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Women’s Day Shayri in Hindi | Nari Diwas par Shandaar Shayri

Women Day Shayri, Shayri on Women Day in Hindi, Nari Diwas par Shayri
 मेंहदी, कुमकुम, रोली का श्रृंगार हूँ में
पायल की झंकार हूँ मैं,
मोतिया का सुंदर हार हूँ,
मां के कलेजे की कोर हूँ मैं,
रिश्तों की मजबूत डोर हूँ मैं,
आंगन में सजाती प्यार हूँ मैं,
दो घरों का बढ़ाती मान हूँ मैं,
गर्व से कहती आज मैं एक नारी हूँ,
बनाई आज मैंने अपनी नई पहचान है।
घर की रसोई से लेकर दफ्तर की कुर्सी पर मैं विराजमान हूँ,
भरती आज मैं आसमानों में लंबी उड़ान हूँ,
बुलंदियों पर आज मेरा नाम है।
मैं ही निर्मला सीतारमण, में ही किरण बेदी, मैं ही सुनीता विलियम्स और में ही द्रौपदी मुर्मू हूँ।
कहने को तो हम आज आजाद हैं,
७८ स्वतंत्र दिवस हमने हाल में ही मनाया है,
पर सही मायने में यह आजादी संदूकों का खजाना ही लगती है,
क्योंकि भारत माता आज भी दहशत में ही तो जीती है।
सरस्वती, लक्ष्मी आज मंदिरों में कहां मिलती हैं,
गंगा, यमुना, गोदावरी पापी के स्पर्श से भी डरती हैं
और बुलंदियों को छूकर आज भी एक नारी
आसमानों के उड़ते परिंदे से डरती है।

नारी सूरज की लालिमा नहीं, खुद उगता सूरज है
नारी पराधीनता की बेड़ियों नहीं, आजाद हिंद की फौज है
अत्याचार के विरुद्ध बन के खड़ी वो मिसाल है
नारी खुद बनी अपनी ढाल है।
में चूड़ियों की खनखनहट नहीं,
लाला लाजपत राय की लाठी हूँ।
में आटे से भरे दो सने कोमल हाथ नहीं,
कुम्हार से हाथ से गढ़ी मजबूत मिट्टी हूँ।
सूई की नोक पे चलना हो
या भिड़ना हो आज अंगारों से
आज नहीं डरती वो किसी से
खुद बनी अपनी ढाल है।
एक टहनी एक दिन पतवार बनती है
एक चिंगारी दहक अंगार बनती है
जो सदा रौंदी गई बेबस समझकर
एक दिन मिट्टी वही मीनार बनती है।

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