फिर खिला गुलज़ार …..
हसकर गले लगा ले ऐ जिंदगी
रोने वालो को कौन पूछता है
क़ब्र भी जगह देने से पहले सो बार सोचता है
जो किसी न किसी बहाने से हर रोज़ आंसू बहाता है …
कल दोपहर एक बुजर्ग दम्पति मिले थे
दोनों की हालत बड़ी बेहाल थी
एक के पेरो में जान नही थी
एक के हाथ हुए बेकार थे…..
दोनों एयरपोर्ट पे व्हील चेयर पे थे
दोनों एक दूसरे का सहारा बने हुए थे
पर अचंभित करने वाली बात तो यह थी
दोनों के चेहरे उम्र के इस पड़ाव में भी खिले हुए थे….
मेरी नज़र ठहरी उनके रास्ते रुक गए थे
मुसाफिर को मंज़िल मिली हम फिर भी अजनबी थे
पता नहीं क्यों अपनेपन का एहसास सा था
यु लगा वो मेरे ही दुनिया का सम्राट था …..
कुछ यु इज़हार किया था
अपने महलों को बच्चों को सोंप दिया था
बदले में वृद्धाश्रम की बेड़िया मिली थी
पर आज सपनों को मंजिल मिली थी…..
रिश्तों की दुनिया से बेखबर थे
रिश्तों पे ही किताब छपी थी
छलक पड़े आंसूं थे
किसी अपने की आज सूरत दिखी थी….
रो गए आज तक़दीरे थी
भीग गयी किस्मत की लकीरे थी
आँसुएँ से भीगा आँचल था
प्यार की वो इनायात थी….
रास्ते फिर एक हो गए थे
मंज़िल सामने खड़ी थी
टूटी वो जंजीरे थी
हैरान हुई जिन्दगी थी …
ले आया अपने महलों में था
माँ बाप भी हुए हैरान थे
विरासत में दी जिन्हे जिंदगी थी
सामने पाकर झलक पड़े आंसूं थे …
बिछड़े धागे फिर जुड़ गए थे
फिर खिला प्रेम का बगीचा था
माफ़ी मिली बक्शीस में थी
जिंदिगी ने सबक अच्छा सिखाया था ….