सूरज सा तेज चमकता था जिनके चेहरे पे
मन चंदा सा निर्मल था
अप्सरा समान सौंदर्य
पर वो पिघला हुआ हुआ खरा सोना था।
सिसोदिया कुल की मान, सम्मान
राणा रतनसिंह का स्वाभिमान थी
रजवाड़ों की आन, चितौड़ साम्राज्य की शान
रानी पद्मिनी उनका नाम था।
उस वक्त की कल्पना कीजिए जब रानी रतनसिंह को लाने के लिए जब रानी रतनसिंह को लाने के लिए खिलजी के पास जाने को तैयार जो जाती है।
एक सच्ची राजवंशी हाथो में तलवार लिए,
सिर पे लाल चुनरी ओढ़े,
माथे पे विजय तिलक कर,
चल पड़ी आज दुश्मनों के
द्वार
राणा रतनसिंह को छुड़ाने
क्या
एक सच्ची राजवंशी की साहस की सच्ची वो पहचान थी
दिल्ली के बादशाह खिलजी को हरा गई, क्या उसकी सूझबूझ थी
७०० सखियों के साथ एक लोहार को भी साथ लाई थी
बंधन खोलने राजा के, ७०० सखियों के रूप में अपने पहरेदार लाई थी
खिलजी को उसके गेम में हराने बादल गोरा को साथ लाई थी
इतिहास आज भी याद करता उनको, खिलजी के घेरे से अपनी पति को छुड़ा जो लाई थी।
पर वो खिलजी था,
बेशरम, बेहरम, और बेहदाद
फौज लेकर आया वो चितौड़,
रानी पद्मिनी को पाने का सपना उसने जी देखा था।
उस वक्त की कल्पना कीजिए, जब रानी राजा को आखिरी विदाई देती है, आंखो से आंसू n आ जाए तो कहना
रूह कांप जाए, आंखो में आसूं आ जाए
रानी पद्मिनी और राजा रत्नसिंह का प्यार देख समुंद्र ने भी घुटने टेके थे
बादल हुआ खामोश था, हवाएं भी हुई शांत थी
जब केसरिया साफा पहनाकर रानी ने राजा से कुछ मांगा था
जौहर की बात सुनकर राणा रतनसिंह के नेत्र आज बरसे थे
कुछ न के पाए वो,
बरसती आंखों से दी उन्होंने इजाजत थी
उन्हें अपने गले लगा लिया
मोहब्बत ने ली पनाह थी
आखिरी यह मुलाकात थी
निशब्द थे दोनो, जमीं पे बस कुछ देर की और मौलत थी
सच्चे प्रेम और साहस की होने वाली परीक्षा थी
दुश्मन द्वार पर खड़ा, तलवार में वही राजवंशी की हिम्मत थी।
पहनाया रानी ने केसरिया साफा, लगाया विजयतिलक था
जय मां भवानी कहकर निकल पड़े रणभेरी में राजा थे
देखा न पीछे मूंह मोड़कर, वो सच्चे राजवंशी थे
जाते देख रही थी रानी, उनका मन न डोला था।
उस वक्त की कल्पना कीजिए
इधर राणा रतनसिंह अंतिम युद्ध लड़ रहे थे और
रानी पद्मिनी अंतिम बार श्रृंगार कर रही थी
इधर मन ही मन रानी को पाने का सपना देख रहा खिलजी था
और इधर एकलिंग की चोखट पे राह देख रही रानी थी।
पीछे से वार किया खिलजी ने,
राणा रतनसिंह का धड़ अलग किया खिलजी ने
इधर पद्मिनी का दिल धड़का, रतनसिंह ले रहा आखिरी सांसे था
मां भवानी कहकर धरती से लिपट गए रतनसिंह थे
वक्त आज नया इतिहास लिखने को था, सामने खड़ा सैनिक निशब्द था।
एक पल भी न रुकी रानी पद्मिनी
सबको जोहार कुंड में बुलाया
राजवंशी की लाज रखने का
वक्त आज सामने आया।
इस वक्त की कल्पना किजिए, जब १६००० औरतो का झुंड जौहर करने अग्निकुंड की और बढ़ रहा था।
आसमा पिघला, धरती मां का आंचल भर आया
१६००० वीरांगनाएं निकल पढ़ी आज जोहार करने को
उसमे बूढ़ी माताएं भी थी,
गर्भवती महिलाएं भी थी
बालिकाएं भी थीनवविवाहित भी थी,
कूद पड़ी सब अग्निकुंड में
एक ज्वाला पूरे चितौड़ में भड़की थी
रानी पद्मिनी के जोहार की खबर
पूरे भारत में आग की तरह फैली थी।
उनके शौर्य और हिम्मत के आगे
अग्नि ने भी चुप्पी तोडी थी
वीरांगनाओं को अपने अंदर समाकर
सच्ची राजवंशी की ताकत खिलजी ने आज देखी थी।
खिलजी के पैरो तले जमी आज खिसकी थी
एक बादशाह की ऐसी हार इतिहास ने पहली बार ही देखी थी
पद्मिनी को पाने का ख्वाब कांच के टुकड़ों की तरह आज टूटा था
जोहार की आग से उसका गुस्सा आज उबला था।
यही है रानी पद्मिनी और राजा रतनसिंह का इतिहास
शौर्य और खून से लिखा गया जो बलिदान।