एक दिव्य प्रकाश का दिव्य हाथों हुआ पदार्पण है
ज्योत से ज्योत सजी सज गया जिनशासन का प्रांगण है
झिलमिल सितारे सारे करते आपको वंदन है
तपस्या करने वालो को मेरा सत सत अभिनन्दन है।
तपस्या अनंत कर्मो को क्षय कर, आत्मा में बसे अंतर गुणों की साधना है, आराधना है। तपस्या दुख की आ तापना लेकर आत्म सुखों की साधना है। तपस्या करने से न सिर्फ आत्म निर्मल होती है बल्कि कितने ही अनंत कर्मो का क्षय होता है।
वो बहुत भाग्यशाली होते है जो तपस्या का अमृत का रसपान करते है और आत्म को निर्मल कर चंदन के भांति पावन हो जाते है। कहते है जिनकी आराधना सच्ची होती है और भाव निर्मल होते है देवगण भी उनके घर चंदन की बरसात करते है और तपस्वी की जय जयकार करते है। तभी तो तपस्या को जिनशासन में ऊँचा दर्ज़ा दिया गया है।
समकित धार कर
कर्मो का तू क्षय कर
कषायों का तू
अपनी शक्ति का आभास कर
उदारता का भाव धर
आत्मा का तू कल्याण कर
अपनी सजगता से
धर्म का तू विकास कर
अनेक शक्ति तेरे भीतर
तुझमे भी बसा है महावीर
कर रहे देव जय जयकार
तपस्वी को हमारा सत सत नमस्कार।
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