9 मई 1940 इतिहास का वो दिन जिस दिन राजस्थान के कुंभलगढ़ की धरा पे एक महान योद्धा ने धरती पे अवतार लिया था जिनका नाम महाराणा प्रताप था। ये राणा सांगा के पौत्र और उदयसिंह II के पुत्र थे। ये वो वीर थे जिन्होंने अकबर का आधिपत्य कभी स्वीकार नही किया और मेवाड़ की धरती पे कभी मुगलो का साम्राज्य स्थापित नही होने दिया।
ये देश के वो वीर योद्धा थे जिनके जज़्बे और साहस को पूरा हिंदुस्तान नमन करता है, जिनकी वीर गाथाओं से एक नयी चेतना जागृत होती है और जिनकी कहानियों से प्रेरणा का झरणा झर झर करता है।
साढ़े सात फुट का जिनका कद और 110 किलो जिनका वजन था और 200 kg से भी ज्यादा का भार उठाकर वो लड़ते थे, उन्हें देख कर लगता था वो कोई देव पुरुष है जिनके शौर्य और साहस मैदानों में और दुश्मनों की आंखों में साफ़ नज़र आता था।
18 जून 1576 का वह विनाशकारी दिन, अकबर और प्रताप के बीच लड़ा गया हल्दीघाटी का वह युद्ध जिसमे अकबर ने अपने सबसे बलवान योद्धा बलहोलखान को भेजा था जो बहुत ही हिंसक प्रकृति का था। उसने महाराणा प्रताप पे पीछे से वार करना चाहा पर प्रताप ने उसे देख लिया और एक ही क्षण में उसने बहलोलखान समेत घोड़े के दो टुकड़े कर दिए। 80,000 अकबर की सेना के सामने एक छोटी सी टुकड़ी जो 15000 सैनिक से भरी थी पर महाराणा प्रताप के शौर्य और पराक्रम के आगे किसी का टिकना नामुमकिन था।
इस युद्ध मे कौन जीता कौन हारा इसका वास्तविक प्रमाण नही मिल पाता है पर कहते है इस युद्ध मे महाराणा प्रताप की ही विजय हुए थे।
इस युद्ध मे महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक पूरी तरह जख्मी हो गया था पर इस वीर घोड़े की बात ही निराली थी, जख्मी भरे पैरों से 26 फुट दरिया की छलांग लगाकर महाराणा प्रताप की जान बचायी थी। हल्दीघाटी में आज भी चेतक का मंदिर बना हुआ है।
जिसका घोड़ा इतना वीर, इतना साहसी, और इतना बलवान और इतना कर्तव्यनिष्ठ उसके मालिक के बारे में क्या कहे, शब्दो मे चित्रण करना भी मुश्किल है।
महाराणा प्रताप 20 वर्षो तक जंगलो में रहे, वही अपनी सैना तैयार की। घास की रोटियां खाना, जमीन पर सोना और उबली हुई सब्जियां पत्तल में खाना, नंगे पाँव चलना, छत के नाम पे पेड़ो के सूखे पत्ते होना, पर उन्होंने एक ऐसी सेना तैयार की जिसने दुश्मनों को मात दी और कुंभलगढ़ पे अपना अधिपत्य स्थापित किया।
कहा जाता है अकबर भी महाराणा प्रताप से डरता था, इसलिए कभी उनके सामने नही आया पर उन्होंने कितनी बार ही अपने प्रस्ताव प्रताप के पास भेजे
एक बार तो उन्होंने यह प्रस्ताव भेजा, में तुम्हे आधा हिंदुस्तान दे दूंगा, तुम बस मेवाड़ मुझे दे दो और मेरा अधिपत्य स्वीकार कर लो। पर राजपूत की तलवार मिट सकती है, पर कभी झुक नही सकती, ऐसे थे प्रताप।
महाराणा प्रताप पर कविता | Maharana Pratap Poem in Hindi
साहस और पराक्रम की वो एक कथा निराली थी
मेवाड़ की धरा पे जन्मे उस महायोद्धा की कहानी थी
जिनकी तलवारों की गूंज से दुश्मनों का कलेजा धड़क धड़क करता था
जिनके शौर्य के आगे अकबर भी नतमस्तक होता था
जिनके बलिदानों से पूरे हिंदुस्तान में नयी लहर आयी थी
हल्दीघाटी के युद्ध मे एक ही तलवार में बहलोलखान समेत घोड़े की सामत आयी थी
20 वर्षो तक मेवाड़ के जंगलों में घास की रोटियां खायी थी
सैना तैयार कर फिर कुंभलगढ़ पे विजय पायी थी
जो कभी हारा नही, हिन्दुस्तान का वो बाज़ीगर था
आधिपत्य कभी स्वीकार नही किया, डरता भी उससे अकबर था
सूरज जैसा प्रकाशमय और चंदा जैसा उजागर था
राजस्थान की धरा पे जन्मे कुंभलगढ़ का वो वीर था।
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