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गांधी जयंती पर शायरी | Gandhi Jayanti par Shayri

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Gandhi Jayanti par Shayri, Gandhi Jayanti Shayri in Hindi

अहिंसा की पगडंडी पे चलकर
जिसने विश्वगुरु को भी झुकाया था
बिना शस्त्र बिना अस्त्र के
जिसने कुरुक्षेत्र में अपना तिरंगा फहराया था
रंग भेद की कुरीति को जिसने
जड़ से मिटाया था
बापू कहूं या गांधी कहूं या राष्ट्रपिता कहूं
भारत को आजादी का सूरज जिसने दिखाया था

क्या चित्रण करू उसका जिसका जीवन खुद एक विश्लेषण है
लाखों करोड़ों की भीड़ में बना जो पथ प्रदर्शक है
एक सूत्र में पूरे भारत को जिसने पिरोया था
वो और कोई नहीं मेरे प्यारे बापू थे।

कदमों में जहान देखा है
वतन की मिट्टी से महकता हिंदुस्तान देखा है
तिरंगे को आसमानों में लहराते देखा है
और आज़ादी के रंगों में रंगा उस राष्ट्रपिता को देखा है
जो हमारे आचार और और हमारे विचारों में जिंदा है
जिन्हें हम कभी बापू तो कभी महात्मा गांधी तो कभी राष्ट्रपिता के नाम से बुलाते हैं।

कितना झेला है तब कहीं जाकर अपने ही हिंदुस्तान में परिंदे की तरह उड़ पाए
अपनी ही ज़मीं पर सिर उठा कर चल पाए हैं
अपनी शान-शौकत शौकत को शाख पर रख कर जीते थे कभी
आज गांधी के फलस्वरूप स्वरुप ही पराधीनता की बेड़ियां तोड़ पाए हैं।

बनकर एक आवाज जिसने नींवों को हिलाया था
एकता के सूत्र में पूरे भारत को
पिरोया था
सत्य और अहिंसा का पाठ पूरे विश्व को पढ़ाया था
एक गाल पे कोई मारे तो दूसरी गाल आगे बढ़ाया था
स्वच्छ भारत का सपना जिन्होंने देखा था
अपने आंदोलन से अंग्रेजों को जिसने झुकाया था
भारत को आजादी का नया सूरज दिखाया था
1947 को पहला स्वतंत्र दिवस बनाकर इंकलाब को गले लगाया था।

वो आवाज़ थी इंकलाब की
जो इंटकहा बन रूह में उतरी थी
नशा बनकर खून में घुली थी
और आज़ादी का कारवां लेकर
फिर सड़कों पे उतरी थी
आंदोलन की चली आंधी
जिसके नायक थे स्वयं गांधी
सत्य और अहिंसा की जला के मशाले
पराधीनता के तोड़ दिए सारे ताले
आज़ादी का सुनाया फिर अफसाना
तभी तो बापू और राष्ट्रपिता कहलाया।

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