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Tap ki Anumodna | Jain तपस्या पर शायरी | अनुमोदना अनुमोदना बारंबार

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tap ki anumodna, tapasya anumodna.

तप आत्मा में मलीनता को हटाकर पवित्र बनाता है, अनंत पापो का क्षय करता है और जीवन में आनंद की ऐसी अनुभूति लाता है जिसका रसपान भाग्यशाली आत्मा ही कर सकती है तभी तो तप को जिनशाशान में सबसे ऊंचा स्थान दिया है क्योंकि तप जटिलता का मार्ग हैं, शुरआती तो आसान है लेकिन तप की सीढ़िया चढ़ना जैसे बहुत कठिन है, भूख और प्यास से व्याकुल होकर आत्मा में लीन होना मुश्किल है, पुण्य का उदय होता है तभी हम इसे कठिन तप को पूर्ण कर सकते है, बड़ी से बड़ी तपस्या कर सकते है और आज हम सभी तपस्वी भाई बहन की अनुमोदना करते है और अंत में चार पंक्ति सभी तपस्वी के चरणों में भेंट करती हु।

आनंद की अनुभति दिखती उनके चेहरे पे
जो तपस्या का रसपान करते है
अनंत कर्मों का क्षय कर
मोक्ष की सीढ़ी पर पैर रखते है
खिला खिला रहता है चेहरा
जैसे सूर्य का पहन लिया सेहरा
चंदन की होती वहा पुष्प वर्षा
जहा जिनशाशन में तपस्वी का हो पहरा।

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