में वो सीप के मोती हूं जो समुंद्र के गहरे तलो में पाया जाता है में वो ही कुमकुम हूं जिसके ललाट पर लगते ही मुखमंडल की शोभा बढ़ जाती है में वही बिंदी हूं जो भारत के संस्कृति में चार चांद लगा देती है और में वही केसर हूं जिसके छींटे पढ़ते ही रामचरितमानस जैसी कृति उभर के आती है।
जैसे सूरज से प्रस्फुटित होता आकाश है
वैसे ही हिंदी भाषा से प्रस्फुटित होता पूरा देश है।
में आज़ादी का शंखनाद लिखने वाली गाथा हूं
में पराधीनता की बेड़ियों में विद्रोह का उगता सूरज हूं
में जलियांवाला बाग की त्रासदी से निकलता हुआ लावा हूं
में भगतसिंह के इंकलाब का नारा हूं
में चंद्रशेखर आजाद के गोलियां से निकलता हुआ बारूद हूं
में मैथलीशरण गुप्त की पंक्तियों से निकलने वाली देशभक्ति की ज्वाला हूं
में हिंदुस्तान के हृदय में बसने वाली आशा हूं
और पूरे भारत में सबसे ज्यादा बोलने वाली हिंदी भाषा हूं।
हर मौसम में एक ही सवेरा देखा है
ढलती शाम में वही बसेरा देखा है
हिंदुस्तान की नसों में हिंदी की इबादत देखी है
हिंदी में हमने पूरे हिंदुस्तान की ताकत देखी है
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक
हिंदी में ही मैंने लोगो के दिलो को धड़कते हुए भी देखा है।
हिंदी तो दादी की कहानियों में, दादा के दुलार में, मां की ममता में, पापा की डांट में, रिश्तों के आगाज़ में, प्यार के इज़हार में, भारत के संविधान में और हम सबके व्यवहार में जो रची है, वो ही हमारी मातृभाषा है, जो गंगा के तल से निकलकर भारत के कोने कोने में जा बसी है।
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