Article on Girl Harassment |
क्यों कुछ नहीं करता प्रशासन,क्यों चुप सादे सरकार है? क्यों रेत की तरह पिघल रही साँसे है?क्यों जुल्म अत्याचार का पलड़ा भारी है।।क्यों मानवता बेबसी बन अख़बारों की कहानी बन गए। क्यों पिंज़रो में बंध कहानी बन गए? है कोई जवाब इन सवालो का जो हक़ीक़त की बेड़ीया बन गए।
जब एक दरिंदा मानवता का घाट कर एक गुलाब को तोड़ कर फेक देता है तो क्या हमारी सरकार उसे जड़ से नही उखाड़ सकती।। क्या ऐसे कानून नहीं बनाये जा सकते जो ऐसे अपराधो को कम कर सके।।आखिर कब तक इंसानियत की पीर पे हिमालय भी खेर बनाएगा।।
हम ऐसे दृष्य देखकर भी कॉप उठते है तो विचार कीजिये क्या बीतती है एक औरत पे जब उसके आँचल पे एक दरिंदा अपनी दरिंदगी के आसार छोड़ जाता है।।
और तड़प तड़प के छटपटाई हुई एक गुलज़ार टूट कर बिखर जाता है।। उसकी रूह का इंसानियत से विश्वास उत् जाता है।।।तो क्या उस दरिंदे को ऐसे सजा नहीं मिलनी चाहिए जो उस मासूम दिल तो सहूलियत दे सके।।।
: जिसकी परिकल्पना नही की जा सकती आज हक़ीक़त इतनी शर्मसार हुई है ऐसे दरिंदो को कब्रिस्तान में जिन्दा जला देना चाहिए फिर शायद इंसाफ फिर सांस लेगा हमारी सांसो में।।। मत छोड़ो इन्हें खुले वातावरण में यह वो कांटे है जो तलवे में चुब कर टूट जाया करते है।।
लाचारी सर झुकाये खड़ी है
इन्साफ के क़र्ज़दारो के आगे
बेबसी फुट फुट के रो रही
प्रशासन और सरकार के आगे
एक उम्मीद की आस में
हो खात्मा जुल्मो का
फिर गुलज़ार में खिले गुलाब
जिसे तोड़ने की नजाकत न कर पाये कोई।।