धर्म को धारण कर ले मानव
पता नही जीवन कब तक है
पलक झपकती है हँसी
पता नही खुशी का आवरण कब तक है।
आज जहा कोरोना अपने पंख फैला रहा है, दहसत और भय का आलम सजा रहा है, हर रोज़ कितने घरों के चिराग जला रहा है, और वो निरंतर फैले जा रहा है। हर कोई आज सर्तक है, सजग है, अपने अपने घरों में कैद है पर आज की स्थिति देखे तो हमे पता भी नही चल पाता हमारे ही बीच कोई कोरोना नामक बीमारी से संक्रमित तो नही है। अगर कोई हो जाये फिर तो एम्बुलेंस ही गाड़िया ही दिखती है।
हम खुद को भाग्यशाली कह सकते है जो अभी इस बीमारी की चपेट में नही आये है। पर क्या हम डरे हुए तो नही है, क्या हमे अंदर ही अंदर चिंता नही खाए जा रही है। मरना कोई भी नही चाहता है, सब जीना चाहते है, क्योंकि ऐसे मरना जब हमारी अरथी को कोई कंधा भी नही दे पाए, यह हमें भी गवारा नही होगा।
बारह भावना की वो गाथा जो मुझे स्मरण हो आयी है–
दल बल देवी देवता, मात पिता परिवार
मरती बिरिया जीव को कोई न राखनहार।
वास्तव में आज यह पंक्ति चरितार्थ हो रही है, इतना बड़ा परिवार फिर भी पहले आइसोलेश, ठीक हो गए तो आपकी किस्मत, अगर तबियत बिगड़ी तो मौत खड़ी सामने है। कंधा तो क्या कोई पास आके पूछने वाला भी नही है।
यही जिंदगी की सच्चाई है, इंसान जब तक ही अच्छा लगता है जब तक वो ठीक है। जैसे ही कोई रोग उसे हो जाये तो वो ही घरवाले जो तुम्हारे नाम लेते लेते नही थकते थे आज तुम्हे किनारा करने में एक पल भी नही लगाते है। यही दुनिया का दस्तूर है, मतलब के पीछे भाग रहा संसार है।
आप अकेले अवतरे, मरे अकेला होए
कबहु या जीव को साथी सगा न कोय।
अच्छा जब वक़्त इम्तिहान ले रहा हो, परिस्थिति बद्तर होने लगे, तब हमक्या कर रहे है, हम न घर पे बैठे खाना का स्वाद ले रहे है, Item पे Item बना के आनंद ले रहे है। कही जगह औरतो ने तो घर मे अब दीवाली की सफाई चालू कर दी।
पर
क्या हम सही रास्ते पे चल रहे है । हम पूरे दिन T.V चालू कर के अपना time pass कर रहे है, मोबाइल पे दिन भर लगे हुए है तो क्या हम परिस्थिति का सही जायज़ा ले रहे है।
इस वक़्त जब महामारी फैल रही है तो जरूरत है आज लोगो को धर्म करने की, भगवान को याद करने की, सामयिक करने की, नवकार मंत्र की माला रोज़ जपने की, बारह भावना, मेरी भावना सुनने की।
हर रोग का इलाज जैन धर्म मे निहित है। नवकार मंत्र ही हर लेता सारा कष्ट है। YouTube पे मेरी भावना, बारह भावना आसानी से मिल जाती है। आज जरूरत है धर्म को अपनाने की, धर्म को जीवन मे स्थान देने की।
धर्म ही है जो आज बचाने वाला है
कठिन परिस्थिति में साथ निभाने वाला है
घर वाले भी साथ छोड़ देते है इस समय मे
धर्म ही है जो भवसागर से पार कराने वाला है।
इसलिए मानव विचार कर, भय से बाहर निकलकर समय का सदुपयोग करो। धार्मिक कार्य करते रहो और इस विपरीत घड़ी में धर्म का साथ न छोड़े। अभी डरने का वक़्त नही है बल्कि घर मे कैद होकर मन की खिड़किया खोलने का वक़्त आया है,इस मुसीबत की घड़ी में घर मे रहकर सिर्फ धर्म करने का वक़्त आया है।
जय जिनेन्द्र कहने का वक़्त आज आया है
हाथ जोड़ कर अभिवादन मन को आज भाया है
नमस्ते कर रही आज दुनिया सारी है
जैन धर्म का मर्म समझा रहे आज ज्ञानी है।
पुद्गुलो का स्वरूप निराला है
एक हाथ मे आंसूं, दूसरी आंख में पानी है
इतने सूक्ष्म होकर भी फैला दी दहशत है
पता नही क्या इसका अभिरूप है।
प्रकृति ने क्या स्थिति उत्पन्न कर दी है
सड़के, मोहल्ले आज खाली है
मुख पे मुख्वस्त्रिका बंधी हुयी है
डर रहे आज सारे प्राणी है।
महामारी बिछा रही अपना जाल है
बढ़ा हुआ पाप कह रहा अपनी जुबानी है
हर तरफ मची हाहाकार है
पशु की रूह से निकला तड़पता हुआ पानी है।
धरती माँ सह रही थी हमारे अत्याचार है
कितनी से बेहरमी से मार रहे थे हम पशु को हर रोज़ है
जब आज प्रकृति ने पलटवार वार किया है
तो क्यों आज हम सब खामोश है।
आज फिर दिन ऐसा आया है
हमारे संकल्पो पे टिका भविष्य सारा है
प्रकृति का करेंगे अब हम श्रृंगार है
क्योंकि प्रकृति पे ही टिका मानव जीवन सारा है।
पता नही जीवन कब तक है
पलक झपकती है हँसी
पता नही खुशी का आवरण कब तक है।
आज जहा कोरोना अपने पंख फैला रहा है, दहसत और भय का आलम सजा रहा है, हर रोज़ कितने घरों के चिराग जला रहा है, और वो निरंतर फैले जा रहा है। हर कोई आज सर्तक है, सजग है, अपने अपने घरों में कैद है पर आज की स्थिति देखे तो हमे पता भी नही चल पाता हमारे ही बीच कोई कोरोना नामक बीमारी से संक्रमित तो नही है। अगर कोई हो जाये फिर तो एम्बुलेंस ही गाड़िया ही दिखती है।
हम खुद को भाग्यशाली कह सकते है जो अभी इस बीमारी की चपेट में नही आये है। पर क्या हम डरे हुए तो नही है, क्या हमे अंदर ही अंदर चिंता नही खाए जा रही है। मरना कोई भी नही चाहता है, सब जीना चाहते है, क्योंकि ऐसे मरना जब हमारी अरथी को कोई कंधा भी नही दे पाए, यह हमें भी गवारा नही होगा।
बारह भावना की वो गाथा जो मुझे स्मरण हो आयी है–
दल बल देवी देवता, मात पिता परिवार
मरती बिरिया जीव को कोई न राखनहार।
वास्तव में आज यह पंक्ति चरितार्थ हो रही है, इतना बड़ा परिवार फिर भी पहले आइसोलेश, ठीक हो गए तो आपकी किस्मत, अगर तबियत बिगड़ी तो मौत खड़ी सामने है। कंधा तो क्या कोई पास आके पूछने वाला भी नही है।
यही जिंदगी की सच्चाई है, इंसान जब तक ही अच्छा लगता है जब तक वो ठीक है। जैसे ही कोई रोग उसे हो जाये तो वो ही घरवाले जो तुम्हारे नाम लेते लेते नही थकते थे आज तुम्हे किनारा करने में एक पल भी नही लगाते है। यही दुनिया का दस्तूर है, मतलब के पीछे भाग रहा संसार है।
आप अकेले अवतरे, मरे अकेला होए
कबहु या जीव को साथी सगा न कोय।
अच्छा जब वक़्त इम्तिहान ले रहा हो, परिस्थिति बद्तर होने लगे, तब हमक्या कर रहे है, हम न घर पे बैठे खाना का स्वाद ले रहे है, Item पे Item बना के आनंद ले रहे है। कही जगह औरतो ने तो घर मे अब दीवाली की सफाई चालू कर दी।
पर
क्या हम सही रास्ते पे चल रहे है । हम पूरे दिन T.V चालू कर के अपना time pass कर रहे है, मोबाइल पे दिन भर लगे हुए है तो क्या हम परिस्थिति का सही जायज़ा ले रहे है।
इस वक़्त जब महामारी फैल रही है तो जरूरत है आज लोगो को धर्म करने की, भगवान को याद करने की, सामयिक करने की, नवकार मंत्र की माला रोज़ जपने की, बारह भावना, मेरी भावना सुनने की।
हर रोग का इलाज जैन धर्म मे निहित है। नवकार मंत्र ही हर लेता सारा कष्ट है। YouTube पे मेरी भावना, बारह भावना आसानी से मिल जाती है। आज जरूरत है धर्म को अपनाने की, धर्म को जीवन मे स्थान देने की।
धर्म ही है जो आज बचाने वाला है
कठिन परिस्थिति में साथ निभाने वाला है
घर वाले भी साथ छोड़ देते है इस समय मे
धर्म ही है जो भवसागर से पार कराने वाला है।
इसलिए मानव विचार कर, भय से बाहर निकलकर समय का सदुपयोग करो। धार्मिक कार्य करते रहो और इस विपरीत घड़ी में धर्म का साथ न छोड़े। अभी डरने का वक़्त नही है बल्कि घर मे कैद होकर मन की खिड़किया खोलने का वक़्त आया है,इस मुसीबत की घड़ी में घर मे रहकर सिर्फ धर्म करने का वक़्त आया है।
जय जिनेन्द्र कहने का वक़्त आज आया है
हाथ जोड़ कर अभिवादन मन को आज भाया है
नमस्ते कर रही आज दुनिया सारी है
जैन धर्म का मर्म समझा रहे आज ज्ञानी है।
पुद्गुलो का स्वरूप निराला है
एक हाथ मे आंसूं, दूसरी आंख में पानी है
इतने सूक्ष्म होकर भी फैला दी दहशत है
पता नही क्या इसका अभिरूप है।
प्रकृति ने क्या स्थिति उत्पन्न कर दी है
सड़के, मोहल्ले आज खाली है
मुख पे मुख्वस्त्रिका बंधी हुयी है
डर रहे आज सारे प्राणी है।
महामारी बिछा रही अपना जाल है
बढ़ा हुआ पाप कह रहा अपनी जुबानी है
हर तरफ मची हाहाकार है
पशु की रूह से निकला तड़पता हुआ पानी है।
धरती माँ सह रही थी हमारे अत्याचार है
कितनी से बेहरमी से मार रहे थे हम पशु को हर रोज़ है
जब आज प्रकृति ने पलटवार वार किया है
तो क्यों आज हम सब खामोश है।
आज फिर दिन ऐसा आया है
हमारे संकल्पो पे टिका भविष्य सारा है
प्रकृति का करेंगे अब हम श्रृंगार है
क्योंकि प्रकृति पे ही टिका मानव जीवन सारा है।
Prayers in time of Epidemic
क्यों मूरत बन के बैठा है रब देखा तेरी आज मेहर है
विडंबना आ पड़ी है
क्या अपने भक्तों को तू भूल बैठा है।
बैठ गए किनारे पे साहिल
मरती बिरिया जीव हर रोज़ है
लाशों को कंधे भी नही मिल रहे है
इसका भी हमे अफ़सोस है।
दहशत से सजा आज बाज़ार है
सड़के हुई आज वीरान है
भय मचा रहा दिल मे शोर है
परिवार की चिंता में डूबा आज का परिवेश है।
आज तेरे दर पर आयी हु
तुझसे कुछ मांगने आयी हु
अब बस खात्मा कर रोगों
ईश्वर आज तुझे धरती पे बुलाने आयी हु।
तेरे भक्त कर रहे आज पुकार है
मुश्किल में जहांन है
दिखा अपना चमत्कार है
अपनी मौजूदगी का दे आज तू एहसास है।
विडंबना आ पड़ी है
क्या अपने भक्तों को तू भूल बैठा है।
बैठ गए किनारे पे साहिल
मरती बिरिया जीव हर रोज़ है
लाशों को कंधे भी नही मिल रहे है
इसका भी हमे अफ़सोस है।
दहशत से सजा आज बाज़ार है
सड़के हुई आज वीरान है
भय मचा रहा दिल मे शोर है
परिवार की चिंता में डूबा आज का परिवेश है।
आज तेरे दर पर आयी हु
तुझसे कुछ मांगने आयी हु
अब बस खात्मा कर रोगों
ईश्वर आज तुझे धरती पे बुलाने आयी हु।
तेरे भक्त कर रहे आज पुकार है
मुश्किल में जहांन है
दिखा अपना चमत्कार है
अपनी मौजूदगी का दे आज तू एहसास है।