कतरे कतरे में आजादी का लहू जहा बहता था
छोटी सी उमर में भी देशभक्ति का झरना झर झर करता था
‘तुम मुझे खून दो में तुम्हे आजादी दूंगा का नारा जिसने भारत के हर कोने में गुंजाया था
यह आजादी का वो परवाना था, जिसका नाम सुभाष चंद्र बोस था।
आदरणीय प्रधानाचार्य जी, समस्त शिक्षकगण, अथितिगण और मेरे प्यारे सहपाठीयो
आज का दिन इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है क्योंकि आज के ही दिन एक इसे वीर बालक का जन्म हुआ, जिसने स्वाधीनता के सपने न दिखाए, बल्कि देशभक्ति की ऐसी ज्वाला जलाए जो अंग्रेजी हुकूमत को अपने देश से निकालने के लिए पर्याप्त थी।
आज के दिन उड़ीसा के बंगाल डिवीजन में 23 jan 1897 को महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभा देवी था। इनके पिता पेशे से एक वकील था। इन्होंने सुभाषचंद्र बोस को इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला कराया। सुभाषचंद्र बोस ने 1920 में सिविल परीक्षा पास की पर अप्रैल 1921 में भारत लौट आए और अहसहयोग आंदोलन में गांधीजी का समर्थन किया।
सुभाष चंद्र बोस से अंग्रेज डरने लगे थे, वो जान गए थे की सुभाष कुछ दिन भी बाहर रहे तो भारत की आजादी ज्यादा दूर नहीं है इसलिए उन्होंने सुभाष को उनके घर में ही नजरबंद कर दिया जहां से वो जर्मनी और जापान चले गए।
वो सुभाष चंद्र बोस ही थे
जिनकी जज्बे की अलग ही गाथा है
तभी तो दुश्मन का कलेजे भी
इन्हे देख थर थर थराता है।
उन्होंने गर्मदल के लोगो के साथ मिलकर फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया जिसकी वजह से उन्हे जेल भी जाना पढ़ा, इतना ही नही उन्होंने अकेले के दम पर उन्होंने Indian National Army का गठन किया जो वाकई दांतो तले उंगली दबाने जैसा था।
सुभाष चंद्र बोस सच्चे देशभक्त थे । यह दिन उन्ही की यादमें बनाया जाता है। इस दिन को पराक्रम दिवस के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है, एक विमान हादसे में इनका देहान्त हो गया पर इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नही है।
अंत में चार पंक्तिया कहती हु और सुभाष चंद्र बोस को नमन करती हु
आओ सलामी दे उन्हे जो इसके असली हकदार है,
मिट्टी की हर एक परत उन्हीं की कर्जदार है
देश के इस वीर को करते वंदन बारंबार है
भारत का महकता जिसकी वजह से ही यह गुलजार है।