अहिंसा परमो धर्म
दिव्य है दीवार जिसकी,
अखण्ड है सौभग्य जिसका
परम है जिसका अस्तित्व,
अवक्त्तव्य महत्व है जिसका दुनिया में
नीलमणी रत्न जिसकी तिज़ोरी में है,
लीला है जिसकी अपरम्पार
मोल नहीं कर सकता जिसका कोई,
बिक नहीं सकता वो पैसो में कोई
आचार है जिसका सर्वश्रेस्थ,
विचार है जिसके नीरवत सागर के समान
भाग्य है जिसका पुण्यवान,
बोली है जिसकी संस्कारो की पहचान
अभिव्यंजित हुआ जो संस्कारो के अटूट धागों से,
नर से देवता बना जो अपने अंदर छिपी शक्तियो को
जाग्रत कर
इंसान की नस नस में जहा धर्म का प्रकाश है,
प्रकाशपुंज सा त्रिलोक में चमकता अहिंसा परमो
धर्म है।
दिव्य है दीवार जिसकी,
अखण्ड है सौभग्य जिसका
परम है जिसका अस्तित्व,
अवक्त्तव्य महत्व है जिसका दुनिया में
नीलमणी रत्न जिसकी तिज़ोरी में है,
लीला है जिसकी अपरम्पार
मोल नहीं कर सकता जिसका कोई,
बिक नहीं सकता वो पैसो में कोई
आचार है जिसका सर्वश्रेस्थ,
विचार है जिसके नीरवत सागर के समान
भाग्य है जिसका पुण्यवान,
बोली है जिसकी संस्कारो की पहचान
अभिव्यंजित हुआ जो संस्कारो के अटूट धागों से,
नर से देवता बना जो अपने अंदर छिपी शक्तियो को
जाग्रत कर
इंसान की नस नस में जहा धर्म का प्रकाश है,
प्रकाशपुंज सा त्रिलोक में चमकता अहिंसा परमो
धर्म है।