, पर यह आजादी इतनी आसान नही थी, कितनी ही मां ने अपने लाल खोए, कितनी ही मां का सुहाग उजड़ गया, बच्चो के सिर से पिता का साया उठ गया, कितने बच्चे अनाथ हो गए, कितने क्रांतिकारी फांसी के फंदे पे लटक गए, कितने अत्याचार और जुल्म सहते रहे तब जाके १५ अगस्त १९४७ को हमने आजादी की नई सुबह देखी, परतंत्र की बेड़ियां से मुक्ति मिली, और तिरंगा भी उस दिन खुलकर मुस्कुराया था। तब से आज तक इसी दिन हम स्वंत्रत दिवस बना रहे है।

आज में आपके लिए स्वंत्र दिवस की ऐसी स्क्रिप्ट ले की आई हु जो स्वंत्रता दिवस के महत्व को दर्शायेंगी और शहीदो की याद दिलाएगी और रोंगटे खड़े करने वाली देशभक्ति की ज्वाला जलाएंगी।

हमारी सभा में उपस्थित सभी अथिति गण का विद्यालय परिवार की और से हार्दिक स्वागत करती हु l हमारे मुख्य अथिति प्रांगण में पधार चुके है एक बार जोरदार तालियों के साथ इनका स्वागत करे।


आओ झुककर सलाम करे उन्हें
जिनके हिस्से में यह मुकाम आता है
वो खुशनसीब होते है
जिनका लहू देश के काम आता है।


आदरणीय प्रधानाचार्य जी, समस्त शिक्षक गण, पधारे गए अथितगण और मेरे प्यारे विद्यार्थी।

स्वन्त्रता दिवस की सबको हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं और इस गौरवशाली दिन पे अपनी बात रखने के लिए, मुझे मंच प्रदान करने के लिए तहदिल से आपका शुक्रिया अदा करती हूं।

जैसा कि हम सब जानते है कि आज का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है और यह सिर्फ एक दिवस ही नही बल्कि स्वंत्रत भारत की स्वन्त्रता का प्रतीक है, क्योंकि आज के ही दिन भारत अंगेज़ी हुकूमत से पूरी तरह आज़ाद हुआ था और पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ सोने कि चिडिया कहने वाला भारत फिर खुली हवा में सुकून की सांस लेने लगा था।

पर यह आज़ादी इतनी आसाम नही थी, इस आज़ादी के लिए कितने वीरो ने संघर्ष किया, भगतसिंह सुखदेव, चंद्र शेखर आज़ाद, सुभाषचंद्र बोस, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि ने लोगो मे क्रांति की ज्योत न जलायी, बल्कि जंग के मैदानों में कूद पड़े, अत्याचार सहते रहे, पर तिरंगे को झुकने नही दिया, भारत माँ का मान, सम्‍मान स्वाभिमान कायम रखा। हम तो कल्पना भी नही कर सकते, जलियांवाला बाग देखो जहाँ खूब चली थी गोलियां, या भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को देखो जो हँसते हँसते फांसी पे चढ़ गए, पर इंकलाब के नारे से धरती को गुंजा दिया, चंद्रशेखर आज़ाद को देखो अंग्रेजों की गोली से उनको मरना मंज़ूर न था, अपने ही हाथों अपनी प्राणों को आहुति दी, ऐसे सच्चे
वीर धरती माँ के जिनकी वजह से ही अंग्रेज़ो की गुलामी से आज़ाद हो पाए थे।

कतरे कतरे में आज़ादी का लहू जहाँ बहता था,
छोटी सी उम्र में भी देशभक्ति का झरना झर झर करता था
इंकलाब जिंदाबाद के नारे जहाँ हर गलियारे में गुंजा करता था
यह आज़ादी के वो परवाने थे, जिन्होंने तिरंगे से अपना कफ़न बांधा था।

जैसा कि हमारे भारत की परंपरा रही है, हम किसी भी कार्यक्रम की शरुआत सरस्वती वंदना से करते है तो सरस्वती पूजन और दीप प्रज्वलन के लिए संस्थान के अध्यक्ष… मुख्य अथिति गण… और प्राचार्य को मंच पे आमंत्रित करती हु।।

दीप प्रज्वलित हुए, हुआ नया सवेरा है
विद्यालय का प्रांगण रोशनी से हुआ उजयारा है
झिलमिल सितारे सारे करते आपको वंदन है
पधारे गए सभी अथिति गण को मेरा सत सत अभिनंदन है।

कार्यक्रम की कड़ी को आगे बढ़ाते हुए, पधारे गए मुख्य अथिति …और विद्यालय की प्राचार्य को मंच पे आमंत्रित करती हु और अनुरोध करती हु वो ध्वाजारोहण करे।

दिन वो फिर आया है
तिरंगा खुलकर मुस्कुराया है
तोड़ के पराधीनता की बेड़ियों को
देखो ध्वज कैसे मुस्कुराया है।।

अब में सभी शिक्षक और विद्यार्थी और पधारे गए अथिति से अनुरोध करती हु की वो अपने स्थान पे राष्ट्रगान के लिए खड़े हो जाए।

अब में मंच पे आमंत्रित करती हु पहली प्रस्तुति को जो जलियांवाला बाग की त्रासदी जहा हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे और जनरल डायर का ऐसा कहर बरसा की बची सिर्फ लाशे थी और वो चीत्कार थी, वो इतिहास की सबसे काली सुबह थी, जिसे नाटक के माध्यम से दर्शाने मंच पे आ रहे है शिवम और group
वो जलियांवाला बाग ही था, जहा आज भी मासूम लोगो की चीत्कार सुनाई देती है जो अंग्रेज अत्याचारों के भेंट चढ़ गए थे।

अगली प्रस्तुति के लिए में मंच पे आमंत्रित करती हु युवान को जो देशभक्ति की कविता लेके आ रहा है, एक ऐसी कविता जो स्वंत्रता के पीछे क्रांतिकारी के संघर्ष को दिखायेंगा।

वाकई युवान की कविता ने एक फिर खून में उबाल और देशभक्ति की ज्वाला जला दी,

कलम हो चुका घर का खून
फिर भी मां न रोई है
उजड़ी नही है कोंख मेरी
वो धरती मां को भाई है
आंखो में आंसू नही वीरता की बज रही झंकार है
शहीदों को हमारा वंदन बरामबार है।

अब में मंच पे बुलाना चाहूंगी अपने शब्दो से संविधान का महत्व बताने के लिए हर्ष सिंघल को

सही कहा आपने हर्ष
भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है जिसे बनाने में २ वर्ष ११ माह और १८ दिन लगे और अंबेडकर जी की अध्यक्षता में इसे मनाया गया और २६ नवंबर को हर वर्ष इसे मनाया जाता है।

अब में सामूहिक गायन के लिए कक्षा ११ के विद्यार्थी को मंच पे आमंत्रित करती हु

जहा डाल डाल पे सोने की चिड़िया करती है बसेरा
वो भारत देश है मेरा

देशभक्ति का यह जज्बा हमारी युवा पीढ़ी में भी देखने को मिल रहा है, जो कल राष्ट्र का निर्माण करेंगी, और राष्ट्र की कमान हमारी युवा पीढ़ी के हाथो में है,

अब में अंतिम प्रस्तुति के लिए सीमा and group को आमंत्रित करती हु जो सियाचिन की ठंडी रातों में हमारे सैनिकों के शौर्य और पराकर्म को दर्शायेंगी।

खड़े है वो सरहद पर
हम घर में दीप जलाते है
वो रात भर पहरा लगाते है
हम चैन की नींद सो जाते है।

आज हम उन सैनिकों को सैल्यूट करते है जो बर्फीली पहाड़ियों में, -डिग्री सेल्सियस में जहा लोगो के लिए सांस लेना भी दुष्कर होता है, वहा तैनात रहते है और कड़कड़ाती ठंड में भी दुश्मनों को परास्त करते है

: अब मंच पे आमंत्रित करती हु उनको, जिनके बारे में कहने लगी तो अल्फाज कम पढ़ जायेंगे, इतने बड़े पद पर कार्यरत हो, सच्चे समाज सेवक हो, ईमानदार निष्ठा के साथ कार्य करने वाले और जिन्होंने समाज के हित में अपना पूरा जीवन लगा दिया, आज वो हमारे बीच बैठे है, और हमारे विद्यालय की शोभा बढ़ा रहे है


मंच पे आमंत्रित करती हु उनको
जिनके आने से हुआ नया सवेरा है
विद्यालय का प्रांगण रोशनी से हुआ उज्यारा है
झिलमिल सितारे सारे करते आपको वंदन है
गौरव sir आपका मंच पे करते हम हार्दिक स्वागत है

जब उनकी स्पीच हो जय तो कहना
सितारे महफिल में उतर आए सारे
वक्त तेरा दीदार मिल गया
सुना था जिनके बारे में
आज उन्हें सुन के ऐसा लगा
जैसे जमी पे सितारा खुद चल के आया है
विद्यालय के प्रांगन में नूर उन्होंने बरसाया है
विद्यार्थी को सिखाया इन्होंने सफलता के गुर
इसे व्यक्तित्व के धनी को एक बार फिर शुक्रिया करते है।


अब में कार्यक्रम समापन के लिए विद्यालय की प्राचार्य vidhya ma’am को मंच पे आमंत्रित करती हु।

Maam
हम तो डाली है आपकी
आपने इसे सींचा है
आपकी छत्र छाया में पलकर ही
बनी यह सुंदर बगिया है।

थैंक्यू maam

चार पंक्तियां कहती हु और एक बार फिर से सबको इस दिन की हार्दिक बधाइयां देती हु, पधारे हुए सभी अथिति
यो को धन्यवाद ज्ञापित करती हु।

आओ सलामी दे उन्हे
जो इसके असली हकदार है
मिटी की हर एक परत
उन्ही की कर्जदार है।

जय हिंद

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