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Poem on Mumbai Local Train


कितना प्यारा दर्पण है
जिसमे दिखा मुम्बई की रेल 🚉का समर्पण है
बिना रुके🚥 बस चलते जाना है
साँसे भी सिसकिया🔛 में पी जाना है ।

हाथ🤝 थामे एक दूजे का है
हमारे सपने 🧚‍♀पूरे करने चल पड़ी है
माँ बाप का👨‍👩‍👧 आशीष लेकर
देखो आगे पीछे🚟 से एक जैसी है ।

रुकना 🚄जिसने कभी सीखा नही है
गतिशील जो हर वक़्त रहती है
कुछ पल ही थमकर
कितनी सिख दे जाती है ।

समर्पण का कैसा🍃 बसेरा है
हर चिड़िया🐚 को मिला घोंसला है
फिर भी अगर रह जाए पीछे
दूसरे ही पल दिखलाती नयी🤳🏻 आशा है ।

अरमानो की रेल है🥳
सपनो को पंख लगाया है
वक़्त ⏰की दहलीज पर
खुशियों को गले💕 लगाया है।

बस चलते जाना है🚊
बिना ठहरे 🏃आगे बढ़ते जाना है
हाथ थाम कर🥢 एक दुझे का
अपने सपनो को🎯 सच कर जाना है ।

सफर को🤾‍♀ मंज़िल मिली है
खुशी को 🤹🏽‍♀नयी दहलीज़ मिली है
द्वार 🎺पर खड़ी उम्मीदों को भी
जीने की नयी राह🥅 मिली है ।

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