झाँसी की रानी————-लक्ष्मी बाई
ओज से ओतप्रोत वो एक कथा निराली थी
आजादी के जंग में जिसने मारी बाज़ी थी
तात्या गुरु की शिष्य वो एक अनोखी जागीर थी
देश को जगाने की जिसने मन में ठानी थीं।
जीवन जिसका त्यागमय करुणा की प्याली थी
लाखो अबला की हिम्मत वो एक ओजस्वी नारी थी
मसीहा थी जन जन की वो एक छवि निराली थी
जन जन के मानस में मूरत जिसकी छायी थी।
बचपन से ही जिसको घुड़सवारी का बड़ा शौक था
निसानेबाज़ी ही प्रिय जिसका खेल था
नाना के गोद में पली मनु कहकर जिसे बुलाते थे
पिता की लाड़ दुलारी वो एक ही संतान पायी थी।
अंग्रेज़ो की कवायद कभी न जिसने मानी थी
जुल्म अत्याचार के खिलाफ खड़ी वो रानी थी
दुर्गा थी या लक्ष्मी वो एक अवतार थी
अंग्रेज़ो को जिसने छटी का दूध याद दिलाया था
कुरुक्षेत्र में लड़ना जिसे खेल प्रतीत होता है
लाखो योद्धा के बीच खड़ी शसख्त वो नारी थी
सिंह की दहाड़ समान जब वो भाला उठाती थी
कलेजे में सनासनाहत हाथो से छुटती तलवारे थी।
राजा की हुई हत्या दिल देखकर दहल गया
सपनो के महल धूमिल हुए बारूद के ढेर में
गम का कोहरा झाँसी में चहु और छा गया
अब कौन करे हिफाज़त राजा रज में समां गया
हौसला बँधा ढाढस बंधा रानी थी शोकाकुल
सब कुछ बह गया नहीं चाहिये राज्य सुख
डलहोजी ने चली चाल बढ़ी फ़ौज़ झाँसी की और
सिहिनी का वीरत्व जागा बढाओ एक कदम मेरी और
अंग्रेज़ो के छक्के छुड़ाए झाँसी को बचाया था
क्रांति की चलाए आंधी भारत को जगाया था
ध्वज आज़ादी का भारत के कोने कोने में फहराया था
बूढ़े बच्चे औरत सबको यह पाठ पढ़ाया था
अमरता की परिचायक वीर गति को जिसने पाया था
हर मानस के दिल में क्रांति की ज्योत जलाए थी
अंतिम सांस तक लड़ी अंग्रेज़ो का खून जिसने बहाया था
अपने रक्त से भारत माँ का ऋण जिसने चुकाया था।
तेरी गोद में हमेशा के लिए सो गए हम माँ
नींद आती नहीं पर तेरे हो लिए माँ
आज़ादी की जंग छेड़ के आये हम माँ
अमन शांति का ध्वज हम फहरा के आये हम माँ।