सिंधुताई पे हिंदी कविता
सजना, सवरना, खाना बनाना
यह औरत के ख़िताब है
पर उसमे समाया एक और संसार है
जिसमे भरी ममता अपार है।
मेरी आज की कविता उसी माँ की है जिसका नाम लेने में मुझे बड़ा गर्व महसूस होता है वो है सिंधु ताई।
एक माँ धरती माँ
दूसरी माँ जिसने हमें जन्म दिया
और तीसरी माँ आप हो सिंधु ताई
आई हो, ताई हो और जगत माई भी हो।
कुछ पंक्ति सिंधु ताई के नाम———–
अम्बर थामा था आपने,
सागर को भी रोक लिया
जो जो विपत्ति आयी आपके रास्ते में
सबका मुँह मोड़ दिया
गरीबी में आटा गीला
इस मुहवारे को भी झुठला दिया
पति ने ठुकराया तो
ममता का झरना आपने बहा दिया।
गया के बीच बेहोसी में
बच्चे को जन्म दिया आपने
वक़्त ने लात मारी तो
जानवरो ने प्यार दिया आपको
१६ पत्थर मार कर नाल तोड़ी थी आपने
रेल की पटरी पे बैठ कर फिर जीवन जीने की उमंग जगायी थी आपने
शमशान की चिता पे रोटी बनाकर खायी थी आपने
अंधकार में भी रौशनी की चिंगारी जलाई आपने
चार राष्ट्रपति के हाथ से अवार्ड पाये आपने
बुझते हुए दीप में भी जीने की चाह जगायी आपने।
आज दुनिया आपकी गाथा सुनाती है
आपके आगे सर झुकाती है
क्यूंकि मुश्किलो के आगे घुटने टेक कर नहीं
मुश्किलों को उबलते हुए अंधकार की लो में डाला आपने।
सिंधु ताई
जितना भी कहु आपके बारे में कम है
हारे हुए बाज़ीगर को फिर मुकाम तक पहुंचना आपका कर्म है
एक अनूठे प्रयास से खड़ा किया आपने आश्रम है
आई, माई, जगत ताई पूरा इंडिया कर रहा तुम्हे प्रणाम है।