भगवान महावीर जैन धर्म के 24 वे तीर्थकर है। जियो और जीने दो का संदेश पूरे विश्व मे पहुँचाने वाले और खुद तीर कर भव्य आत्माओं को भवजल से पार कराने वाले, मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले है। आओ आज भगवान महावीर स्वामी का जीवन परिचय विस्तार से जानते है।
कहाँ जाता है भगवान महावीर का जन्म एक ब्राह्मण के घर मे होने वाला था। पर जब इंद्र देव का यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने गर्भ की फेरबदल कर दी और इन्हे क्षत्रियग्राम के त्रिशला माता की कुक्षी में रख दिया। भगवान महावीर स्वामी की माता के नाम त्रिशला और पिता का नाम सिद्धार्थ था। इनके बड़े भाई का नाम नंदिवर्धन था। भगवान महावीर जब माता त्रिशला की कुक्षी में आये तो माता चौदह स्वप्न देखे। उन्होंने स्वप्न में
त्रिशला माता के 14 स्वप्न
- सफ़ेद हाथी जिसका अर्थ प्रभु चार प्रकार के धर्म बतायेंगे।
- सफ़ेद वृषभ जिसका अर्थ प्रभु भरत क्षेत्र में बोधी बीज बोयेंगे।
- सिंह जिसका अर्थ प्रभु कामवाचन रूपी दृष्टि से पीड़ित भव्य जीवो की रक्षा करेंगे।
- लक्ष्मीजी जिसका अर्थ प्रभु वार्षिक दान देंगे।
- फूलों की माला जिसका अर्थ प्रभु तीन लोक के मस्तक पर धारण करने वाले बनेंगे।
- चंद्र जिसका अर्थ प्रभु समस्त पृथ्वी के लिए आनंद दाता बनेंगे।
- सूर्य जिसका अर्थ भगवान भामण्डल नामक प्रातिहार्य से युक्त होंगे(सूर्य के समान धर्म को दीपाने वाले)
- ध्वज़ जिसका अर्थ भगवान धर्म ध्वज़ से युक्त होंगे।
- कलश जिसका अर्थ भगवान धर्म रूपी प्रसाद के शिखर पर विराजमान होंगे।
- पद्मसरोवर जिसका अर्थ भगवान देवो द्वारा नो सुवर्ण कमलो पर चरण रख कर विहार करेंगे।
- रत्नाकर जिसका अर्थ शीर समुंदर के फलस्वरूप भगवान केवल आदि ज्ञान के स्वामी बनेंगे।
- देव विमान जिसका अर्थ भगवान वैमानिक देव के लिए पूज्य बनेंगे।
- रत्नों की राशि जिसका अर्थ प्रभु रत्नयमय सुवर्ण की शुद्धि करने वाले होंगे।
- निरघुम अग्नि जिसका अर्थ प्रभु भव्य जीव रूपी सुवर्ण की शुद्धि करने वाला होंगा।
जब रानी ने राजा को 14 स्वप्न के3 बारे में बताया तो राजा ने राजवैद्य को बुलाया और स्वप्न का मतलब जाना। तब राजवैद्य ने बोला, माता त्रिशला एक सामान्य पुत्र को नही बल्कि तीन लोक के ज्ञाता, जग तो तारणहार तीर्थकर को जन्म देने वाली है जो पूरे विश्व का कल्याण करेंगा।
Biography of Mahavir Swami
भगवान महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व में वैशाली ( वर्तमान में बिहार का जिला) के समीप कुंडग्राम नामक स्थान पर क्षत्रिय कुल में हुआ। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ ( जो वहां के राजा)और माता का नाम त्रिशला था।
नामकरण संस्कार
भगवान महावीर का नामकरण महोत्सव बहुत उलाए और उत्साह से बनाया गया था। सारे मित्र बंधु को बुलाया गया था यहाँ तक देवगन भी भगवान के नामकरण संस्कार में आये थे। और इन्हें वर्द्धमान नाम दिया गया था।
बाल्यकाल
भगवान महावीर वीर, बाहदुर और बहुत बलवान थे। एक बार वो अपने सहपाठियों के साथ खेल रहे थे तभी एक भयानक साँप वहां आ गया। सभी बच्चे डर से कांपने लगे लेकिन भगवान ने उस साँप को अपने हाथ मे ले लिया और यह किया वो साँप भगवान के चरणों मे झुक गया। तब से भगवान का नाम महावीर गया।
विवाह
भगवान को सांसारिक भोगो में कोई रुचि नही थी पर माता पिता के बार बार कहने पे और उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उन्होंने वसंतपुर के महासामंत समर की पुत्री यशोदा के साथ विवाह किया, जिनसे उन्हें एक पुत्री भी हुयी, जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया था।
वैराग्य, दीक्षा
भगवान महावीर अपने माँ बाप के बड़े अनुयायी थी। इसलिए उन्होंने माँ पिता की खुशी के लिए, दीक्षा न लेने का निश्चय किया। लेकिन जब उनके माता पिता का स्वर्गवास हो गया तो अपने बड़े भाई के पास गए और उनसे दीक्षा की अनुमति मांगी। तब भाई की बात का मान रखते हुए उन्होंने 2 वर्ष बाद 30 वर्ष की आयु में दीक्षा अंगीकार की। जंगल मे जाकर उन्होंने स्वयं पंचमुश्ठी लोच किया और वस्त्राभूषण का त्याग किया और 12 वर्ष तक साल्व वृक्ष के नीचे ऋजुबालिका नदी के तट पर घोर तपस्या की। और केवलज्ञान की प्राप्ति की।
निर्वाण
72 वर्ष की आयु में पावापुरी में कार्तिक कृष्णा अमावस्या को उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो गयी।
Quote on Mahavir Swami | Quotes on Mahavir Jayanti in Hindi
1.एक दिव्य प्रकाश का दिव्य हाथों हुआ पदार्पण है
ज्योत से ज्योत सजी सजा जिनशाशन का प्रांगण है
झिलमिल सितारे सारे करते आपको वंदन है
तीन लोक के ज्ञाता, जग के तारणहारे, भगवान महावीर को मेरा कोटि कोटि वंदन है।
2. हाथों में सुरभित चंदन है
भगवान महावीर को मेरा कोटि कोटि वंदन है।
Poem on Mahavir Swami | Mahavir Jayanti Poem in Hindi | Hindi Poem for Lord Mahavir
चित्रण क्या करूँ उनका, जिसका जीवन खुद एक विश्लेषण है
लाखों, करोड़ो की भीड़ में बने आज वो पथप्रदर्शक है
संयम रूपी आभूषण से जिसने अपनी आत्मा को सजाया है
तीन लोक के ज्ञाता, जग के तारणहारे वो 24 व तीर्थंकर महावीर है।
कुन्द्रग्राम का सौभग्य, जन्मा आज एक भव्य सितारा है
माँ त्रिशला के लाल, पिता सिद्धार्थ की आँखों का तारा है
इंद्रदेव देव भी उतर आये धरती पे, वर्धमान का आज हुआ नामकरण संस्कार है
भवजल से पार कराने वाले, अहिंसा के वो अवतार है।
30 वर्ष की आयु में दीक्षा को अंगीकार किया
पंचमुश्ठी लोच कर वस्त्राभूषण को त्याग किया
12 वर्ष तक कठोर तपस्या की
केवलज्ञान पाकर ही फिर जीवो का उद्धार किया।
चंडकौशिक के जीव को जिसने उपदेश किया
चंदनबाला को भी जिसने बोध किया
गौतम मुनि को भी मोह बंधन से दूर किया
अपने उपदेशो से जिसने जीवो का उद्धार किया।
सिद्धशिला पे विराजमान आज भगवान है
जियो और जीने दो का वो संदेशवाहक है
जिनशाशन की वो शान है
हम सबके प्रिय वो हमारे 24 वे तीर्थंकर वर्धमान है।
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